भारत की रक्षा योजना समिति की स्थापना 19 अप्रैल 2018 को की गई थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया था और इसमें विदेश, वित्त और रक्षा सचिवों के अलावा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेना प्रमुखों को शामिल किया गया था।
इस समिति के सामने राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा प्राथमिकताओं, विदेश नीति की अनिवार्यताओं, परिचालन निर्देशों और संबंधित आवश्यकताओं, प्रासंगिक रणनीतिक और सुरक्षा-संबंधी सिद्धांतों, रक्षा अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे के विकास की योजनाओं, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, रणनीतिक रक्षा समीक्षा और सिद्धांतों, अंतरराष्ट्रीय रक्षा जुड़ाव रणनीति’ आदि की देखभाल करने आदि के विशाल काम थे। इस समिति की एक ही बार, 3 मई 2018 को, बैठक हुई थी और ऐसा लगता है कि उसके बाद इसकी कोई बैठक ही नहीं हुई।
चूंकि देश के पास को राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत नहीं था, इसलिए लगता है कि भारत ने संभवतः ऐसे सिद्धांत पर ही भरोसा किया है जिसे अनौपचारिक रूप से डोवाल सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। भले ही लिखित तौर पर यह सिद्धांत सामने नहीं आया हो, लेकिन कई वीडियो इस बारे में उपलब्ध हैं। फरवरी 2014 में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त होने से कुछ सप्ताह पहले, डोवाल ने तंजावुर में शास्त्र विश्वविद्यालय में भाषण दिया था। अपने भाषण के दौरान, उन्होंने निम्नलिखित बिंदु रखे:
आतंकवाद भारत के लिए एक रणनीतिक खतरा है क्योंकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय परिघटना है; और चूंकि पाकिस्तान ने इसे पोषित और बढ़ावा दिया; और क्योंकि भारत में बड़ी मुस्लिम आबादी है।
लेकिन आतंकवाद से इसलिए नहीं लड़ा जा सकता क्योंकि यह एक विचार है, एक शब्द है। केवल आतंकवादियों से लड़ा जा सकता है (या उनकी क्षमता को ‘कम’ किया जा सकता था), क्योंकि केवल एक ठोस दुश्मन को ही हराया जा सकता था, किसी शब्द को नहीं।
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इस तरह भारत को अपने सामने मौजूद खतरे को नाम देना पड़ा, और इसका नाम पाकिस्तान है। दुश्मन की पहचान करने के बाद डोवाल ने सवाल पूछा था, ‘आप पाकिस्तान से कैसे निपटेंगे?’ और फिर विस्तार से इस बारे में बताया था।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की समस्या दरअसल पाकिस्तान का अर्ध-परंपरागत युद्ध शुरु करने (सीमा पार आतंकवाद और उग्रवाद फैलाने) की क्षमता है और उसके पास मौजूद परमाणु हथियारों के खतरे के कारण भारत इस पर अपनी सैन्य प्रतिक्रिया को बहुत अधिक आगे नहीं ले जा सकता है।
डोवाल ने कहा था: 'मैंने उनके (पाकिस्तान के) पास परमाणु हथियार होने, सामरिक हथियार प्रणाली, मिसाइल, चीन के साथ सामरिक साझेदारी होने के बारे में बात की। हम इससे कैसे निपट सकते हैं?'
