ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने हाल में ही भ्रष्टाचार अनुभूति इंडेक्स 2024, यानि करप्शन पर्सेप्शन इंडेक्स 2024 को प्रकाशित किया है, जिसमें 180 देशों में भ्रष्टाचार के स्तर के अनुसार देशों की सूची जारी की गई है और इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर भ्रष्टाचार के प्रभाव का आकलन भी किया गया है। जिस समय यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई, लगभग उसी समय कुम्भ के दौर में प्रयागराज की गंगा में फीकल कोलीफॉर्म, जो पानी में मलीय प्रदूषण का सूचक है, के बहुलता की खबर भी आई। इंडेक्स के अनुसार हम सबसे भ्रष्ट देशों में शामिल हैं और दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण हमारी कोई प्राथमिकता नहीं है। भ्रष्टाचार केवल पैसे का लेनदेन ही नहीं होता बल्कि जनता तक गलत सूचनाएं पहुंचाना और पर्यावरण संरक्षण के लिए उदासीन रहना भी भ्रष्टाचार ही है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने फूहड़ तरीके से केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को नकार कर न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है बल्कि भ्रष्ट अधिकारियों को सत्ता की सुरक्षा देने के साथ ही करोड़ों श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया है।
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भ्रष्टाचार अनुभूति इंडेक्स 2024 के अनुसार दुनियाभर में भ्रष्टाचार का स्तर खतरनाक है और इसे काम करने के ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इसके साथ ही भ्रष्टाचार के कारण दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण और तापमान वृद्धि से जुड़ी आबंटित राशि की लूट बढ़ती जा रही है। इस इंडेक्स को तमाम देशों में भ्रष्टाचार के स्तर को 0 से 100 के स्केल पर आँका जाता है, और फिर देशों को संबंधित अंक दिया जाता हैं। इस स्केल में 0 का अर्थ सर्वाधिक भ्रष्ट और 100 का मतलब भ्रष्टाचार-मुक्त है – जाहिर है कम अंक पाने वाले देश अधिक भ्रष्ट हैं। कुल 180 देशों की सूची में 38 अंकों के साथ भारत का स्थान 96 है – यानि 95 देशों में भारत से कम भ्रष्टाचार है जबकि केवल 84 देशों में भ्रष्टाचार का स्तर हमसे भी अधिक है। ज़ीरो टालरन्स ऑन करप्शन का नारा तो खूब सुनने को मिलता है, पर भ्रष्टाचार के स्तर में हम दुनिया के औसत और यहाँ तक कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के औसत से भी बहुत पीछे हैं। भारत के 38 अंकों की तुलना में वैश्विक औसत 43 और एशिया-प्रशांत क्षेत्र का औसत 44 है।
भ्रष्टाचार अनुभूति इंडेक्स 2024 के अनुसार पूरी तरह से भ्रष्टाचार-मुक्त कोई देश नहीं है और ना ही कोई देश पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है – यानि 100 अंकों वाला और 0 अंक वाला कोई देश नहीं है। सबसे कम भ्रष्टाचार डेनमार्क में है, जिसे सर्वाधिक 90 अंक दिए गए हैं। डेनमार्क के बाद इंडेक्स में फ़िनलैंड, सिंगापूर, न्यूज़ीलैंड, लक्ज़मबर्ग, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया का नाम है।
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इस इंडेक्स में अंतिम स्थान पर, यानि सबसे भ्रष्ट देश साउथ सूडान है जिसे 8 अंक मिले हैं। इससे ऊपर के देश हैं – सोमालिया, वेनेजुएला, सीरिया, येमेन, लीबिया, इरीट्रिया, ईक्वटोरीअल गिनीआ, सूडान और उत्तरी कोरिया। बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में कनाडा और जर्मनी 15 वें स्थान पर, जापान और यूनाइटेड किंगडम 20 वें, संयुक्त अरब अमीरात 23 वें, अमेरिका 28 वें, सऊदी अरब 38 वें, साउथ अफ्रीका 82 वें, ब्राजील 107 वें, मेक्सिको 140 वें और रूस 154 वें स्थान पर है।
भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 18 वें स्थान पर, चीन 76 वें, नेपाल 107 वें, श्रीलंका 121 वें, बांग्लादेश 151 वें, अफगानिस्तान 165 वें और म्यांमार 168 वें स्थान पर है। इंडेक्स में बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान केवल 32 देश ऐसे हैं जहां भ्रष्टाचार में कमी आई है जबकि 148 देशों में इसका स्तर या तो स्थिर है या फिर भ्रष्टाचार का पैमाना बढ़ गया है। दुनिया के दो-तिहाई देशों में इंडेक्स में अंक 50 से भी कम हैं।
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वर्ष 2024 मानव इतिहास का सबसे गरम वर्ष रहा, तीन-चौथाई दुनिया में तापमान से संबंधित सभी रिकार्ड ध्वस्त हो गए, तापमान वृद्धि से मरने वालों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, प्रजातंत्र के कमजोर होने के कारण तापमान वृद्धि रोकने के लिए सत्ता की प्रतिबद्धता कम हो रही है – भ्रष्टाचार पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को भी असफल कर रहा है।
हमारे देश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि पर्यावरण संरक्षण कोई मुद्दा ही नहीं रहता है और सत्ता का नेतृत्व बगैर आंकड़ों के ही या फिर आंकड़ों की बाजीगरी से ही हरेक समस्या, जिसमें पर्यावरण संरक्षण भी शामिल है, को सुलझाने का दावा करता है। इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का बयान है जिसमें उन्होंने प्रयागराज में गंगा का पानी नहाने योग्य ही नहीं बल्कि पीने योग्य भी साबित कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी भी अनेकों बार गंगा को ऐसे ही प्रदूषणमुक्त कर जाते हैं। दिल्ली की नई नवेली बीजेपी सरकार भी यमुना को प्रदूषण-मुक्त करने का वक्तव्य बार-बार दे रही है, कुछ महीनों बाद यमुना में बदबूदार पानी बहता रहेगा पर आंकड़ों में यमुना पूरी तरह प्रदूषणमुक्त हो चुकी होगी। मोदी सरकार में नदियां प्रदूषित रहती हैं, पर भव्य रिवर फ्रन्ट तैयार किए जाए हैं – यमुना के साथ भी यही होने वाला है।
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हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित हरेक सरकारी विभाग पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हैं, बीजेपी सरकारों में भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर भ्रष्टाचार या शिकायत दर्ज करने के सभी रास्ते ही बंद कर दिए गए हैं और यदि आपने फिर भी कोई ऐसी शिकायत करने की हिम्मत की तो शिकायत पर कार्यवाही होने की गारंटी तो नहीं है पर यह तय है सत्ता आपको अपने सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर देखती है।
हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कोई उपलब्धि नजर नहीं आती – जैव-विविधता खतरे में है, जंगलों का क्षेत्र कम होता जा रहा है, पहाड़ दरक रहे हैं, हिमालय टूट रहा है, शहरों में कूड़े के पहाड़ हैं, चारों तरफ प्लास्टिक का कचरा बिखर पड़ा है, पूरा देश वायु प्रदूषण की चपेट में है, नदियां प्रदूषित हैं, भूजल समाप्त हो रहा है, शहरों में शोर का स्तर खतरनाक है – यह सब सरकारी क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार के कारण है। जिस तरीके से देश का विकास केवल वक्तव्यों, भाषणों और पोस्टरों में हो रहा है, उसे तरह ज़ीरो टालरन्स ऑन करप्शन भी भाषणों और पोस्टरों तक ही सीमित है।
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