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‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की केंद्र सरकार की कोशिशों को झटका, चुनाव आयोग ने दो टूक, कहा - कोई चांस नहीं

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की सारी अटकलों को चुनाव आयोग ने एक बार फिर खारिज कर दिया। मुख्य चुनाव आयुक्त से जब गुरुवार को यही सवाल फिर पूछा गया तो उनका दो टूक जवाब था, कोई चांस नहीं

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत

चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार और बीजेपी की तरफ से की जा रही वन नेशन वन इलेक्शन की कोशिशों पर दो टूक जवाब देकर पूर्ण विराम लगा दिया है। गुरुवार को औरंगाबाद में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया। इस बारे में जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा, “कोई चांस नहीं” इससे पहले 14 अगस्त को भी रावत ने कहा था कि कानून में बदलाव किए बिना देश में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है।

गौरतलब है कि हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक बयान में कहा था कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के लिए सभी पक्षों के बीच ‘‘स्वस्थ और खुली बहस’’ होनी चाहिए। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बारे में बात कर चुके हैं। पिछले महीने ही विधि आयोग ने भी इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों की राय मांगी थी। जिस पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए इसे संविधान की भावना के प्रतिकूल बताया था।

औरंगाबाद में गुरुवार को ओ पी रावत ने भी एक देश-एक चुनाव के लिए कानून बनाने की बात दोहराते हुए कहा कि इसके लिए कम से कम एक साल का वक्त लगेगा। उन्होंने बताया कि आम चुनाव के 14 महीने पहले से चुनाव आयोग तैयारी शुरू कर देता है। उनका कहना था कि, “हमारे पास सिर्फ 400 कर्मचारी हैं, जबकि हमें चुनाव के दौरान 1.11 करोड़ कर्मचारी तैनात करने होते हैं।"

हाल के दिनों में ऐसी चर्चा जोर पर थी कि इस साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है और उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है। मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को खत्म हो रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ का 5 जनवरी, मध्य प्रदेश का 7 जनवरी और राजस्थान विधानसभा का 20 जनवरी, 2019 को पूरा होगा।

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लेकिन, यहां बड़ा राजनैतिक सवाल यह है कि आखिर सरकार एकसाथ चुनाव क्यों कराना चाहती है? क्या उसे इससे कोई राजनीतिक फायदा हो सकता है? क्या एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ में वाकई कोई कमी आएगी?

सूत्रों का कहना है कि समय से पहले लोकसभा और कुछ राज्यों के चुनाव कराने में सरकार को फायदा ही फायदा नजर आ रहा है। सबसे बड़ा फायदा तो उसे यह नजर आ रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में मौजूदा बीजेपी सरकारों के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है। और अगर इन राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं, तो बीजेपी के प्रमुख चेहरे नरेंद्र मोदी ही छाए रहेंगे और मतदाता का ध्यान लोकसभा चुनाव के मुद्दों पर होगा। इसका फायदा यह होगा कि राज्यों की सत्ता विरोधी लहर को दबाने में मदद मिलेगी।

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