सरकारी दावे चाहे कुछ भी कहें, पर गांवों में जाकर देखी हुई स्थिति तो यही बताती है कि बुंदेलखंड के गांवों में जल संकट की स्थिति और विकट हो रही है।
18 मई को तालबेहट ब्लाक (ललितपुर जिले) के चार गांवों का दौरा कर जो स्थिति सामने आई वह बहुत चिंताजनक है। यह चार गांव हैं - गुलेदा (सहरिया बस्ती), ललोन, चक लालेन और भरतपुर।
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इन चारों गांवों में जल की स्थिति विकट होने के बावजूद हमारे दौरे के समय तक टैंकरों का पानी नहीं पहुंच रहा था। इन सभी चार गांवों के लोगों ने बताया कि जल समस्या उनकी सबसे विकट समस्या है। सबने एक आवाज में कहा कि यदि किसी को हमें वास्तव में राहत देनी है तो पहले हमारी जल समस्या को सुलझाए, इसे ही सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाए।
आश्चर्य की बात यह है कि कुछ स्थानों पर थोड़ा सा प्रयास कर जल समस्या को सुलझाया जा सकता है, पर यह कार्य किया ही नहीं गया। गुलेदा सहरिया बस्ती के लोगों ने बताया कि थोड़ी ही दूरी पर नहर है, बस उसे इस गांव तक पंहुचाने का काम बहुत समय से अटका हुआ है।
दूसरी ओर भरतपुर की स्थिति यह है कि वहां नहर है तो उसमें पानी नहीं है। इस गांव की एक अन्य विशेषता यह है कि काफी खर्च कर एक पाइप लाइन स्कीम बनी भी है, पर भ्रष्टाचार के कारण इसे ठीक से बनाया नहीं गया, जिससे जल संकट बना रहा। यहां जल आपूर्ति के लिए बिजली आपूर्ति जरूरी है और बिजली आपूर्ति इतनी अनिश्चित है कि इसका असर जल आपूर्ति पर भी पड़ता रहता है और लोग घंटों बिजली और पानी दोनों का इंतजार करते रहते हैं।
कुएं निरंतर सूख रहे हैं और वैकल्पिक व्यवस्था हो नहीं रही है। सिंचाई के साधन सिमटते जा रहे हैं और साथ में पेयजल व्यवस्था विकट हो रही है। कहीं साइकिल पर तो कहीं पैदल लोग 1 या 2 किमीटर दूर से पानी लाने के लिए भटकने को मजबूर हैं। भीषण गर्मी में न पेयजल की व्यवस्था ठीक हो पा रही है और न ही नहाने की।
हैंडपंप थोड़ा सा पानी उलीच कर पानी देना बंद कर देते हैं। फिर इंतजार करना पड़ता है कि उसमें पानी कब आएगा। कुछ लोग इंतजार करते हैं तो कुछ लोग दूर कहीं और पानी की तलाश में चल पड़ते हैं।
जब इंसान के लिए पेयजल का संकट बढ़ रहा है तो निश्चय ही किसानों के पशुओं के लिए तो जल संकट और भी कठिन होगा। लालोन और लालोन चक के निवासियों ने बताया कि प्यास के कारण किसानों के पशु मर रहे हैं। जब लालोन चक के निवासियों से पूछा गया कि इस वर्ष अभी तक (1 जनवरी से 18 मई के बीच) किसानों के कितने पशु मरे होंगे तो उन्होंने आपस में सलाह कर बताया कि लगभग 100 पशु मरे होंगे। चारे की भी बहुत कमी है।
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जब लेखक ने गांववासियों से पूछा कि क्या वे किसी जांच दल के सामने यह आंकड़ा बताएंगे तो उन्होंने कहा कि यह सच्चाई है, इसलिए अवश्य बताएंगे। हो सकता है कि इसमें थोड़ी अतिश्योक्ति भी हो, पर इतना निश्चित है कि किसानों के बहुत से पशु हाल के समय में मरे हैं और जल संकट चाहे इसका एकमात्र कारण न हो, पर इसका एक मुख्य कारण अवश्य है।
गांववासियों ने बताया कि जब तक हमारे गांव से जल संकट दूर नहीं होगा तब तक शौचालयों का उपयोग भी सफल नहीं होगा। वैसे यहां इन चार गांवों में बहुत ही कम शौचालय बने हैं और 95 प्रतिशत लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं।
जहां एक ओर गांवों का जल-संकट दूर करने के लिए सरकार पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं करवा रही है। वहीं दूसरी ओर करोड़ों रुपये केन-बेतवा लिंक जैसी बेहद विवादास्पद योजना पर खर्च करने की तैयारी है, जिससे कि जल संकट सहित अनेक पर्यावरणीय समस्याएं और विकट हो सकती हैं।
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