डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के शव को चेन्नई के मरीना बीच पर दफ्न करने की इजाज़त मद्रास हाईकोर्ट ने दे दी है, और बुधवार शाम 5 बजे उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया जाएगा। तमिल राजनीति के श्लाका पुरुष और द्रविड़ आंदोलन से गहरे जुड़े रहे करुणानिधि का मंगलवार शाम देहांत हो गया था। तमिलनाडु सरकार ने मरीना बीच पर उन्हें दफ्न करने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा। देर रात तक हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस के घर पर सुनवाई हुई, जिसे बुधवार सुबह 8 बजे तक के लिए टाल दिया गया था। सुबह सुनवाई शुरु होने के बाद आखिरकार फैसला आ गया कि करुणानिधि को मरीना बीच पर ही दफ्न किया जाएगा।
इस पूरी कवायद में एक सवाल जो सबके दिमाग में है कि आखिर हिंदू होते हुए भी करुणानिधि के शव को चिता पर रखने के बजाए दफ्न क्यों किया जा रहा है?
इस सवाल का जवाब तमिलनाडु के इतिहास में छिपा है। दरअसल द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत ही ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी। इस आंदोलन के चलते तमिलनाडु के लोगों ने हर उस व्यवस्था को मानने से इनकार कर दिया जिसकी परंपरा ब्राह्मणवाद से उपजती है।
तमिलनाडु की लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहीं जयललिता का भी उनके धर्म के विपरीत दाह संस्कार नहीं हुआ था और उन्हें भी दफ्न किया गया था। यूं भी तमिलनाडु में मुख्यमंत्री को व्यक्ति पूजा का आदर्श कहा जा सकता है, क्योंकि पूरे राज्य में किसी भी देवी-देवता की तरह ही उनकी भी पूजा होती है, और उनके नाम पर बने मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
मद्रास विश्वविद्यालय में तमिल भाषा और साहित्य के रिटायर्ड प्रोफेसर वी अरासु ने एक बार बीबीसी उर्दू को बताया था कि इन नेताओं का द्रविड़ आंदोलन से जुड़ा होना ही इसका सबसे बड़ा कारण है। इस आंदोलन से जुड़ा कोई भी नेता उनकी जाति बताने वाले उपमान का इस्तेमाल नहीं करते हैं। साथ ही द्रविड़ आंदोलन का हिंदू धर्म के किसी भी ब्राह्मणवादी परंपरा में विश्वास नहीं है।
वहीं बीबीसी को वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय ने बताया था कि जब द्रविड़ आंदोलन चरम पर था तब वहां बहुत से मंदिर तोड़े गए थे, साथ ही तमाम ब्राह्मणवादी परंपराओं को भी तोड़ दिया गया था। दाह संस्कार भी उन्हीं परंपराओं में से एक था, जिसे लोगों ने मानना बंद कर दिया था। मधुकर उपाध्याय के मुताबिक जब लोगों की जिंदगी में भगवान की जगह खाली हो गई तो लोगों ने वहां के नेताओं और कलाकारों को अपना भगवान मान लिया और उनके मंदिर नजर आने लगे।
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करुणानिधि हों या जयललिता, दोनों ही द्रविड़ आंदोलन का हिस्सा रहे थे। जयललिता ने अपने राजनीतिक गुरु और अपने समय के प्रसिद्ध तमिल अभिनेता एम जी रामाचंद्रन की मौत के बाद पार्टी की कमान संभाली थी। एमजीआर को भी उनके निधन के बाद दफ्न किया गया था। उनकी कब्र के करीब ही द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता और डीएमके संस्थापक अन्नादुरई की भी कब्र है।
इसी परंपरा के तहत ही डीएमके ने करुणानिधि को भी वहीं दफ्न करने की मांग की थी, जिसे तमिलनाडु की एआईएडीएमके सरकार ने मानने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था।
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