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किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति से विचारों का मुक्त प्रवाह प्रभावित: सुप्रीम कोर्ट

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें एस हरीश द्वारा लिखित मलयाली उपन्यास ‘मीशा’ के एक भाग को हटाने की मांग की गई है।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति विचारों के मुक्त प्रवाह को प्रभावित करती है और इसके खिलाफ तब तक कदम नहीं उठाना चाहिए जब तक यह धारा 292 का उल्लंघन नहीं करता। यह धारा अश्लीलता पर प्रतिबंध लगाती है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें एस हरीश द्वारा लिखित मलयाली उपन्यास ‘मीशा’ के एक भाग को हटाने की मांग की गई है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “आप इस तरह के चीजों को बेवजह महत्व दे रहे हैं। इंटरनेट के युग में आप इसे मुद्दा बना रहे हैं। इसे भूल जाना बेहतर है।”

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वकील गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट से कहा कि जिस वाक्य को हटाने की वे मांग कर रहे हैं, उसमें पुजारी वर्ग के खिलाफ कटाक्ष किया गया है। कोर्ट ने इस वाक्य को हटाने को लेकर अनिच्छा जताई। कोर्ट ने आदेश को सुरक्षित रखते हुए उस अखबार को 5 दिनों के अंदर एक नोट दाखिल करने को कहा, जिसने इस विवादस्पद वाक्य को छापा था।

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