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इंटरव्यू: जोशीमठ को अभी भी बचाया जा सकता है? भूवैज्ञानिक दीपक भट्ट ने बताया- सरकार को कैसे करना चाहिए काम

जोशीमठ मामले में भूवैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ. दीपक भट्ट ने नवजीवन को कई अहम और गंभीर बातें बताई, साथ ही जोशीमठ आपदा के मुख्य कारणों को लेकर भी जानकारी दी।

फोटो: नवजीवन/सोशल मीडिया
फोटो: नवजीवन/सोशल मीडिया  

उत्तराखंड का जोशीमठ लगातार धंस रहा है। 165 से ज्यादा घर रेड जोन में हैं। करीब 800 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी है। ये दरारें अब जोशीमठ से बढ़कर रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग तक पहुंच चुकी है। वहीं दूसरी ओर सरकार लगातार वहां से लोगों को रेस्क्यू कर शिविरों में भेज रही है। लेकिन सवाल ये है कि तबाही के मुहाने पर खड़ा क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है? इसका जवाब हिमालयन-भू विज्ञान पर करीब 25 सालों से ज्यादा समय से रिसर्च कर रहे जाने माने भूवैज्ञानिक डॉ. दीपक भट्ट ने दिया है। इंटरव्यू के दौरान नवजीवन को प्रोफेसर दीपक भट्ट ने कई जानकारियां दी।

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सवाल- जोशीमठ मामले को लेकर आप क्या कहेंगे ?

जोशीमठ के अस्तित्व की बात करें तो ऐसा नहीं है कि पूरा जोशीमठ समाप्त हो जाएगा, लेकिन हां एक जोन है जिसमें खतरा बना हुआ है। ये खतरा भी ऐसा नहीं है कि एक दो साल पहले की है बल्कि ये 20-25 साल पहले से है। जोशीमठ में जो पत्थर है वो एक हार्ड रॉक या चट्टान नहीं है, बल्कि भूस्खलन के मलबे में शहर और गांव बने हैं। जोशीमठ में जो कुछ हो रहा है उसका कारण ये है कि पहले से जो वहां दरारें हैं उसमें कुछ मूममेंट होती है तो उससे वो दरारें बनती रहती है और वो भरती भी रहेती है। दूसरी बात ये है कि जोशीमठ का अपना ड्रेनेज प्लान नहीं है। वहां के नालियों का पानी जा कहां रहा है ये किसी को नहीं पता। तीसरा कारण ये है कि जो वहां का स्लोप है वो स्ट्रिप है। मेरा मानना है ये मुख्य कारण हैं आज जोशीमठ के हालात के। इस स्थिती को निपने के लिए पहले तो जो डेंडर जोन है वहां से लोगों को हटाना चाहिए उसके बाद जो बाकी के फेज हैं उनपर कार्य करने की जरूरत है।

सवाल- क्या विकास के नाम पर पहाड़ों का विनाश हो रहा है?

किसी भी जगह का विकास करना होता है तो ऐसी डिस्टरबेंस का सामना करना पड़ता है, लेकिन जब हम सुनियोजित विकास की बात करेंगे तो ऐसी घटनाएं नहीं होंगी। उदाहरण के लिए समझिए कि अगर हम बात करते हैं कि सड़क का निर्माण होना है, तो ध्यान रखने वाली बात है कि रोड ऐसे जोन में ना हो जो बाद में हमारे लिए समस्या खड़ी करें। विकास होना चाहिए लेकिन सुनियोजित तरीके से होना चाहिए। उसमें साइंटिफिक अप्रोच, ट्रेडिशनल अप्रोच और तकनीकी विशेषज्ञों का बहुत बड़ा रोल होना चाहिए। आज की बात करें तो आज के हालात ऐसे हैं कि भूवैज्ञानिक की रिपोर्ट को दबा दिया जाता है। आज जोशीमठ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मिश्र रिपोर्ट की बात करें चाहे अन्य रिपोर्ट की बात करें इनमें जोशीमठ को लेकर पहले ही आगाह किया गया था।

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सवाल- जिस रिपोर्ट की बात आप कर रहे हैं उस पर क्या कहना चाहेंगे और जोशीमठ में जो ड्रेनेज सिस्टम पर आपने सवाल उठाए हैं ऐसे में आपसे जानना चाहेंगे कि कहां चूक हुई है?

