विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः वह कभी असत्य के पथ से डिगा नहीं, स्वतंत्रता दिवस पर भी संकल्प पर अडिग रहा!

उसने यह सिद्ध करके दिखा दिया कि जिस धरती पर सत्य का पुजारी पैदा हो सकता है, उसी पर झूठ का व्यापारी भी जन्म ले सकता है। धरती का कोई भाग न इतना पवित्र है, न इतना अपवित्र कि उसमें गांधी पैदा हो तो मोदी पैदा नहीं हो सकता!

वह कभी असत्य के पथ से डिगा नहीं, स्वतंत्रता दिवस पर भी संकल्प पर अडिग रहा!
वह कभी असत्य के पथ से डिगा नहीं, स्वतंत्रता दिवस पर भी संकल्प पर अडिग रहा! फोटोः सोशल मीडिया

राजा हरिश्चंद्र से लेकर महात्मा गांधी तक सत्य के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले कम नहीं हुए हैं मगर असत्य के प्रति गहरी निष्ठा रखनेवाला भारत में आज तक अकेला केवल वही हुआ है। उसे आप भी जानते हैं और वह भी जानता है‌ कि आप उसे जानते हैं। वही जिसने स्वतंत्रता दिवस पर अपने ही भाषण का रिकार्ड तोड़ते हुए 103 मिनट का भाषण दिया। 140 करोड़ लोगों के इस देश‌ में वह अकेला है और विश्व में भी उसके मुकाबले आने की हिम्मत करने वाले बमुश्किल दो -चार होंगे। अगर नहीं होंगे तो भी आश्चर्य नहीं क्योंकि भारत विश्वगुरू है!

पिछले 11 साल में उसने एक दिन के लिए भी झूठ बोलने का अपना संकल्प नहीं तोड़ा। सच तो यह है कि उसने एक घंटे के लिए भी अपने ऊपर सच बोलने का 'कलंक 'नहीं लगने दिया।कितने ही संकट आए, कितनी ही चुनौतियां आईं, कितनी ही उसकी खिल्ली उड़ाई गई मगर वह असत्य के पथ से कभी डिगा नहीं। स्वतंत्रता दिवस पर भी इस संकल्प पर वह अडिग रहा।

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अस्त्य को उसने कभी अकेला नहीं छोड़ा! उसका झूठ हर दिन, हर जगह पकड़ा गया। फिर भी असत्य वीर इससे विचलित नहीं हुआ। पथ से डिगा नहीं। लोगों ने उसे बार-बार झूठा कहा, लबार कहा, फेंकू कहा पर वह घबराया नहीं, शरमाया नहीं, लजाया नहीं, भरमाया नहीं, हिला नहीं, डुला नहीं, भूला नहीं। उसने एक बार भी असत्यवादी होने का खंडन नहीं किया। इस यथार्थ से उसने मुंह मोड़ा नहीं।

ऐसा भी नहीं कि उसने सौ बार झूठ बोला और एक बार सच बोल दिया। असत्यव्रत को उसने खंडित नहीं होने दिया। अपनी यह साख उसने बनाये रखी। जैसे गांधी जी स्वाभाविक रूप से  सच बोलते थे, यह उतने ही स्वाभाविक रूप से झूठ बोलता है। आप-हम जितने आत्मविश्वास से सच नहीं बोल सकते, उससे सौ गुना अधिक आत्मविश्वास से यह झूठ बोलता है। कमाल है कि झूठ बोलते समय उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं आती, इसलिए भी काफी लोग उसके दीवाने हैं।

भारत के पांच हजार साल के ज्ञात इतिहास में देश की कमान संभालने वाला यह पहला और शायद अंतिम व्यक्ति है, जिसने झूठ का झंडा देश-विदेश में अभिमान के साथ गाड़ दिया है। इसके पहले लोकल लेबल के लबार हुए हैं, जो जूते खाकर चुप बैठ गए। यह बैठा नहीं, उठा ही रहा। एक बार इसने असत्य के पथ पर कदम बढ़ा दिए तो फिर इसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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सच बोलने के लिए कितने इंच का सीना चाहिए, यह तो गांधी जी ने कभी बताया नहीं। यह राज उन्होंने जनता से छुपा कर रखा, जबकि असत्यवादी ने यह राज नहीं छुपाया। बताया कि इसके लिए छप्पन इंच का सीना होना चाहिए। इधर हम जैसों का हाल यह है कि कोई छोटा सा झूठ भी पकड़ लिया जाए तो हमारी घिग्घी बंध जाती है। आंख और नाक से पानी आने लग जाता है। लगता है धरा फट जाए और उसमें समा जाएं!

