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किसान आंदोलन पर गांधीवादियों का बयान- यह गांधी की विरासत के सम्मान का सवाल है

गांधीवादियों ने कहा कि महात्मा गांधी ने जिसे ‘जगत का पिता’ कहा था उन किसानो के आंदोलन को इस बात का श्रेय है कि उसने शांतिमय प्रतिकार का एक नया प्रतिमान बनाया है। 26 जनवरी की घटनाओं के बाद भी उन्होंने न धैर्य खोया है, न शांति का रास्ता छोड़ा है।

फोटोः बिपिन
फोटोः बिपिन 

केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के आंदोलन को लेकर देश के वरिष्ठ गांधीवादियों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है। गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, गांध स्मारक निधि, नई दिल्ली के अध्यक्ष रामचंद्र राही, सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम, वर्धा के अध्यक्ष चंदनपाल, राष्ट्रीय युवा संगठन, वर्धा के राष्ट्रीय संयोजक डॉ विश्वजीत और अजमत खान की ओर से जारी इस बयान में सरकार, समाज और आंदोलनकारी किसानों को नसीहत दी गई है।

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बयान में कहा गया है कि “पिछले कई महीनों से अनुकरणीय पारदर्शीता, संयम और शांतिमयता के साथ चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को जो अराजकता हुई उससे देश के हम लोकतांत्रिक व शांतिप्रिय नागिरकों को गहरी पीड़ा हूई है। यह किसी आंदोलन के समर्थन या विरोध करने का सवाल नहीं है, यह देश की लोकतांत्रिक, गांधी-विरासत के सम्मान और पालन का सवाल है। हम सरकार को भी और समाज को भी सावधान करते हैं कि लोकतंत्र और संविधान की लक्ष्मण-रेखा के उलंघन से अराजकता और विघटन के अलावा दूसरा कुछ भी हाथ नही आएगा। देश जिस नाजुक दौर पर गुजर रहा है, उसका पहला तकाजा है कि सत्ता और समाज दोनों इस लक्ष्मण-रेखा का सम्मान करें।”

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“महात्मा गांधी ने जिसे ‘जगत का पिता’ कहा था उन किसानो के आंदोलन को इस बात का श्रेय है कि उसने शांतिमय प्रतिकार का एक नया प्रतिमान बनाया है। 26 जनवरी की घटनाओं के बाद भी उन्होंने न धैर्य खोया है, न शांति का रास्ता छोड़ा है। तमाम सरकारी और प्रशासिनक ज्यादतियों के बावजूद वे अपना आंदोलन मजबूत ही करते जा रहे हैं। आजादी के बाद से ही खेती-किसानी के साथ जो राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक अन्याय होता आया है, वह किसी से छुपा नही है। इस अन्याय का सामना करने में असमर्थ लाखो किसानों ने अब तक आत्महत्या कर ली है। किसान आंदोलन उनके लिए न्याय मांगने और दूसरे किसानों को वैसी असमर्थता से बचाने का आंदोलन है। यह भारत के समस्त नागिरकों का आंदोलन है, क्योंकि हम सभी निरपवाद रूप से किसानों के बेटे हैं, किसानों का दिया खाते-पीते हैं। इसलिए इस आंदोलन का सम्मान करना हम सबके लिए नमक का कर्ज अदा करने के बराबर है।”

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“अब यह बात साफ हो चुकी है कि 26 जनवरी की अराजकता के पीछे किसान आंदोलन नहीं, उसकी आड़ में छिपी आपराधिक शक्तियां और उनके साथ साठ-गांठ रखने वाली यथास्थिति की ताकतें थीं। हम मानते हैं कि किसान आंदोलन की चूक यह हुई कि वह अपने भीतर की इन ताकतों को पहचानने और उन्हें अलग-थलग करने में विफल हुआ। लेकिन विफलता बेईमानी नहीं होती है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी नागिरको के शांतिमय प्रदर्शन के अधिकार को संविधान समम्त बताया है। इसिलए अब न्यायालय और सरकार की यह नैतिक जिम्मेवारी है कि नागिरकों के संविधान सम्मत अधिकार को छल से विफल करने वाले आपराधिक तत्वों और उनकी सहकारी ताकतो का वह पता लगाए और देश को बताए। इसके बगैर अब इन दोनों की विश्वसनीयता भी दांव पर लग गई है। भारतीय जनता के बनाए संविधान से बनी व्यवस्था के किसी भी अंग को यह नही भूलना चाहिए कि उसका अस्तित्व लोक से ही बना है और उसी के भरोसे टिका है।

हम गांधी-जन किसानों से कहना चाहते हैं कि वे अपना संघर्ष चलाते हुए शांति और सचाई के रास्ते से न डिगें। वही रास्ता सबकी मंगलमय सफलता का रास्ता है।”

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