विचार

देश का हर शख्स झेल रहा है पर्यावरण विनाश की मार, बीजेपी राज में प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाना भी जघन्य अपराध

बीजेपी शासन में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि अब प्रदूषण के विरुद्ध आवाज उठाना भी एक जघन्य अपराध बन गया है। अब किसी नदी को सफाई के नाम पर एक तालाब में समेटा जा सकता है।

देश का हर शख्स झेल रहा है पर्यावरण विनाश की मार, बीजेपी राज में प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाना भी जघन्य अपराध
देश का हर शख्स झेल रहा है पर्यावरण विनाश की मार, बीजेपी राज में प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाना भी जघन्य अपराध फोटोः महेंद्र पांडे

केवल दिल्ली और राजधानी क्षेत्र का ही नहीं बल्कि हमारे देश का हरेक व्यक्ति पर्यावरण विनाश और प्रदूषण की मार झेल रहा है। यह प्रभाव इतने लंबे समय से चला आ रहा है कि अब तो प्रदूषण और पर्यावरण विनाश किसी भी चर्चा से परे हो गया है। यह ना तो सामाजिक मुद्दा है और ना ही राजनैतिक एजेंडा। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से पर्यावरण विनाश और प्रदूषण का आतंक भयानक होता जा रहा है और अब निहायत ही भोंडे तरीके से सरकारें इससे निपटने का दिखावा कर रही हैं, और हास्यास्पद बयान दे रही हैं। बीजेपी शासन में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि अब प्रदूषण के विरुद्ध आवाज उठाना भी एक जघन्य अपराध बन गया है। अब किसी नदी को सफाई के नाम पर एक तालाब में समेटा जा सकता है और सत्ता में बैठे आकाओं के वक्तव्यों के अनुसार, आतंकवादी हमलों की तरह पंजाब के किसान दिल्ली पर वायु प्रदूषण से हमला करते हैं।

पूरी दुनिया का यही हाल है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के वैज्ञानिकों के विश्लेषण के अनुसार दुनिया की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी किसी ना किसी पर्यावरण संकट या प्रदूषण की चपेट में है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 में स्वच्छ पर्यावरण के मौलिक अधिकार की घोषणा की थी जिसमें साफ पानी, साफ हवा, आरामदायक तापमान, खाद्य सुरक्षा और जैव-विविधता शामिल थे। हमारे देश में भी सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तमाम स्थानीय न्यायालय समय-समय पर स्वच्छ पर्यावरण के मौलिक अधिकार की चर्चा करते रहे हैं, पर अन्य मानवाधिकारों की तरह ही सत्ता लगातार इस अधिकार का दमन करती रही है। पर्यावरण विनाश और प्रदूषण की समस्या को लगातार स्थानीय समस्या की तरह देखा गया है, जबकि यह एक वैश्विक समस्या है और सबको प्रभावित करती है।

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यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन को एनवायरमेंटल रिसर्च कम्यूनिकेशन्स नामक जर्नल में प्रकाशित किया है, और इस विषय पर यह सबसे विस्तृत अध्ययन है। इस अध्ययन के अनुसार पूरी दुनिया किसी ना किसी पर्यावरणीय संकट की चपेट में है और लगभग आधी आबादी एक साथ कम से कम तीन पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है और 1.25 प्रतिशत आबादी सभी 5 संकट की चपेट में है। भारत समेत दक्षिण एशिया की 41 प्रतिशत आबादी सभी पांच संकट- वायु प्रदूषण, जल संकट, अत्यधिक तापमान, खाद्य असुरक्षा  और जैव-विविधता के विनाश की चपेट में है। वायु प्रदूषण का संकट पूरी दुनिया में है।

पर्यावरणीय संकट समाज को अस्थिर बना रहे हैं और असमानता को बढ़ावा दे रहे हैं। गरीबों के पास इन संकटों से निकालने का कोई रास्ता नहीं है जबकि अमीरों के पास पर्यावरणीय संकट से निपटने के तमाम तरीके हैं– दूसरी तरफ सभी पर्यावरणीय संकट पूंजीवाद की देन हैं पर इनका प्रभाव गरीब झेल रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अत्यधिक बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या 1.1 अरब के आसपास है जो दुनिया के 109 देशों में बस्ते हैं, इसमें से 80 प्रतिशत लोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों- सूखा, बाढ़, अत्यधिक गर्मी, जंगलों का जलना, मरूभूमिकरण, सागर तल का बढ़ना इत्यादि की चपेट में हैं। इनमें से आधे से अधिक गरीब बच्चे या किशोर हैं। सबसे अधिक गरीबों की संख्या सहारा-अफ्रीका और दक्षिण एशिया में है।

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फोटोः महेंद्र पांडे

दुनिया में 61 करोड़ लोग अत्यधिक गर्मी, 58 करोड़ प्रदूषण, 47 करोड़ बाढ़ और 21 करोड़ व्यक्ति सूखे का सामना कर रहे हैं। 65 करोड़ व्यक्ति इनमें से दो संकट का सामना और 31 करोड़ कम से कम तीन संकट का सामना कर रहे हैं। दुनिया में 1 करोड़ से अधिक आबादी इन चारों संकट का सामना एकसाथ कर रही है। दक्षिण एशिया की 99 प्रतिशत आबादी इनमें से कम से कम एक पर्यावरणीय संकट की चपेट में है।

संयुक्त राष्ट्र की दूसरी रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण पिछले दशक के दौरान कम से कम 25 करोड़ आबादी को अपने स्थान से पलायन करना पड़ा। हरेक दिन के संदर्भ में यह संख्या 70000 है। यह पलायन या विस्थापन अपने देश के अंदर भी होता है और देश से बाहर भी होता है। जितनी तेजी से तापमान वृद्धि के प्रभाव स्पष्ट हो रहे हैं, उतनी ही तेजी से पलायन भी बढ़ रहा है। पलायन का संकट किस कदर पूरी दुनिया में है यह उन रोजाना समाचारों से स्पष्ट होता है जिसमें पलायन करते लोग दूसरे देशों में शरण की आस लिए लंबी समुद्री यात्राएं करते हैं और अंत में दुर्घटनाओं का शिकार होकर असामयिक मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।

तापमान वृद्धि के कारण तमाम प्राकृतिक संसाधन कम होते जा रहे हैं, जिससे समाज अस्थिर होता जा रहा है। अस्थिर समाज में हिंसा और विद्रोह पनपता है जिसे सत्ता बेरहमी से कुचलती है। इस समय गृह युद्ध से जूझते देशों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही इनसे पलायन करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2025 में ही युद्ध, हिंसा और तापमान वृद्धि के कारण अब तक लगभग 12 करोड़ लोग विस्थापित हो चुके हैं। इस विस्थापन से सामाजिक असमानता और अन्याय को बढ़ावा मिल रहा है।

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वर्ष 2024 में पर्यावरण विनाश के हरेक आयाम नए रिकार्ड स्तर तक पहुंच गए। अमेरिकन मेटेरियोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित वार्षिक स्टेट ऑफ क्लाइमेट रिपोर्ट के 35वें संकरण के अनुसार वर्ष 2024 में जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव से जुड़े हरेक आयाम नए रिकार्ड स्तर तक पहुंच चुके हैं। पिछले वर्ष वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता, वैश्विक स्तर पर भूमि और महासागरों का औसत तापमान, महासागरों की सतह में बढ़ोतरी, महासागरों में ताप का अवशोषण और वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर के पिघलने की दर- सबकुछ अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गया। इस रिपोर्ट को दुनिया के 58 देशों के 589 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।

वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता 422.8 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच गई, यह सांद्रता पूर्व-औद्योगिक काल के 278 पीपीएम सांद्रता की तुलना में 58 प्रतिशत अधिक है। 1960 के दशक के शुरू में वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता में औसत बढ़ोत्तरी प्रति वर्ष 0.6 पीपीएम आंकी गई थी, यह दर 2011 से 2020 के बीच 2.4 पीपीएम प्रतिवर्ष तक पहुंच गई। वर्ष 2023 से 2024 के बीच वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता में वृद्धि 3.4 पीपीएम प्रतिवर्ष तक पहुंच गई। वर्ष 2024 में भूमि का तापमान वर्ष 1991 से 2020 के बीच के औसत तापमान की तुलना में 0.63 से 0.72 डिग्री सेल्सियस अधिक आंका गया है। पिछले 10 वर्ष मानव इतिहास के सबसे गरम 10 वर्ष रहे हैं।

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तापमान वृद्धि के कारण केवल ग्लेशियर, नदियां, झीलें और महासागर ही नहीं प्रभावित हो रहे हैं बल्कि पूरा जल चक्र ही प्रभावित हो रहा है। बढ़ता तापमान वाष्पीकरण की दर को बढ़ा रहा है जिससे वायुमंडल में जलवाष्प की बहुलता हो रही है और इसका असर बादलों पर पड़ रहा है। वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर 20 प्रतिशत हिस्से में वायुमंडल में जलवाष्प की सांद्रता नए रिकार्ड स्तर तक पहुंच गई। वैश्विक स्तर पर बारिश ने भी नए रिकार्ड स्थापित किए। वर्ष 1983 के बाद से वर्ष 2024 सर्वाधिक वार्षिक बारिश के संदर्भ में तीसरे स्थान पर है। महासागरों का औसत तापमान वर्ष 2023 की तुलना में 0.06 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

तापमान वृद्धि और पर्यावरण विनाश से हरेक तंत्र बदल रहा है और प्रभाव साल-दर-साल पहले से अधिक घातक होते जा रहे हैं। अब तो पूरी दुनिया ही इन समस्याओं से घिरी है, पर इसका समाधान कोई नहीं करना चाहता। हम इतिहास में अनेक सभ्यताओं के विलुप्त होने के बारे में पढ़ते हैं, पर अब तो पूरी मानव जाति पर ही अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।

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