तो खैर उस आदमी की असत्य के प्रति गहरी निष्ठा की बात हो रही थी। दिलचस्प बात यह है कि उसने भी उसी गुजरात भूमि को 'पवित्र' किया जिस पर कभी महात्मा गांधी जन्म ले चुके थे। गनीमत यह रही कि इस धराधाम से जब गांधी जी कूच कर गए, उसके भी साढ़े सात महीने बाद पदार्पण किया वरना यह तो जन्म लेने के दिन से ही यह अफवाह उड़ा देता कि मैंने, महात्मा गांधी ने पुनर्जन्म लिया है।

गांधी जी बाल-बाल बच गए क्योंकि यह तो पिछले साल नॉन बायोलॉजिकल भी हो चुका है। यह कभी भी जन्म ले सकता था। फिर भी गुजराती होने के नाते इसकी गांधी जी पर अतीव कृपा रही कि इसने देर से जन्म लेकर उन्हें बख्शा। उसने यह सिद्ध करके दिखा दिया कि जिस धरती पर सत्य का पुजारी पैदा हो सकता है, उसी पर झूठ का व्यापारी भी जन्म ले सकता है। धरती का कोई भाग न इतना पवित्र है, न इतना अपवित्र कि उसमें गांधी पैदा हो तो मोदी पैदा नहीं हो सकता!

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यह बिल्कुल गांधी जी का 200 प्रतिशत विलोम है। गांधी जी बचपन में मगरमच्छ का बच्चा नहीं पकड़ा था, यह कहता है कि इसने पकड़ा था। गांधी जी बैरिस्टर थे और इसका उन्हें कतई गर्व नहीं था। यह दसवीं पास है और उसे इसका ही नहीं, अपने हिंदू होने का भी गर्व है। गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आने पर कोई सार्टिफिकेट दिखाने की जरूरत नहीं पड़ी थी, इसने फर्जी प्रमाणपत्रों का अंबार लगा रखा है। गांधी जी ने अपने बचपन से जवानी तक और जवानी से बुढ़ापे तक अपने बारे में एक भी गप नहीं मारी, इसके पास गप्पों का विश्व रिकॉर्ड है।आज का अखबार आपने पढ़ा होगा तो आज भी इसने इस पिटारे में से कुछ निकाल कर जनता के सिर पर दे मारा होगा!

गांधी जी को सच बोलने में तनिक भी हिचक नहीं थी, इसे झूठ बोलने में हिचक नहीं। गांधी जी शरीर पर केवल खादी की एक चादर लपेटते थे। यह कपड़ों का भंडार लेकर चलता है। दिन में छह बार महंगे-महंगे कपड़े बदलता है। गांधी जी के शिष्य और साथी नेहरू-पटेल जैसे पाये के लोग थे, इसके साथी शाह और अडानी जैसे लोग हैं। गांधी जी कस्तूरबा को छोड़ने की कल्पना नहीं कर सकते थे, इसने दिल्ली की गद्दी पर बैठने से पहले तक यह छुपाया कि यह शादीशुदा है।

इसने एक काम जरूर पॉज़िटिव किया है कि उन लोगों का घमंड तोड़ दिया, जो यह दावा करते थे कि हमने गांधी को देखा है। आज लोग उससे भी अधिक गर्व से यह कहते पाए जाते हैं कि हमने मोदी को देखा है। इस तरह इसने भक्तों को गांधी ग्रंथी से उबारा है। इसके लिए भारत इसका हमेशा ऋणी रहेगा!

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