भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा 4 अगस्त, 2025 को जारी एक रहस्यमयी बयान से पहलगाम के हमलावरों के मुठभेड़ में मारे जाने के दावे पर सवाल खड़े हो गए हैं। बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया था कि 28 जुलाई को श्रीनगर के पास "ऑपरेशन महादेव" के तहत ऐसे तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया है जिन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में हमला किया था। लेकिन पीआईबी के प्रेस रिलीज से इन हमलावरों की "पहचान और पृष्ठभूमि" के बारे में सवाल पैदा हो गए हैं।
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पीआईबी ने 4 अगस्त, 2025 को यह बयान जारी किया: "पहलगाम हमलावरों की पहचान और पृष्ठभूमि पर एक रिपोर्ट मीडिया/सोशल मीडिया हैंडल्स के ज़रिए प्रसारित की जा रही है और इसे सेनाओं के हवाले से बताया जा रहा है। भारतीय सशस्त्र बलों के किसी भी अधिकृत मीडिया हैंडल ने ऐसा कोई दस्तावेज़ तैयार या जारी नहीं किया है। न ही सशस्त्र बलों के जनसंपर्क कार्यालयों/मनोनीत प्रवक्ताओं द्वारा इस प्रकार की कोई टिप्पणी की गई है। यह रिपोर्ट खुले स्रोतों से एकत्रित मुठभेड़ के बाद की जानकारी का संकलन प्रतीत होती है।"
रक्षा मंत्रालय ने भी पीआईबी के इस प्रेस रिलीज को अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से शेयर किया।
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पीआईबी के इस बयान पर ज्यादातर लोगों की नजर नहीं गई, शायद इसलिए क्योंकि इसमें जानकारी बहुत ही आधे-अधूरे तरीके से दी गई और कोई भी भी विवरण नहीं दिया गया था। इसमें न तो उस रिपोर्ट का नाम बताया गया और न ही उन मीडिया संस्थानों का जिक्र किया गया जिन्होंने ऐसी जानकारी दी होगी। आमतौर पर पीआईबी 'फर्जी खबरों' का खंडन करने में तत्पर रहता है और खबर के स्रोत की पहचान करने में हमेशा हिचकिचाता नहीं है। यह बयान (रिलीज़ आईडी 2152335) रात 8.44 बजे जारी किया गया था और हो सकता है कि इसे केवल रक्षा मंत्रालय की खबरें करने वाले पत्रकारों ने ही देखा हो।
वैसे 28 जुलाई को मुठभेड़ के बाद रक्षा सूत्रों ने शायद कोई खास जानकारी नहीं दी थी। मीडिया रिपोर्टों में भारतीय सेना के सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि पहलगाम आतंकी हमले का कथित मास्टरमाइंड और उसके दो साथी मारे गए हैं। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) की एक टीम तीनों आतंकवादियों के शवों की पहचान के लिए मंगलवार (29 जुलाई, 2025) तड़के श्रीनगर पहुँची। उसी दिन प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद में, जहाँ लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा चल रही थी, पुष्टि की कि मारे गए आतंकवादी 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले में शामिल थे।
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गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा, "पहलगाम के बैसरन मैदान में पर्यटकों की हत्या करने वाले तीन आतंकवादी मारे गए हैं।" उन्होंने आगे कहा, "हमने सुनिश्चित किया कि आतंकवादी पाकिस्तान न भागें।" उन्होंने मारे गए तीनों आतंकवादियों की पहचान सुलेमान उर्फ फैजल जट्ट, हमजा अफगानी और जिबरान के रूप में की और बताया कि ये सभी पाकिस्तानी नागरिक और लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे। उन्होंने दावा किया कि खुफिया ब्यूरो, सेना, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और जम्मू-कश्मीर पुलिस के नेतृत्व में एक अभियान में मानवीय और तकनीकी खुफिया जानकारी की मदद से तीनों लोगों का पता लगाया गया।
केंद्रीय गृह मंत्री ने यह भी बताया कि बैलिस्टिक और फोरेंसिक रिपोर्टों और हमले से एक दिन पहले उन्हें पनाह देने वाले दो आरोपियों सहित चार अन्य गवाहों की शिनाख्त से आतंकवादियों की पहचान और पहलगाम हमले में उनके शामिल होने की पुष्टि हुई है। उन्होंने बताया कि दोनों आतंकवादियों के पास से पाकिस्तानी मतदाता पहचान पत्र और पाकिस्तान में बनी चॉकलेट मिली हैं, जिससे यह साबित होता है कि वे पाकिस्तान से आए थे।
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अमित शाह ने लोकसभा को आगे बताया था कि, "उनके शवों के पास से दो एके-47 राइफलें और एक एम-4 कार्बाइन राइफल बरामद की गई। बैसरन (पहलगाम) के मैदान से बरामद कारतूसों का मिलान ऑपरेशन महादेव के दौरान बरामद हथियारों से किया गया। इन हथियारों को बीती रात एक विशेष विमान से चंडीगढ़ फोरेंसिक प्रयोगशाला ले जाया गया। आज सुबह 5 बजे मेरी छह बैलिस्टिक विशेषज्ञों के साथ वीडियो कॉल पर बात हुई और उन्होंने पहलगाम में इन हथियारों के इस्तेमाल की पुष्टि की।" मंत्री ने आगे कहा।
तो सवला है कि गृह मंत्री के इस ऐलान के एक हफ़्ते बाद जारी की गई पीआईबी की विज्ञप्ति का क्या मतलब निकाला जाए? इसमें क्या कहा गया है और क्या खंडन किया गया है, अगर यह किसी बात का खंडन कर ही रहा है? क्या पीआईबी निश्चित रूप से केंद्रीय गृह मंत्री के बयान पर सवाल नहीं उठा रहा है या यह नहीं कह रहा है कि उन्होंने लोकसभा को भ्रामक जानकारी दी है?
इस बाबत श्रीनगर के पत्रकारों ने पुष्टि की कि संसद में गृह मंत्री द्वारा दिए गए बयान पर किसी ने भी सवाल नहीं उठाया, हालांकि कुछ लोगों ने यह ज़रूर पूछा कि पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या के तीन महीने बाद भी आतंकवादी अपने मतदाता पहचान पत्र (पाकिस्तान तो ज़ाहिर तौर पर ऐसे कार्ड भी जारी नहीं करता) और पाकिस्तान में बनी चॉकलेट के रैपर क्यों लेकर घूम रहे थे। एक ने कहा कि दस साल पहले, फ़र्ज़ी मुठभेड़ों पर सवाल उठाए जाते थे, लेकिन अब नहीं। उन्होंने पुष्टि की कि जम्मू-कश्मीर के अख़बार सिर्फ़ सरकारी प्रेस बयानों को ही प्रकाशित करते हैं।
और इस बात का भी कोई जवाब नहीं है कि आखिर पीआईबी को इस तरह का आधा-अधूरा या कहें कि रहस्यमयी बयान जारी करने के लिए किस बात ने उकसाया?
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