यह आसान है। उन्होंने कहा: 'आप जानते हैं कि हम दुश्मन से तीन तरीकों से भिड़ते हैं। एक है डिफेंस मोड। चौकीदार और चपरासी। अगर कोई यहां आता है तो हम उसे (घुसने से) रोक देंगे। एक है डिफेंसिव-ऑफेंस। खुद को बचाने के लिए हम उस जगह पर जाएंगे जहां से हमला हो रहा है। तीसरा है आक्रामक मोड जहां आप सीधे आगे बढ़ते हैं। आक्रामक मोड में परमाणु सीमा एक कठिनाई है, लेकिन डिफेंसिव-ऑफेंस में नहीं।'
उन्होंने कहा था कि फिलहाल मनमोहन सिंह की सरकार के तहत हम केवल रक्षात्मक मोड में काम करते हैं।
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एक तरह से वह यह सुझाव दे रहे थे कि भारत को पारंपरिक युद्ध के अलावा अन्य तरीकों से पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए। उनके शब्दों में: '... पाकिस्तान की कमज़ोरियों को पहचान कर कदम उठाना। इसमें अर्थव्यवस्था, आंतरिक सुरक्षा या राजनीतिक कुछ भी हो सकता है। दूसरा अंतरराष्ट्रीय अलगाव। मैं विवरण में नहीं जा रहा हूँ। लेकिन...आप रक्षात्मक मोड से बाहर आएं।'
उन्होंने कहा कि ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि आक्रामक मोड का तो रास्ता बंद था क्योंकि परमाणु सीमा तक बढ़ने पर कोई नियंत्रण नहीं था। इसी तरह, उनके लिए, रक्षात्मक मोड बेकार था। उन्होंने कहा, 'तुम मुझ पर सौ पत्थर फेंकते हो, मैं नब्बे पत्थर फेंकता हूँ लेकिन दस पत्थर फिर भी मुझे चोट पहुँचाते हैं। मैं कभी नहीं जीत सकता। या तो मैं हार जाता हूँ या गतिरोध पैदा हो जाता है। तुम अपने समय पर युद्ध शुरू करते हो, तुम जो चाहो पत्थर फेंकते हो, तुम जब चाहो बात करते हो, तुम जब चाहो शांति पाते हो।
उन्होंने आगे कहा था, 'अगर आप रक्षात्मक-आक्रामक हैं तो हम देखेंगे कि साम्यावस्था का संतुलन कहां है। पाकिस्तान की कमज़ोरी भारत की तुलना में कई गुना ज़्यादा है। एक बार जब उन्हें पता चलेगा कि भारत ने अपना गियर रक्षात्मक से रक्षात्मक-आक्रामक में बदल दिया है, तो वे हड़बड़ा जाएंगे। आप एक मुंबई कर सकते हैं, आप बलूचिस्तान खो सकते हैं। इसमें कोई परमाणु युद्ध शामिल नहीं है। सैनिकों की कोई मुठभेड़ नहीं है। अगर आप चालें जानते हैं तो हम चालें आपसे बेहतर जानते हैं।'
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उन्होंने आगे कहा: 'हमारी एकमात्र कठिनाई यह रही है कि हम रक्षात्मक मोड में रहे हैं। अगर हम रक्षात्मक-आक्रामक मोड में होते तो हम अपने हताहतों की संख्या को कम कर सकते थे।'
यह डोवाल सिद्धांत था। इसने भारत के लिए रणनीतिक खतरा पाकिस्तान से आतंकवाद को माना और इसका जवाब दुश्मन के साथ वैसा ही व्यवहार करना था जैसा तुम्हारे साथ किया जा रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि इस अलिखित सिद्धांत को सरकार ने अपनाया या नहीं, लेकिन एनएसए के रूप में डोवाल के एक दशक का मतलब है कि इसका एक मजबूत प्रभाव रहा होगा।
2020 में भारत को दूसरे मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस स्थिति का आकलन करते हुए पूर्व जनरल प्रकाश मेनन ने कहा था कि कई दशकों से भारत की सेना के लिए राजनीतिक मार्गदर्शन पाकिस्तान को तत्काल खतरे के रूप में देखता रहा है। लेकिन अब जब चीन का खतरा दरवाजे पर है, तो इसे बदलना होगा।
सेना द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अपेक्षित राजनीतिक उद्देश्य यूपीए के तहत तैयार किए गए 'रक्षा मंत्री के निर्देश' नामक दस्तावेज़ में निहित थे। जिसमें यह बताया गया था कि संघर्ष की आशंका में सशस्त्र बलों को कितना गोला-बारूद और स्पेयर स्टॉक में रखना चाहिए। जनरल मेनन ने कहा कि यह निर्देश 'सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अभाव के कारण अभी भी प्रासंगिक नहीं है। एनएसए की अध्यक्षता वाली रक्षा योजना समिति को दो साल पहले यह कार्य सौंपा गया था। अभी तक कुछ भी सामने नहीं आया है।' यह 2020 की बात है।
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पहलगाम के बाद स्थिति फिर से पश्चिमी मोर्चे पर आ गई है। चीन के साथ टकराव को पांच साल हो चुके हैं और रक्षा योजना समिति के गठन को सात साल हो चुके हैं। शायद हाल की घटनाएं सरकार को एक राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत लागू करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी जिसके आधार पर हम पारंपरिक या आतंकवादी हमलों के दौरान कार्रवाई कर सकें।
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