हालात

बच्चों के बिना थम गया कोटा का सारा कारोबार, लोगों को बच्चों के लौटने का बेसब्री से इंतजार

कोटा में कोचिंग संस्थानों के साथ बच्चों के रहने के किराये के कमरों का तो व्यापार है ही, खाने के होटल और टिफिन सर्विस का उद्योग भी है। इसके साथ ही, यहां रहने वाले बच्चों से समय-समय पर मिलने आने वाले उनके अभिभावकों के लिए कई छोटे-बड़े होटलों का भी कारोबार है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोटा को पहले लोग औद्योगिक शहर के तौर पर जानते थे। लेकिेन पिछले एक-डेढ़ दशक में लोग इसे कोचिंग हब के रूप में जानने लगे। मेडिकल और इंजीनियरिगं काॅलेजों की प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं के लिए यहां खुले कोचिंग संस्थानों ने शहर को नई पहचान दी। यहां की अर्थव्यवस्था को भी नया आयाम मिला।

हर साल देश भर के करीब 1 लाख 70 हजार विद्यार्थी इन संस्थानों में पढ़ते रहे हैं। इससे कई कोचिंग संस्थानों को भी अच्छी-खासी पहचान मिली। अगर इन प्रवेश परीक्षाओं के परिणामों पर नजर डालें, तो दस में सात विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जिन्होंने कोटा में रहकर तैयारी की हुई होती है। ये लोग यहां तीन महीने से लेकर कभी-कभी दो साल तक कोचिंग करते रहे हैं।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी से लेकर 16 सार्वजनिक काॅलेजों के लिए चुने जाने का सपना इन्हें यहां खींच लाता है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, इन काॅलेजों से निकलने के बाद इन्हें प्रतिष्ठित कंपनियां मोटी तनख्वाहों पर नौकरी देती हैं। बिल गेट्स तक यहां की शिक्षा की गुणवत्ता से अच्छे-खासे प्रभावित हैं।

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

इन सबकी शुरुआत कैसे हुई, यह जानना भी कम रोचक नहीं है। एक इंजीनियर थे वीके बंसल। वह दिव्यांग हो गए। इस वजह से उनकी नौकरी जाती रही। करीब 25 साल पहले उन्होंने बंसल क्लासेज नाम से साइंस ट्यूटोरियल शुरू किया। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर एक दर्जन हो गई और इसमें बच्चों की संख्या इतनी बढ़ गई कि मुश्किलें आने लगीं। इससे ही यहां कोचिंग संस्थानों की संख्या बढ़ती चली गई। जब बच्चों की सफलता की दरें बढ़ती गईं, तो काफी दूर-दूर से बच्चे यहां आकर एडमीशन लेने लगे। स्वाभाविक ही, उनके रहने, खाने-पीने की जगहें बढ़ती गईं, किताब-काॅपी-पेंसिलों की काफी सारी दुकानें खुलती ही गईं।

लेकिेन कोविड-19 की वजह से लगे लाॅकडाउन की वजह से ये कोचिंग संस्थान बंद करने पड़े और यहां के बच्चों को भी भारी मुश्किलों के बीच अपने घर जाना पड़ा। हाल यह हुआ कि राजस्थान और अन्य राज्य सरकारों के बीच किसी तरह काफी कुछ समन्वय बना और करीब 40 हजार बच्चे कुछ सौ बसों की मदद से अपने गांव-शहर पहुंच पाए।

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

पर पढ़ाई कहां रुकने वाली होती है? जयपुर के नीरज सक्सेना बताते हैं किः “मेरा बेटा शोभित कोटा के एक प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ रहा था। लाॅकडाउन के दौरान वह जयपुर आ गया, पर कोटा के उसी संस्थान के लोग उसे ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। शोभित खुश तो है, लेकिेन कभी-कभार धीमे इंटरनेट की वजह से वह बेचैन हो जाता है, क्योंकि इससे उसकी एकाग्रता में तो बाधा आती ही है, काफी कुछ छूट जाने का डर भी रहता है।”

