एक अमेरिकी विद्वान डैन वांग ने अपनी एक किताब में इस बात को समझाने की कोशिश की है कि हाल के वर्षों में चीन का उत्थान कैसे हुआ। डैन वांग का सिद्धांत है कि चीन इंजीनियरों का देश है और उसकी सरकार में भी इंजीनियरों का शासन है। वांग अमेरिका को वकीलों का देश मानते हैं। उनका कहना है कि चीन विनिर्माण और निर्माण में माहिर है, जबकि अमेरिका ऐसा नहीं कर पाता। आखिर ऐसा क्यों है?
इसका जवाब चीन सरकार द्वारा चुने गए रास्तों से जुड़ा है, खासतौर से 2015 में 'मेड इन चाइना 2025' योजना सामने लाए जाने के बाद से बदले हालात में। हालांकि वांग बताते हैं कि कभी-कभी ये विकल्प कारगर नहीं होते। इंजीनियरिंग वाली सोच के चलते ही शंघाई में कड़ा लॉकडाउन लगा था या सिर्फ एक ही बच्चे जैसी नीति बनाई गई थी। लेकिन इंजीनियरिंग वाली सोच के चलते ही चीन की आर्थिक नीति ऊंचे स्तर पर कामयाब रही। हाई-स्पीड रेल, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, जहाज निर्माण और विमानन जैसे क्षेत्रों में यह सबसे आगे हो गया तो सेमी-कंडक्टर, रॉकेटर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) के क्षेत्र में भी इसने काफी प्रगति की।
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ये वे सारे क्षेत्र थे जिनके बारे में सरकार ने जो कुछ हासिल करने का इरादा जाहिर किया था, वह हासिल कर लिया। यह एक दिलचस्प मामला है और इस पर हम आगे भी बात करेंगे। लेकिन आज मैं यह सवाल पूछना चाहता था: भारत सरकार ने क्या हासिल करने का इरादा किया था और क्या वह इसमें सफल रहा है?
अर्थव्यवस्था, रोज़गार और ख़ासकर विदेश नीति के मामले में, जवाब साफ़ है और बहस सिर्फ़ इस बात पर है कि इसमें कसूरवार कौन है। लेकिन हम इसकी बात नहीं कर रहे। हम एक ऐसे क्षेत्र पर नज़र डालते हैं जहां भारत अपने फ़ैसलों या इरादों में कामयाब रहा है।
इसी महीने राजस्थान ने धर्मांतरण विरोधी बिल 2025 पास कर दिया। इसमें मुख्य रूप से दो बातें हैं – एक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अंतरधार्मि विवाह को अपराध घोषित करना और दूसरा हाशिए पर पड़े वंचित समुदाय को ईसाई बनने से रोकना।
दूसरे धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तरह ही राजस्थान का कानून भी धर्मांतरण को रोकता है, लेकिन सभी धर्मों को नहीं। इसमें कहा गया है, “अगर कोई व्यक्ति अपने मूल धर्म में वापसी करता है यानी पुरातन धर्म में, तो इसे धर्मांतरण नहीं माना जाएगा” और बताया गया है कि मूल धर्म वह जो उस व्यक्ति के पुरखे या वंशज कभी अपनाते थे, आस्था रखते थे या जिसका पालन करते थे।
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यहां पाठकों को यह बताने की शायद ज़रूरत नहीं है कि इसका क्या मतलब है क्योंकि यह स्पष्ट है। इस शब्दावली से हमें इस विषय पर हमारे दौर के पहले कानून में बताया गया था। यह उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 था। इसके बाद हिमाचल प्रदेश (2019), उत्तर प्रदेश (2020), मध्य प्रदेश (2021), गुजरात (2021), हरियाणा (2022) और कर्नाटक (2022) में भी कानून बनाए गए।
ये सभी कानून बीजेपी सरकारों द्वारा बनाए गए थे। राजस्थान के कानून में कुछ नया जोड़ा गया है। इसने सभी प्रकार के धर्म प्रचार को भी अपराध घोषित कर दिया है। इसमें कहा गया है कि मीडिया, सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप्लिकेशन के माध्यम से सूचना, विचार या विश्वास का प्रसार गैरकानूनी है, बशर्ते इसे धर्मांतरण के इरादे से धर्म प्रचार के रूप में समझा जाए।
इतना ही नहीं अगर धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति दलित या आदिवासी है तो उसे इस कानून के तहत 20 साल तक की सजा हो सकती है। अन्य के लिए यह सजा 14 साल की है। बीजेपी के ये सारे कानून सभी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, लेकिन ये फिर भी हमारे समाज में इन्हें स्वीकार कर लिया गया है। वैसे भी इस कॉलम के पाठकों में भी ऐसे कम ही लोग होंगे जिन्हें राजस्थान में 9 सितंबर को पारित इस कानून की जानकारी होगी क्योंकि अब यह खबर नहीं रह गई है, जैसा कि हमारे टीवी बहसों में होता है।
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इस तर्क को समझने के लिए यह स्वीकार करना ज़रूरी है कि राज्य ने जो लक्ष्य निर्धारित किया था, उसे हासिल करने में उसे कामयाबी मिल चुकी है। राजनीतिक रूप से इन कानूनों को पलटना मुश्किल है क्योंकि सामाजिक रूप से इन्हें स्वीकार्य बना दिया गया है। इन कानूनों के पक्ष में या इन्हें पसंद करने वाले लोगों की संख्या, ऐसे कानून नरिसत् करने वालों की मांग करने वालों से कहीं ज़्यादा है।
कर्नाटक का ऐसा ही कानून 17 मई 2022 को लागू हुआ। अन्य कानूनों की तरह, इसके तहत भी धर्म परिवर्तन के इच्छुक लोगों को ज़िला मजिस्ट्रेट को 30 दिन पहले सूचना देनी होगी। इसके बाद, ज़िला मजिस्ट्रेट अपने और तहसीलदार के कार्यालय में एक नोटिस बोर्ड पर आवेदन पत्र लगाएंगे और आपत्तियां मांगेंगे।
मई 2023 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, कांग्रेस ने कहा कि वह इस कानून को रद्द कर देगी। अगले महीने, 15 जून को, इस शीर्षक से खबर छपी: 'सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून वापस लिया।' ऐसा नहीं हुआ। कुछ दिन पहले, 8 सितंबर को, यह खबर आई थी कि सरकार 'कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता संरक्षण अधिनियम, जिसे धर्मांतरण विरोधी कानून के नाम से जाना जाता है, पर कानूनी राय लेगी और आगे की कार्रवाई पर फैसला करेगी।'
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इसका मतलब है कि कानून अभी भी बरकरार है। बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2014 से भारतीयों की तरफ कुछ फैसले लिए, जिसके परिणामस्वरूप 2015 में गोमांस पर कानून बने, 2018 में धार्मिक स्वतंत्रता पर, 2019 में नागरिकता पर और बहुलवाद को खत्म करने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने से जुड़ी अन्य चीजों पर कानून बने।
बीजेपी ने जो हासिल करने का इरादा किया था, वह हासिल कर लिया है। हो सकता है कि हमारे पास 'मेड इन चाइना 2025' नीति न रही हो और इस और अन्य मोर्चों पर हमने जो भी गैर-गंभीर प्रयास किए हैं, वे नाकाम रहे हों। लेकिन 'रीमेक इंडिया 2025' नीति की पूर्ण विजय को स्वीकार न करना कठिन है, जिसके नतीजे के रूप में हम कानूनों, मीडिया और वास्तव में हमारे चारों ओर के समाज में देख सकते हैं।
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