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यूपी चुनाव: कारोबारी और नौकरीपेशा नहीं भूले हैं कोरोना काल की तकलीफें, गांवों में आवारा पशु बने हैं जी का जंजाल

इस बार के उत्तर प्रदेश चुनाव में कई धारणाओं को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। मसलन बीजेपी मोटे तौर पर शहरी नौकरीपेशा, मध्यम वर्ग और व्यापारियों की पसंदीदा पार्टी रही है। लेकिन कोरोना के समय ये सब अपने आपको असहाय महसूस कर रहे थे।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बड़े शहरों के अपार्टमेंट में रह रहे नौकरीपेशा या व्यवसाय करने वाले मध्यवर्ग पर बीजेपी को काफी भरोसा है। लेकिन कोरोना काल में जो पीड़ाएं उन्होंने भोगी हैं, उसके बाद सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बूते उसके प्रत्याशियों की जीत मुश्किल लगती है। वैसे भी, शहरों से बाहर निकलते ही समझ में आता है कि लोगों के पास सवाल तमाम हैं। ऐसे सवाल जो किसी भी चुने गए जनप्रतिनिधि को परेशान करने वाले हैं। सीधी-सी बात है कि जिन्होंने भी संकट में जनता को उनकी बेहाली पर छोड़ दिया, वे सिर्फ बातों पर इस बार वोट नहीं पाने वाले।

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इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव की अहमियत कहीं ज्यादा है क्योंकि इस दौरान कई धारणाओं को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। जैसे, बीजेपी शहरी और नौकरीपेशा लोगों, मध्यम वर्ग और व्यापारियों की पसंदीदा पार्टी रही है। लेकिन कोरोना के समय इस वर्ग को तमाम परेशानियों से दो-चार होना पड़ा और उन्होंने अपने आपको असहाय महसूस किया। तमाम लोगों की नौकरियां गईं और काम-धंधे छूट गए।

क्या बोलता है शाहजहांपुर का वोटर

रूहेलखंड के शाहजहांपुर जिले में छह विधानसभा क्षेत्र हैं- शाहजहांपुर नगर, तिलहर, जलालाबाद, पुवायां, कटरा और ददरौल। इनमें से पांच सीटों पर बीजेपी ने पिछली बार जीत दर्ज की थी। यहां हर जगह सीधे सवाल किए जा रहे। तिलहर के पाता गांव के रहने वाले रविपाल कहते हैं कि मेरे इलाके के विधायक ने तो पार्टी ही बदल ली, अब किससे सवाल करें। किसी भी किस्म के धुव्रीकरण के नाम पर इस बार वोट नहीं मिलने वाले। मुद्दों की बात करेंगे तो वोट पाएंगे, अन्यथा नोटा का विकल्प तो हमारे पास है ही। गांव की हालत किसी से छिपी नहीं है। सत्ताधारी पार्टी सौगात बांटकर प्रचार तो कर रही है लेकिन रोजगार देने के नाम पर क्या किया, यह बताने की स्थिति में उनका कोई प्रत्याशी नहीं है।

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पुवायां के हरदुआ गांव के अजय मिश्रा सोनू ने प्रदेश के लगभग हर गांव की सबसे बड़ी समस्या- आवारा जानवरों का छूटते ही जिक्र किया। उन्होंने बताया कि छुट्टा जानवरों के आतंक की वजह से उन्होंने खेती ठेके पर दे दी है। ऐसे सैकड़ों किसान हैं जो जानवरों के आतंक और फसलों की सही मूल्य न मिलने से तंग आकर शहर चले गए और वहां नौकरी कर रहे हैं। गांव पलायन से जूझ रहे हैं।

जलालाबाद सीट के परौर के रहने वाले शिक्षक मोहित सिंह कहते हैं कि विकास मुद्दा बनना चाहिए और यह भी देखा जाना चाहिए कि नए रोजगार के कितने साधन विकसित हुए हैं। वह इस बात पर दुख जताते हैं कि चीजें फ्री मिलने के लालच में लोग वोटिंग करते हैं। इसीलिए पार्टियां एजेंडे पर बात न करके सीधे लालच देती हैं कि यह फ्री मिलेगा, वह फ्री देंगे। मोहित सिंह नेताओं के दलबदल को भी विश्वास को भ्रमित करने वाला बताते हैं।

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सुनारा बुजुर्ग गांव के प्रबल कुमार साफ कहते हैं कि फ्री अनाज की योजना सिर्फ वोट लेने के लिए हैं। इस बार किसी-न-किसी योजना के माध्यम से लोगों के खाते में पैसे पहुंचाए गए हैं। लोग भी लालच में वोट दे देते हैं। मीठी-मीठी बातों में आ जाते हैं। वैसे, प्रबल कहते हैं कि इस बार लोग परेशान रहे हैं और वोटिंग पर इसका भी असर पड़ेगा।

मुरादाबाद में भी कम नहीं हैं मुश्किलें

मुरादाबाद जनपद की छह में से दो सीटों पर ही बीजेपी पिछली बार विजयी रही थी जबकि शेष चार सीटें सपा के पास गई थीं। सपा ने इनमें से दो विधायकों के टिकट इस बार काट दिए हैं। इनमें से एक कांग्रेस में जबकि दूसरे बसपा में चले गए हैं। वैसे, यह इलाका बीजेपी के लिए सब दिन परेशानी का सबब रहा है। 2019 में जिस वक्त बीजेपी की लहर चल रही थी, तब भी लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां नहीं जीत पाई थी। इन हालात की वजह से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुरादाबाद का दौरा कई बार कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने स्थानीय विकास की बातें भी कीं लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान लोग समस्याओं की चर्चा भी साथ-साथ कर रहे हैं।

रोजगार का मुद्दा यहां सबसे प्रमुख नजर आता है। सूफी इस्लामिक बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी साफ कहते हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा तो रोजगार ही है क्योंकि युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं और कोरोना के बाद तो हालत और खराब हो गई। छात्रा इशिका भी कहती हैं कि युवा, मजदूर, खास तौर से पीतल भट्ठियों में काम करने वाले मजदूर परेशान हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता हर किशोर भी कहते हैं कि किसान परेशान हैं तो युवाओं के सामने नौकरी का संकट है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सारी आवाजें इन जैसी ही हों। छात्रा गुलनाज कहती हैं कि सरकार ने कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा काम किया है। मुस्लिम महिला महक कहती हैं, पिछले साढ़े चार साल में माहौल में फर्क आया है। कानून-व्यवस्था दुरुस्त हुई है। महिला सशक्तीकरण पर काम हुआ है। बीजेपी को इनका लाभ मिलेगा।

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मुरादाबाद से पीतल, तांबे के गिफ्ट एवं अन्य सजावटी सामानों का विश्व भर में निर्यात होता है। खासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, मध्य पूर्व एशिया में मुरादाबाद की धाक है। कारोबारियों का कहना है कि पिछले पांच सालों में कारोबार तो बढ़ा, पर मुद्दे जस के तस हैं। मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव अवधेश अग्रवाल कहते हैं कि इंडस्ट्रियल एरिया विकसित करने और ईएसआई हॉस्पिटल की मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं।

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