नीरज सक्सेना आगे बताते हैं, “अलग-अलग विद्याार्थियों में इस तरह की ऑनलाइन की पढ़ाई की चीजें सामान्य क्लासरूम पढ़ाई की तुलना में ग्रहण करने की अलग-अलग क्षमता होती है। मेरे बच्चे ने यह तरीका तो तुरंत चे सीख लिया। पर क्लासरूम के वातावरण की बात ही अलग होती है और वह इसे मिस कर रहा है। वह अपने साथी बच्चों से विभिन्न मुद्दों को डिस्कस नहीं कर पा रहा है जैसा कि वह कोटा में रहते हुए कर रहा था। जैसे ही स्थितियां सामान्य हो, शोभित वापस जाना चाहता है, क्योंकि क्लासरूम में पढ़ाई तो आदर्श स्थिति है ही।”

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

वैसे, यह बात तो हर जगह चर्चा में है ही कि क्या आने वाले दिन क्लासरूम पढ़ाई की जगह ऑनलाइन पढ़ाई के होने जा रहे हैं? लेकिेन कोटा में कुछ अतिरिक्त सवाल भी उछल रहे हैं- जैसे, क्या यह शहर अब कोचिंग हब रहेगा जिस वजह से यहां की अर्थव्यवस्था करीब 5,000 करोड़ की हो गई है? दरअसल, इन कोचिंग संस्थानों के साथ बच्चों के रहने के लिए किराये का तो व्यापार है ही, खाने-पीने वाले होटल और टिफिन सर्विस का उद्योग भी है। इसके साथ ही, बच्चे यहां रहते हैं, तो उनसे समय-समय पर मिलने के लिए उनके अभिभावक भी आते-जाते रहते हैं, तो छोट-बड़े होटल और उनके कारोबार भी हैं।

बच्चे जिन घरों में रहते हैं, उनके मालिक खासे परेशान हैं। इनमें से ही एक- निर्मला जेठवानी, ने बतायाः हम लोग किराये पर कमरा देते समय बच्चों से एक महीने का किराया एडवांस लेते हैं। लाॅकडाउन के दौरान बच्चे जाने लगे, तो उन्होंने यह एडवांस एडजस्ट कर लेने को कहा। आखिर, उन्हें पक्का तो था नहीं कि वे कब लौटेंगे। हमारी भी यही स्थिति है। हम नहीं जानते कि ये कमरे कब किराये पर उठेंगे। हमारी ही यह हालत नहीं है। टिफिन सर्विस वालों के साथ-साथ नाश्ता और स्नैक्स बेचने वालों का कारोबार भी ठप ही है।

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

इसी तरह, मीरा गुप्ता के मकान में करीब 85 बच्चे किराये पर रहते थे। वह कहती हैंः अगर बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने लगे, तो कम ही बच्चे होंगे जो क्लासरूम पढ़ाई के लिए कोटा आना पसंद करेंगे। ऐसे में, बच्चों की जरूरतों से जुड़ी सेवाओं में लगे 35 हजार लोग बेरोजगार हो जाएंगे।

वैसे, एक प्रमुख कोचिगं इंस्टीट्यूट- रेजोनेन्स के कार्यकारी निदेशक मुकेश शर्मा कहते हैंः क्लासरूम पढ़ाई में भिन्न किस्म का वातावरण मिलता है। इसमें बच्चे शिक्षक और एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। पूरा माहौल प्रतिद्वंद्विता वाला होता है- एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है। इस लाॅकडाउन के दौरान ऑनलाइन स्टडीज वाले कई संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उग तो आए हैं, पर वे चल पाएंगे, इसमें संदेह ही है। हम भी ऑनलाइन क्लासेज चलाते हैं, लेकिेन हमारा अनुभव है कि बच्चे ऑफलाइन में ज्यादा इच्छुक हैं और ऑनलाइन का अतिरिक्त तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। शर्मा को पूरा भरोसा है कि हालात सामान्य होने के बाद बच्चे यहां पहले की तरह ही लौट आएंगे।

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

मोशन एजुकेशन के नितिन विजय की भी राय इसी तरह की है। वैसे, लाॅकडाउन के दौरान ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प तो लोगों ने तलाशा है ही। ऑनलाइन शिक्षा देने वाले लोगों और संस्थानों ने तरह-तरह के पैकेज भी लोगों के सामने पेश किए हैं और घरों में कैद बच्चों के लिए अभिभावकों ने इन्हें भी आजमाया है। फिर भी, कोटा के हजारों परिवारों की निगाहें इस पर लगी हैं कि आने वाले दिनों में बच्चे लौटते हैं या नहीं।

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 06 Jun 2020, 6:18 PM IST