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पंजाब में बाढ़ का भयावह रूप, रौद्र नदियां और लबालब बांध, मौसम की अति या लापरवाही का नतीजा!

इस बाढ़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मौसम की अति के सामने पंजाब कितना असहाय हो जाता है। यहां की नदियां, बांध, खेती और आबादी किसी भी मोर्चे पर अनहोनी से निपटने की कोई तैयारी नहीं दिखती।

पजाब में बाढ़ का भयावह रूप, रौद्र नदियां और लबालब बांध, मौसम की अति या लापरवाही का नतीजा!
पजाब में बाढ़ का भयावह रूप, रौद्र नदियां और लबालब बांध, मौसम की अति या लापरवाही का नतीजा! फोटोः सोशल मीडिया

अभी कुछ ही महीने पहले तक जहां से ये आवाजें सुनाई दे रहीं थीं कि किसी भी राज्य को पानी की एक अतिरिक्त बूंद नहीं दी जाएगी, उस पंजाब में आज हर तरफ पानी ही पानी है। राज्य का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो इस समय बाढ़ से त्रस्त न हो। गांव के गांव डूब चुके हैं, फसलें बर्बाद हो चुकी हैं और जन जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त है। अब लोग इस पानी से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं।

पंजाब बाढ़ की चपेट में आने वाला है, यह बात तभी पता पड़ गई थी जब हिमाचल और जम्मू कश्मीर से अतिवृष्टि, बादल फटने और औचक बाढ़ की खबरें आनी शुरू हुई थीं। पंजाब इन पहाड़ों के कुदरती ढलान पर बसा है। यहां से पंजाब में उतरने वाली बड़ी-छोटी और बरसाती नदियां पंजाब की जमीन पर उतर कर ही आगे की यात्रा शुरू करती हैं। यही नदियां पंजाब की जमीन को उपजाऊ बनाती हैं और यही नदियां जब अपने रौद्र रूप में आती हैं तो वही होता है जो इन दिनों वहां हर ओर दिखाई दे रहा है।

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तकरीबन हर जगह जहां ये नदियां पहाड़ों से उतरती हैं, वहां बड़े-बड़े बांध और जलाशय बनाए गए हैं। अतिवृष्टि के कारण जब इनमें पानी लबालब हो जाता है तो बांध को खतरा पैदा हो जाता है। मजबूरन पानी रिलीज करना पड़ता है और यह बाढ़ का सबसे बड़ा कारण बनता है। पौंग बांध, रणजीत सागर बांध, भाखड़ा-नंगल बांध, शाहपुर कंडी बांध सभी जगह जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया इसलिए पानी रिलीज करने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था।

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27 अगस्त को ब्यास नदी में पानी का प्रवाह 2.30 था, जबकि सामान्य दिनों में यह 14,400 क्यूसेक होता है। पानी का दबाव इतना तेज था कि पठानकोट के पास रावी नदी पर बने माधोपुर हेडवक्र्स के गेट टूट गए और इसका पानी अचानक ही बहुत सारे गांवों में पहुंच गया।

बाढ़ का सबसे ज्यादा असर पंजाब के फाजिल्का, फिरोजपुर, जैसे उन इलाकों में हुआ जो पंजाब का कपास बेल्ट हैं। वहां तकरीबन 14,200 एकड़ जमीन पानी में डूबी है और खेतों में खड़ी कपास की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है।

पंजाब में इन नदियों से निकलने वाली सिंचाई नहरों का भी एक पूरा जाल है। ये नहरें सामान्य दिनों में खेतों की प्यास बुझाती हैं लेकिन बरसात के मौसम में यह बाढ़ का पानी उन गावों तक ले जाती हैं जो नदियों से बहुत दूर हैं।

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झेलम, रावी और ब्यास जैसी बड़ी नदियां ही नहीं छोटी नदियां भी रौद्र रूप धारण कर चुकी हैं। ऐसी ही एक खूबसूरत नदी है बेई। दो दशक पहले तक यह गंदा नाला बन चुकी थी। सुल्तानपुर लोधी में यह गुरू नानक देव के प्रसिद्ध गुरुद्वारे के पास जहां से बहती है, वहां से इसे साफ करने के लिए एक बहुत बड़ा अभियान चलाया गया। नदी को साफ करने में कामयाबी भी मिली। इस समय बेई नदी में भी बाढ़ आ चुकी है, सुल्तानपुर लोधी का ऐतिहासिक गुरुद्वारा पानी में डूबा है। इसकी तस्वीरें भी मीडिया में दिखाई दे रही हैं।

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अनुमान है कि इस समय पंजाब का 50 हजार एकड़ से ज्यादा हिस्सा बाढ़ में डूबा हुआ है। इसमें आधी से ज्यादा खेती लायक जमीन है। सेना के 28 काॅलम और सीआरपीएफ की 22 बटालियन राहत पहुंचाने और फंसे हुए लोगों का निकालने में लगी हैं। कई स्वयंसेवी संगठन भी इसमें जुटे हुए हैं। मौसम विभाग की भविष्यवाणियों पर यकीन करें तो अगले कुछ दिन तक यह बारिश जारी रह सकती है, यानी बाढ़ का प्रकोप उसके बाद ही कम होना शुरू होगा।

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इस बाढ़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मौसम की अति के सामने पंजाब कितना असहाय हो जाता है। यहां की नदियां, बांध, खेती और आबादी किसी भी मोर्चे पर अनहोनी से निपटने की कोई तैयारी नहीं दिखती। फिलहाल तो राज्य में बचाव और राहत की जरूरत है लेकिन हर कुछ साल बाद आ धमकने वाली बाढ़ से निपटने का दीर्घकालिक उपाय तो स्थाई बाढ़ प्रबंधन ही होगा। खासकर उस कृषि के लिहाज से यह बहुत जरूरी है जो राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और जो पंजाब को पूरे देश का अन्नदाता बनाती है।

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