इसमें मानवीय भूल तो है ही मानवीय भूल के साथ साथ क्योंकि जागरुकता होनी जरूरी है। अगर कोई विकास हो रहा है तो उसमें जागरुकता होना जरूरी है और जो भूवैज्ञानिक हैं, भूगोल से जुड़े लोग हैं, हमारे इंजीनियर्स हैं इनकी रिपोर्ट को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये लोग तकनीकि रूप से समर्थ हैं इन सब चीजों को करने के लिए। ऐसे मामलों में कोई स्टेक नहीं आना चाहिए, कोई जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए।

सवाल- ये मामला अब सिर्फ जोशीमठ तक सीमित नहीं है, ये अब कर्णप्रयाग और रूद्रप्रयाग यहां तक की मसूरी में भी ऐसी दरार की खबरें सामने आई हैं

किसी भी जमीन की अपनी बेयरिंग कैपिसिटी होती है किसी भी लोड को सहने की। अगर उस लोड से ज्यादा वहां पर कंस्ट्रक्शन होगा तो हालात यहीं होंगे फिर चाहे कहीं भी हो।

सवाल- किसी भी विकास कार्य को करने से पहले मैपिंग हुई होगी, क्या उस मैपिंग को ध्यान में रखकर ही कार्य होते हैं?

बिल्कुल होती है। ऐसी कार्यों के लिए अलग अलग विशेषज्ञों की टीमें होती है उनकी एक रिपोर्ट तैयार होती है। उन्हीं रिपोर्ट को मिलाकर कार्य होने चाहिए। क्योंकि रैणी में जो कुछ हुआ वो बार बार मना करने के बाद भी अपस्ट्रीम में वो प्रोजेक्ट बना। अपस्ट्रीम में तबाही की आशंका ज्यादा हो जाती है । जब भी पानी आता है तो पूरी फोर्स के साथ आता है और नुकसान के अलावा कुछ नहीं होता।

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सवाल- फिलहाल सरकारें जो कदम जोशीमठ को लेकर उठा रही है क्या वो काफी है?

देखिए फौरी तौर पर सरकार की पहली प्राथमिकता है कि वहां से लोगों का रेस्क्यू किया जाए। उसके बाद वहां अलग अलग फेज में काम होना चाहिए। पर्सनल रिपोर्ट बननी चाहिए उसमें वो लोग शामिल हों जो एकतरफा फैसला ना दें जो सही से जांच करे उनकों शामिल किया जाना चाहिए। जो टेक्निकल हों, साइंटिफिक हों, स्थानीय लोगों को भी उसमें सुना जाना चाहिए, क्योंकि वो बेहतर बता पाएंगे।

सवाल- जोशीमठ को कैसे बचाया जाएगा?

जोशीमठ को अभी भी बचाया जा सकता है। सबसे पहले तो जिस जोन में कुछ भी नहीं हुआ है वहां तत्काल प्रभाव से कंस्ट्रक्शन पर रोक लगनी चाहिए। चाहे वो शहर के ऊपर की तरफ हो या नीचे की तरफ। ब्लास्ट के कारण जो हिस्सा हट रहा है उससे जो ऊपर का हिस्सा है उसके नीचे आने की संभावना बढ़ जाएगी। जहां भी अभी हल्की दरारें हैं उन्हें भरकर उसपर कार्य करना चाहिए।

सवाल- क्या सरकार पहले कदम उठाती तो शायद तस्वीर कुछ और होती?

जहां भी इस तरह की आपदा आती है वहां दो चीजें होती है एक प्री और दूसरा पोस्ट। तो जो भी पैसा पोस्ट डिजास्टर में लगता है उससे अच्छा है कि उन्हें पहले लगाया जाए ताकी जो भी हमें दिक्कतें दिख रही है उसका समाधान समय रहते किया जाए। उसकी टेक्नीकल रिपोर्ट हमें पहले ही करनी चाहिए। जितना पैसा हमारा आपदा के बाद लगता है उससे भी कम पैसों में ना सिर्फ हम उस दिक्कत को दूर कर सकते हैं बल्कि उस जगह को बर्बाद होने से बचा भी सकते हैं।

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