विचार

अगर मुफ्त में नहीं लगाई गई सभी को वैक्सीन, तो टीकाकरण से 'हर्ड इम्यूनिटी' का उद्देश्य हो सकता है नाकाम

अदालत ने 30 अप्रैल की टिप्पणी में कहा था कि केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीकों की कीमत देने में समर्थ नहीं। हाशिये पर रह रहे लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images Hindustan Times

हालांकि कोविड-19 की दूसरी लहर दुनिया भर में चल रही है, पर भारत में हालात हौलनाक हैं। इससे बाहर निकलने के फौरी और दीर्घकालीन उपायों पर विचार करने की जरूरत है। जब कोरोना को रोकने का एकमात्र रास्ता वैक्सीनेशन है, तब विश्व-समुदाय सार्वभौमिक निःशुल्क टीकाकरण के बारे में क्यों नहीं सोचता? ऐसा तभी होगा, जब मनुष्य-समाज की इच्छा-शक्ति जागेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा भी है कि वह अपनी वैक्सीन नीति पर फिर से सोचे, साथ ही लॉकडाउन के बारे में भी विचार करे। लॉकडाउन करें, तो कमजोर वर्गों के संरक्षण की व्यवस्था भी करें।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को सरकार से कहा था कि वह सभी नागरिकों को मुफ्त टीका देने के बारे में विचार करे। अदालत ने कहा कि इंटरनेट पर मदद की गुहार लगा रहे नागरिकों को यह मानकर चुप नहीं कराया जा सकता कि वे गलत शिकायत कर रहे हैं। देश के 13 विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार से मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाने का आग्रह किया।

अदालत ने 30 अप्रैल की टिप्पणी में कहा था कि केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीकों की कीमत देने में समर्थ नहीं। हाशिये पर रह रहे लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?

Published: undefined

अदालत ने गरीबों के पक्ष में यह अपील ऐसे मौके पर की है, जब दुनिया के अमीर देश निःशुल्क टीका लगा रहे हैं। अमेरिका में अरबपति लोगों को भी टीका मुफ्त में मिल रहा है। कहा जा सकता है कि अमीर देश यह भार वहन कर सकते हैं, पर भारत पर यह भारी पड़ेगा। क्या वास्तव में यह ऐसा भार है जिसे देश उठा नहीं सकता? महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश को हिला दिया है। तीसरी आई, तो क्या होगा? उसे संभालने की कीमत टीकों की कीमत से कहीं ज्यादा होगी। हालांकि 24 राज्यों ने घोषणा की है कि वे 18 वर्ष से ऊपर के लोगों को मुफ्त टीका लगाएंगे, पर इसमें कई दिक्कतें हैं। एक तो ज्यादातर राज्यों के पास टीकों की सीधी खरीद करने और उन्हें लगाने का स्वतंत्र अनुभव नहीं है। दूसरे इससे इन राज्यों के स्वास्थ्य बजट की करीब-करीब आधी रकम इस मद में निकल जाएगी। इससे देश का गिरा-पिटा सार्वजनिक स्वास्थ्य-तंत्र और कमजोर हो जाएगा।

Published: undefined

बेशक केंद्र पर भी यह बोझ पड़ेगा, पर केंद्रीय व्यवस्था होने पर उसे सुसंगत तरीके से पूरे देश में लागू कराया जा सकेगा। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की पहली जरूरत है कोरोना से लड़ाई। सन 2020-21 में केवल इस बीमारी के कारण रुकी आर्थिक गतिविधियों ने देश की जीडीपी में दस फीसदी से ज्यादा की सेंध लगा दी थी। हमें पता है कि टीके से ही इसे रोका जा सकता है, फिर देर क्यों?

अलग-अलग विशेषज्ञों ने गणना की है कि पूरी आबादी को निःशुल्क टीका लगाने पर 50-70 हजार करोड़ रु. का खर्च आएगा। यह गणना 130 करोड़ लोगों को टीका लगाने की है। इसमें हर नागरिक को लगने वाले दो टीकों की कीमत 500 रुपये के आसपास मानकर चला गया है। एकसाथ1.3 अरब टीके खरीदने पर कीमत और कम होगी।

Published: undefined

केंद्र ने 2021-22 के बजट में कोविड-19 के मद में 35,000 करोड़ रुपये रखे हैं। अगर राज्यों को शामिल कर योजना बनती तो बेहतर होता। यह काम चरणों में भी हो सकता था, यानी शुरू में 50-60 करोड़ लोगों को टीके लगाए जाते, फिर संख्या बढ़ाई जाती। सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार, सन 2012-13 में देश के खेतिहर परिवारों की मासिक औसत आय 6,426 रुपये थी। यह मान भी लें कि इस आय में कुछ वृद्धि हुई भी होगी, तब भी एक परिवार में चार या पांच व्यक्तियों को मानें, तो महीने की आधी आमदनी टीके पर चली जाएगी। सभी परिवारों की आय इतनी भी नहीं होती। काफी लोग पैसा देकर वैक्सीन लगवा सकते हैं। दूसरी तरफ, बड़ी संख्या में लोग टीके नहीं लगवा पाएंगे। इससे ‘हर्ड-इम्यूनिटी’ का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। सुरक्षा घेरा पूरी सामाजिक-व्यवस्था के चारों ओर खड़ा होना चाहिए। केवल पैसे वाले घरों के चारों ओर दीवारें खड़ी करने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined