विचार

आकार पटेल का लेख: चीन के खिलाफ क्या भारत और अमेरिका के बीच कोई सैन्य गठबंधन है! जवाब बहुत ही धुंधला है

सवाल वही उठता है कि चीन के खिलाफ क्या भारत अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन में है या नहीं? हमें नहीं पता, क्योंकि इस पर न तो कोई बहस हुई, न ही कोई पारदर्शिता है और ऐसा लगता है कि इस पर कोई सही मायने में सोच-विचार तक नहीं हुआ।

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भारत की अमेरिका के साथ सैन्य और रणनीतिक साझेदारी है या नहीं?

इस साल जनवरी में, अमेरिका ने 2018 के एक गोपनीय दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया, जिसमें कहा गया है कि 'अमेरिका का रणनीतिक वर्चस्व बनाए रखना है...और चीन को नए और गैर उदारवादी प्रभाव वाले क्षेत्रों को स्थापित करने से रोकना’ अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती है।

इसमें यह भी कहा गया है कि कैसे चीन का उदय इस क्षेत्र को बदल सकता है और विश्व स्तर पर अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दे सकता है। साथ ही इससे निष्कर्ष निकाला गया है कि 'समान विचारधारा वाले देशों के सहयोग से एक मजबूत भारत, चीन के प्रति संतुलन के रूप में कार्य करेगा'।

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इस मामले में, अमेरिका ने जिस 'वांछित सरकार' की मंशा जाहिर की है, वह है 'सुरक्षा मुद्दों पर भारत का पसंदीदा भागीदार' बनना, और 'दोनों आपसी सहयोग से समुद्री सुरक्षा को बनाए रखने और चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक दूसरे के साथ रहेंगे। इसी क्रम में, अमेरिका का मकसद एक चतुर्भुज ('क्वाड') ढांचे का निर्माण भी होगा जो भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की नौसेनाओं को 'मुख्य केंद्र' के रूप में चीनी प्रभाव के खिलाफ सामने रखेगा। इस दस्तावेज के कुछ पन्नों में कहा गया है कि कैसे अमेरिका ने भारत को एक 'प्रमुख रक्षा भागीदार' बनाने की योजना और 'एक मजबूत भारतीय सेना (अमेरिका के साथ प्रभावी रूप से सहयोग)' की योजना तैयार की है।

इस दस्तावेज में यह भी बताया गया है कि आखिर चीन के साथ क्या किया जाना चाहिए, और उसे अमेरिका की प्रतिस्पर्धी क्षमता को नुकसान पहुंचाने से रोकना चाहिए। साथ ही चीन को सैन्य और रणनीतिक क्षमता हासिल करने से रोकना चाहिए।

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क्वाड ऑपरेशन का क्षेत्र, तथाकथित 'इंडो-पैसिफिक', इलाका है जो मलक्का जलडमरू मध्य के आसपास केंद्रित है और मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच हिंद महासागर को प्रशांत से जोड़ने वाला एक संकरा मार्ग है, जिसके माध्यम से चीन का अधिकांश आयात और निर्यात प्रवाहित होता है। इस मार्ग पर चीन की निर्भरता ने चीन को 'मलक्का दुविधा' पर विचार करने के लिए मजबूर किया है और बेल्ट एंड रोड योजना के जरिए वह एक वैकल्पिक मार्ग को खोलने की योजना बना सका है। नतीजा है। के लिए बेल्ट एंड रोड पहल के पीछे है।

तो फिर आखिर चीन के इरादों को रोकने के लिए भारत इस गठबंधन पर हस्ताक्षर क्यों कर रहा है? यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। मोदी सरकार ने संसद में बिना किसी चर्चा के, मीडिया में किसी इंटरव्यू के, किसी प्रेस कांफ्रेंस में इसका जिक्र किए बिना और अपने घोषणापत्र में इसका वर्णन किए बिना ही भारत को एक अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी और सैन्य गठबंधन में बदलना शुरू कर दिया। फरवरी 2020 में, डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान और लद्दाख संकट शुरू होने से कुछ दिन पहले, मोदी ने भारत को इस समझौते के लिए प्रतिबद्ध किया, जो मुख्यत: चीन के खिलाफ था।

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अमेरिकी रक्षा मंत्री माइक पॉम्पियो की 27 अक्टूबर 2020 को हुई भारत यात्रा के दौरान भारत ने बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए) पर हस्ताक्षर किए। इससे भारत को अपनी सेना की मिसाइलों और सशस्त्र ड्रोन की सटीकता में सुधार करने के लिए अमेरिकी खुफिया जानकारी मिलने में मदद मिलेगी। इसे वायु सेना-से-वायु सेना सहयोग के रूप में चित्रित किया गया।

दूसरा समझौता लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएमओए) था। यह दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के ठिकानों से ईंधन आदि भरने की अनुमति देता है, और आपूर्ति, स्पेयर पार्ट्स और सेवाओं को एक-दूसरे की भूमि सुविधाओं, हवाई अड्डों और बंदरगाहों इस्तेमाल करने की इजाजत देता है। बाद में इसका बदल चुकाया जा सकता है। इसे नौसेना-नौसेना के सहयोग के रूप में सामने रखा गया।

बीईसीए पर हस्ताक्षर करते वक्त माइक पॉम्पियो ने चीन पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा था, “मुझे खुशी है कि भारत और अमेरिका आपसी सहयोग को मजबूत करने के कदम उठा रहे हैं जिससे सिर्फ चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ही नहीं बल्कि सभी किस्म की चुनौतियों और खतरे से निपटा जा सकेगा।” वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री माइक एस्पर ने कहा था, “हम कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं ताकि इंडो-पैसिफिक को सभी के लिए खोला जा सके, खासतौर से चीन की निरंतर बढ़ते आक्रामक रवैये और इलाके को अस्थिर करने की कोशिशों को रोका जा सके।”

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इस मौके पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी पॉम्पियो और एस्पर के साथ मौजूद थे। राजनाथ सिंह को जो बात कहनी थी वह पहले से तय थी और जिसे बाद में बदला गया, उसमें इसी संदर्भ का हवाला था। इसमें कहा गया था, ‘माननीयों, रक्षा क्षेत्र में हम अपनी उत्तरी सीमाओं पर अत्यधिक और क्रूर आक्रामकता का सामना कर रहे हैं।’ लेकिन यह बदलाव भारत के अंग्रेजी अनुवादकर्ता को नहीं दिया गया था और उसने बयान का मूल हिस्सा ही पढ़ा था जिसे अमेरिका ने जारी कर दिया था और बाद में भारत इससे असहज हुआ था।

जब यह दस्तावेज सामने आया तो चीन ने कहा कि इससे इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन को दबाने की अमेरिका की बदनीयती सामने आई है, जिससे क्षेत्र की शांति और स्थिरता प्रभावित होगी। चीन ने यह भी कहा कि 'अमेरिका गिरोह बनाने, छोटे गुट बनाने और दो देशों के बीच वैमनस्य पैदा करने पर आमादा है। इस तरह क्षेत्रीय शांति, स्थिरता, एकजुटता और सहयोग को कमजोर करने की नीयत से उसका संकटमोचक के रूप में उसका असली चेहरा पूरी तरह उजागर हो गया है।‘ वहीं भारत ने इस दस्तावेज़ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

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तीसरा समझौता जो भारत और अमेरिका के बीच पहले हुआ था, वह था संचार संगतता यानी कम्यूनिकेशन कॉम्पेटिबिलिटी और सुरक्षा समझौता (सीओएमसीएएसए)। इससे भारत को एन्क्रिप्टेड संचार उपकरणों और प्रणालियों तक पहुंच मिलती है जिससे भारतीय और अमेरिकी सैन्य कमांडर, और दोनों देशों के विमान और जहाज सुरक्षित नेटवर्क के माध्यम से संवाद कर सकें। बीईसीए, एलईएमओए और सीओएमसीएएसए ने दोनों देशों के बीच गहरे सैन्य सहयोग के लिए 'आधारभूत समझौते' की एक तिकड़ी पूरी की।

वुहान में मोदी की शी से मुलाकात से पांच महीने पहले सीओएमसीएएसए पर सितंबर 2018 में दस्तखत हुए थे। मोदी और शी के बीच वुहान समझौते पर 28 अप्रैल 2018 में हस्ताक्षर हुए थे जिसमें भारत और चीन ने तय किया था कि वे दुश्मन नहीं रहेंगे और एकदूसरे को सहयोग करेंगे। साथ ही एक-दूसरे के यहां द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करेंगे। बाकी का बयान महज अनौपचारिक है, जिसमें कोई खास एजेंडा नहीं है और सिर्फ मोदी के शौक को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। लेकिन इसमें जिस भावना का उल्लेख किया गया है वह सहयोग की है, न कि प्रतिद्वंद्विता की।

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समस्या यह है कि मोदी इसे पूरी तरह से समझ पाए हैं या नहीं, लेकिन कुल मिलाकर बात यह है कि मोदी शिकारी कुत्तों के साथ शिकार कर रहे थे और खरगोशों के साथ दौड़ रहे थे। जिस समय मोदी शी से हाथ मिला रहे थे, उसी समय भारत भी चीन के उद्देश्य से ट्रम्प की इंडो-पैसिफिक रणनीति पर नजर गड़ाए हुए था।

इस साल मई में, सेना प्रमुख नरवणे ने एक पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा था कि, "क्वाड न तो सैन्य गठबंधन बनने का इरादा रखता है और न ही प्रयास करता है। इसका मतलब एक बहुपक्षीय समूह है जो विशिष्ट मुद्दों पर, खासतौर से इंडो-पैसिफिक पर केंद्रित है। कुछ देशों ने क्वाड को बिना किसी ठोस सबूत और निराधार आशंकाओं को बढ़ाने के लिए एक सैन्य गठबंधन के रूप में चित्रित किया है।“

तो सवाल वही उठता है कि चीन के खिलाफ क्या भारत अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन में है या नहीं? हमें नहीं पता, क्योंकि इस पर न तो कोई बहस हुई, न ही कोई पारदर्शिता है और ऐसा लगता है कि इस पर कोई सही मायने में सोच-विचार तक नहीं हुआ।

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