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जब आप लॉकडाउन में घर में बंद थे, मोदी सरकार ने कर ली रेलवे को बेचने की तैयारी, न जनता से पूछा, न संसद की ली राय

सितंबर में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने इसकी पुष्टि की कि सरकार ने कम से कम 109 रूट पर रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। इस दौरान देश में लॉकडाउन था तो न तो जनता से राय मांगी गई और न संसद में इस बारे में विचार-विमर्श हुआ।

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फोटो : Getty Images Pallava Bagla

पिछले 6 साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद और उनके मंत्री यह दावा करते रहे हैं कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाएगा। इस साल जनवरी में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इंदौर में भी कहा कि पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के जरिये सिर्फ सुविधाओं में बेहतरी की जाएगी। लेकिन पिछले आठ माह के दौरान रेल मंत्रालय 109 रूट पर निजी कंपनियों की ट्रेनें चलाने, 50 स्टेशनों के निजीकरण करने और माल-असबाब रखने की रेलवे की जगहों (गुड्स शेड्स) को निजी कंपनियों को सौंपने की दिशा में आगे बढ़ गया है। सितंबर में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने इनकी पुष्टि की। इन सबकी गति कोविड-19 के प्रकोप की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान बढ़ी और इनके लिए न तो जनता से राय मांगी गई और न संसद में इस बारे में विचार-विमर्श हुआ।

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रेलवे बोर्ड के चेयरमैन का कहना है कि अप्रैल, 2023 में निजी रेल सेवाएं शुरू हो जाएंगी। बताया जाता है कि 109 रूटों पर 151 उन्नत रेलगाड़ियां चलाने में कम-से-कम 15 कंपनियों ने रुचि दिखाई है। रेलवे सिर्फ गार्ड और ड्राइवर देगा। स्वाभाविक ही इनमें से किसी कंपनी के पास रेलवे को चलाने का कोई अनुभव नहीं है। इनकी योग्यता सिर्फ यह रखी गई है कि उनकी कुल संपत्ति (नेट वर्थ) कम-से-कम 1,000 करोड़ होनी चाहिए। जिन 15 कंपनियों ने आवेदन किए हैं, उनमें भारतीय रेल खानपान और पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी), आर के एसोसिएट्स एंड होटलियर्स प्राइवेट लिमिटेड, साईनाथ सेल्स एंड सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड और वेलस्पन एंटरप्राइजेज लिमिटेड वगैरह हैं। इनमें से कुछ कंपनियां पिछले छह साल के दौरान वजूद में आई हैं और वे मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हाइवे के कई बड़े प्रोजेक्ट्स हथियाने में कामयाब रही हैं। इसे संयोग कहा जा सकता है कि इनमें से कई कंपनियां गुजरात की हैं।

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रेलवे की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इस प्रोजेक्ट के तहत रेलवे में निजी क्षेत्र का लगभग तीस हजार करोड़ रुपये का निवेश होगा। इसका मकसद रेलवे में नई तकनीक लाना, मरम्मत पर होने वाले खर्च को कम करना, यात्रा समय कम करना, नौकरियों को बढ़ावा देना, सुरक्षा बढ़ाना और यात्रियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं देना है। निजी क्षेत्र की कंपनियां इनके वित्त पोषण, संचालन और रखरखाव के लिए जिम्मेदार होंगी। गाड़ियां शुरू करने वाली निजी कंपनी को रेलवे को तय हॉलेज चार्ज, एनर्जी चार्ज और कुल आय में हिस्सा देना होगा। ये दरें टेंडर के जरिये तय की जाएंगी। ये कंपनियां रेलवे के गार्ड और ड्राइवर का तो उपयोग करेगी ही, रेल पटरियों, स्टेशनों, सिग्नल वगैरह और सेफ्टी-संबंधी व्यवस्थाओं का उपयोग करेंगी।

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हालांकि केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल अब भी कह रहे हैं रेलवे का निजीकरण नहीं होगा। लेकिन वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स ने 2020 से 2025 के बीच नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के लिए जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें भिन्न बातें हैं। इसमें बताया गया है कि 2013 से 2019 के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर पर 57 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इनमें से 10 फीसदी रेलवे पर खर्च किए गए, यानी लगभग 5.7 लाख करोड़ रुपये रेलवे पर खर्च किए गए। जबकि 2020 से 2025 के बीच इस पर 111 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इनमें से 13.67 लाख करोड़ रुपये रेलवे पर खर्च करने को कहा गया है। इसने यह भी सिफारिश की कि इस अवधि के दौरान 500 निजी ट्रेनों को अनुमति दी जाएगी और 750 में से 30 फीसदी, यानी 225 स्टेशनों का निजीकरण कर दिया जाएगा। इसके अलावा कुल कार्गो का 30 फीसदी भी प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए। यहां तक कि रोलिंग स्टॉक भी प्राइवेट हाथों में सौंपने को कहा गया है।

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23 सितंबर, 2020 को लोकसभा में पूछे एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि किराये के निर्धारण के लिए रेग्युलेशन मेकैनिज्म पर विचार किया जा रहा है। लेकिन इससे पहले अगस्त में हुई एक प्री-बिड मीटिंग में बताया गया कि प्राइवेट ट्रेन ऑपरेटर अपनी मर्जी से किराया निर्धारित कर सकता है। उस पर रेलवे प्रशासन का कोई दखल नहीं होगा।

एक कंपनी कितने क्लस्टर हासिल कर सकती है, इस बारे में भी सरकार लगातार नियम बदल रही है। जुलाई, 2020 में जारी नियम में सरकार ने कहा कि एक अकेली कंपनी (बिडर) तीन क्लस्टर से ज्यादा हासिल नहीं कर सकती लेकिन सितंबर आते-आते इसमें बदलाव कर दिया गया और कहा गया कि एक बिडर 12 क्लस्टर हासिल कर सकता है, यानी कि एक ही कंपनी सभी कलस्टर हासिल कर सकती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि 109 रूट पर 151 जोड़ी ट्रेनों को प्राइवेट करने की योजना है और इन ट्रेनों को 12 क्लस्टर में बांटा गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेलवे प्राइवेट कंपनियों के हिसाब से शर्तों में भी फेरबदल पर फेरबदल कर रही है।

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रेलवे के पास विशाल खाली जमीन है। इनकी कीमत लगातार बढ़ती गई है। सरकार इसके बड़े हिस्से को भी निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी कर चुकी है। अभी 23 सितंबर को राज्यसभा में जानकारी दी गई कि निजी भागीदारी के जरिये स्टेशनों और उसके आसपास की अतिरिक्त भूमि और एयर स्पेस का लाभ उठाने के लिए स्टेशन पुनर्विकास योजना तैयार की गई है। सरकार ने यह भी बताया कि निजी कंपनियों ने इनमें रुचि दिखाई है।

कर्मचारी संगठनों को बार-बार विश्वास दिलाया जा रहा है कि इन सबमें उनकी नौकरियों पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन साथ ही साथ रेलवे ने 50 साल से अधिक उम्र के कर्मचारियों को “जनहित” में सेवानिवृत्त करने और रेलवे बोर्ड ने सभी एरिया जीएम को इन कर्मचारियों की सूची बनाने के निर्देश दिए हैं।

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