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पंजाब: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की बर्बर हत्या के बाद नैतिक-अनैतिक में बंटा राज्य

मशहूर सोशल मीडिया इनफ्लुयेंसर कंचन के खिलाफ न कोई शिकायत, न एफआईआर। कोई अदालती आदेश भी नहीं, पर उसकी बर्बरता से हत्या कर दी गई।

पंजाब के लुधियान में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाली कमल कौर (बाएं इनसेट में) की हत्या के आरोप में पकड़े गए कथित निहंग
पंजाब के लुधियान में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाली कमल कौर (बाएं इनसेट में) की हत्या के आरोप में पकड़े गए कथित निहंग 

साढ़े चार लाख फाॅलोवर्स के साथ कमल कौर भाभी के नाम से मशहूर सोशल मीडिया इनफ्लुयेंसर कंचन कुमारी की हत्या ने सब का ध्यान पंजाब में चल रही नैतिक दरोगाई की तरफ खींचा है।

इंटरनेट पर कंचन कुमारी की मौजूदगी बोल्ड वीडियो, मुंहफट बातों और ऐसी सामग्री के लिए चर्चा में रहती थी जो सिर्फ वयस्कों के लिए तैयार की जाती थी। भले ही उसकी पोस्ट पर बहुत से लोगों की भंवें तन जाती हों, उसके खिलाफ न तो कभी कोई शिकायत दर्ज कराई गई, न कोई एफआईआर हुई और न कोई अदालती आदेश ही जारी हुआ। दो हफ्ते पहले उसकी बर्बरता से हत्या कर दी गई। 

पुलिस का कहना है कि उग्र सोच वाले नैतिकता के ठेकेदार अमृतपाल सिंह मेहरान को उसके वीडियो 'अनैतिक' लगे और उसने यह कांड कर दिया। उसने प्रचार के लिए शूटिंग के बहाने कंचन को बठिंडा आने का लालच दिया था। हत्या के चंद घंटे के भीतर ही वह अमृतसर से दुबई जाने वाले जहाज में बैठा और फरार हो गया। वह धर्म की रक्षा के नाम पर बनाए गए संगठन 'कौम दे राखे' यानी कौम के रक्षक का नेता था जिसका काम पंजाब में नैतिक दरोगाई था। इसकी अपनी दलील थी, अपनी अदालत थी, और यह खुद ही तय करता था कि किसे जीने का हक है, और किसे नहीं। उसके दो सहयोगी जसप्रीत सिंह और निर्मलजीत सिंह गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन मेहरान फरार है।

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उसके बाद जो हुआ वह पंजाब के मौजूदा समाज की असली तस्वीर पेश करता है। जब कंचन का पार्थिव शरीर पोस्ट मार्टम के बाद उसके परिवार को सौंपा गया, तो कोई एंबुलेंस वाला उसे श्मशान ले जाने को तैयार नहीं हुआ। आखिर में सहारा जन सेवा नाम का एक संगठन मदद के लिए आया जो अन्य कामों के अलावा लावारिस लाशों की अंतिम क्रिया का काम भी करता है।

श्मशान में सिर्फ परिवार के तीन लोग ही थे। न आभासी दुनिया का कोई दोस्त ही वहां था और न कोई परिचित संबंधी ही। कोई इनफ्लुयेंसर भी नहीं आया। वे लाखों लोग जो बेसब्री से उसके शॉर्ट्स और रील्स का इंतजार करते थे, नजर नहीं आए। जिसके लाखों फाॅलोवर थे, उसे अकेले ही जाना पड़ा।

यह सिर्फ एक हत्या की अपराध कथा नहीं है, यह वह आईना है जिसमें आज के पंजाब को देखा जा सकता है। जहां उग्र सोच फैल रही है और इंसाफ की भावना जमीन खो रही है। त्रासदी यह है कि इस हत्या को 'संस्कृति' और 'मूल्यों' के नाम पर जायज ठहराने की कोशिशें भी चल रही हैं।

