अपने बिहार की डबल इंजन सरकार का तो ऐसा लगता है, दोनों इंजिन फेल हैं। एक इंजन तो बिल्कुल बैठा हुआ है और दूसरा भी समझो बैठा हुआ- सा है। मैकेनिकों ने कह दिया है कि नीतीश -इंजन को तो हम क्या रामचंद्र जी भी आकर सुधार नहीं सकते। चाहें तो मोदीजी उन्हें बुलाकर देख लें। मोदी जी आप चाहे, उनका मंदिर बनाएं या न बनाएं, इसका कुछ करना उनके बस में भी नहीं है!
दूसरा 'डबल मोदी' इंजन भी खटारा-सा है। चलता कम है, धुंआ ज्यादा छोड़ता है, खटर-पटर, लटर-शटर ज्यादा करता है। नाक, कान, आंख और तो और दांतों के बीच की जगह में भी इसका धुंआ घुस जाता है। फेफड़ों को इतना नुकसान पहुंचाता है कि जैसे पांच साल हर सवारी ने चेन स्मोकिंग की हो। उसके साथ इसे भी कबाड़ी को बेच दो तो चुनाव हारने के लिए कुछ रुपये और हाथ में आ जाएंगे।
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वैसे दोनों के ड्राइवर भी रिटायरमेंट की उमर पार कर चुके हैं। इनको आंखों से कम दिखता है, कानों से ठीक से सुनाई नहीं देता। हाथ और पांव भी इनके कांपने लगे हैं, मगर 'सेवा' लेने की उमर में ये 'सेवा' देने पर आमादा हैं। रोटी खाने में दिक्कत है, मगर मेवे की चाहत गई नहीं!
तो भाइयों-बहनों ऐसे डबल इंजन की ऐसी खटारा गाड़ी से उतरकर, थोड़ी देर अगली एक्सप्रेस गाड़ी का इंतजार कर लो। उसके ड्राइवर युवा हैं। गाड़ी भी नई है। आराम से पहुंच जाओगे। इनके पास न नया इंजन है, न नई गाड़ी है, न नया ड्राइवर है। न नौकरी है, न रोजगार है, बस दे दनादन भाषण है। हिन्दू-मुस्लिम करने के लिए इन्हें आधी रात को भी जगा दो तो जयश्री राम करते हुए संघ-दक्ष हो जाएंगे। एक ही खटारा इंजन है और इस बेचारे को नीतीश-इंंजन को भी खींचना है।
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तो इंजन खटारा, ड्राइवर रिटायरशुदा, एक्सटेंशन पर हैं। नये ड्राइवर आए कि ये रिटायर कर दिए जाएंगे। इनकी गाड़ी में बैठोगे तो रास्ते में गाड़ी और ड्राइवर धोखा दे देंगे। आधी रात के बाद ठेठ जंगल में ला पटकेंगे। ठंड के दिन हैंं, ठिठुर जाओगे। बड़े-बूढों की जान खतरे में पड़ जाएगी। गलत पटरी पर ले गए, दूसरी ट्रेन से टकरा दिया तो किसका क्या होगा, पता नहीं!
इसलिए उतरो-उतरो, अभी उतरो। अभी तो स्टेशन पर ही गाड़ी खड़ी है। खुली नहीं है। नया इंजन जल्दी लग जाएगा। सफर फिर शुरू हो जाएगा। वैसे सवारियों के उतरते जाने से रिटायर्ड ड्राइवर घबराए हुए हैं। इनकी नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। जरा देर की तो जो बैठा रह गया, उसको लेकर कहीं ये एकदम से न चल दें। जो उतर रहा है, वह पटरी के नीचे आ जाए तो भी इन्हें परवाह नहीं। किसी के बच्चे गाड़ी में रह जाएं, किसी की गठरी छूूट जाए, इसकी इन्हें चिंता नहीं।
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पता नहीं घबराहट में ये दोनों ड्राइवर ज्यादा होशियारी दिखाने के चक्कर में क्या कर बैठें! एक कहे उत्तर जाना है, दूसरा कहे, बेवकूफ भूल गया, दक्षिण जाना है। एक कहे, पूरब जाना है, दूसरा कहे, नहीं, हम तो पश्चिम जाएंगे। इस चक्कर में क्या घट जाए, दुर्घटना के इतिहास में नया क्या जुड़ जाए, मालूम नहीं!
मतलब ये गाड़ी कतई सेफ नहीं है। खटारा इंजन के खटारा ड्राइवर जंगल में ले जाकर छोड़ दें तो वहां शेर-चीतों से भले बचाव हो जाए, मगर इनके बटमारों की 'देशसेवा ' से बचना कठिन होगा। बोटी-बोटी नोंच लेंगे। बीच रास्ते में ये ड्राइवर साहबान यह भी कह सकते हैं- यहां से आगे इसे प्राइवेट आपरेटर चलाएंगे। आगे जाना है तो टिकट खिड़की खुली है, नया टिकट ले आओ। जल्दी करो। और सुनो, ये जितना मांगें, चुपचाप दे देना, वरना ये यहीं उतार देंगे। यहां का स्टेशन भी प्राइवेट है। रात यहां जमीन पर सोने नहीं देंगे। समोसा भी खाना चाहोगे तो सौ रुपये का मिलेगा। खाने के बाद निकाल बाहर करेंगे। यहां से कोई दूसरी सरकारी ट्रेन नहीं मिलेगी।
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ये भी हो सकता है कि खटारा ट्रेन खरामा-खरामा चल तो जाए, मगर तुम्हें जाना हो मुंबई और ये पहुंचा दें अयोध्या। वहां ले जाकर कहें यहां मंदिर बन रहा है, कारसेवा करो। पुण्य का काम है। ये बन जाएगा, तब तुम्हें जहां जाना हो, मुफ्त में ले जाएंगे। नहीं माने तो नक्सली घोषित कर देंगे। इन ड्राइवरों के ईमान का भरोसा नहीं।
इसलिए सवारियों, सावधान। ये हवा, पानी, धूल, गोबर किसी से भी ' न्यू इंडिया' की निराकार इमारत बनाने लगते हैं। इनके लिए विरोधियों को जेल में ठूंसना 'न्यू इंडिया' बनाना है। 370 हटाना 'न्यू इंडिया' बनाना है। अडाणी-अंबानी की जी हुजूरी करना 'न्यू इंडिया' बनाना है। सीएए-एनआरसी थोपना 'न्यू इंडिया' बनाना है। बनाना चाहो तो 'न्यू इंडिया' ही बनाओ। 'अच्छे दिन' ला चुके, अब 'न्यू इंडिया' बनाओ और नहीं बनाना है तो जल्दी उतर जाओ। दुविधा में दोनों गए, न माया मिली न राम।
इन फकीरों से कहो, बाबा अब आपके आराम का समय है। ओढ़ो और सो जाओ। एक कंबल और चाहिए तो ले आऊं, बाबा संकोच मत करो!
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