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परेशान करने वाली बात यह है कि फरार मेहरान को धार्मिक, राजनीतिक और डिजिटल कई स्तरों पर समर्थन मिल रहा है। सब घुमा-फिराकर उसे सही ठहराने के लिए कंचन के वीडियो को 'बेहूदा और अनैतिक' बता रहे हैं। इस काम में सबसे आगे रहे स्वर्ण मंदिर के प्रधान ग्रंथी मलकीत सिंह। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मेहरान की करतूत का समर्थन किया और कहा कि कंचन ने 'सिख नाम का इस्तेमाल करके कौम की छवि खराब करने की कोशिश की।' उन्होंने आगे कहा, 'इसका यही इलाज था, कुछ गलत नहीं हुआ।'

तकरीबन यही बात अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ने भी कही और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के महासचिव ने भी। फरीदकोट के सांसद सरबजीत सिंह खालसा ने तो यहां तक भरोसा दिलाया कि कंचन ने जो 'अपमान' किया है, उस मसले को वह संसद में उठाएंगे।

जैसे इतना ही काफी नहीं था। जल्द ही मेहरान की तस्वीरों वाले बड़े-बड़े कटआउट लुधियाना की सड़कों पर नजर आने लगे। किसी में उसे कौम का हीरा बताया गया और किसी में इज्जत का रक्षक। उग्र सोच वालों को एक नया नायक मिल गया था।

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सोशल मीडिया पर यह कथानक कुछ ज्यादा ही स्याह दिखा। हाशिये के उग्रपंथी सोच वालों ने बधाइयों के हैशटैग शुरू कर दिए, जश्न मनाया जाने लगा। मौके का फायदा उठाते हुए पंजाब और हरियाणा के कुछ इनफ्लुयेंसर भी बहते पानी में कूद पड़े। वे हत्या का समर्थन कर रहे थे और 'अनैतिक तत्वों' के चेतावनी दे रहे थे। खुद मेहरान ने भी हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए उसे जायज ठहराने के दो वीडियो जारी कर दिए। सरहद पार तक से उसे समर्थन मिला। पाकिस्तानी सरगना शहजाद भट्टी ने एक वीडियो जारी कर मेहरान को 'बहादुर शेर' बताया। 

मेहरान और उसके साथी खुद को निहंग यानी परंपरागत सिख लड़ाके मानते हैं और वैसा ही बाना भी पहनते हैं। हालांकि वे किसी स्थापित निहंग जत्थेबंदी से जुड़े हुए नहीं हैं। इसमें सबसे बड़ी जत्थेबंदी है बाबा बुड्ढा दल जिसने इस कृत्य की निंदा की। इसके प्रमुख बाबा बलबीर सिंह ने कहा, 'सच्चा सिख कभी निहत्थों पर हमला नहीं करता, खासकर औरतों पर।'

लेकिन पंजाब के मुख्यधारा के राजनीतिज्ञों ने इस घटना पर मौन धारण कर लिया। राजनीतिक विश्लेषक हरजेश्वर पाल सिंह इस पर कहते हैं, "जब इस तरह के उग्रपंथी सोच वाले संगठनों के खिलाफ बोलने का समय आता है, तो राजनीतिज्ञ मौन साध लेते हैं। अगर उनके समर्थन का मौका आए, तो वे पूरी ताकत से साथ खड़े हो जाते हैं।"

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पंजाब राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष राज लाली गिल ने एक बयान में हत्या और नैतिक दरोगाई की निंदा की। लेकिन उसी बयान में आगे यह भी कह दिया कि सामाजिक और नैतिक ताने बाने को कोई चोट न पहुंचे, यह सुनिश्चित करना महिला इनफ्लुयेंसरों की 'पहली जिम्मेदारी' है।  

पंजाब सरकार ने इस मामले पर क्या किया? कंचन की हत्या के एक हफ्ते बाद सरकार ने आईटी कानून के तहत 106 इनफ्लुयेंसरों के सोशल मीडिया एकाउंट बंद कर दिए। उन्हें 'आपत्तिजनक' बताया गया। वैसे ये एकाउंट 'आपत्तिजनक' कब हो गए? जाहिर है हत्या के बाद। लेकिन विडंबना यह थी कि हत्या को जायज ठहराने और मेहरान का महिमामंडन करने वाले एकाउंट्स में सरकार को कुछ भी 'आपत्तिजनक' नहीं मिला। यहां यह सवाल भी पूछा जा सकता है कि सरकार आखिर किसके मूल्यों की रक्षा कर रही है। 

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