विचार

आकार पटेल का लेख: नाकाम देशों के सूचकांक में पाकिस्तान से होड़ लेता भारत, लेकिन चिंता किसे है!

कुछ बरस पहले तक भारतीय विश्लेषक (मुझ सहित) इस बात पर खुश होते थे कि पाकिस्तान बहुत तेजी से एक नाकाम देश बनता जा रहा है। लेकिन हमें अनुमान तक न था कि एक दिन भारत को भी इसी खांचे में देखेंगे और वह भी इतनी जल्दी।

Photo by Pallava Bagla/Corbis via Getty Images
Photo by Pallava Bagla/Corbis via Getty Images 

दुनिया भर में जिन सूचकांकों के आधार पर देशों की स्थिति सामने आती हैं, उनमें से एक है फ्रेजाइल इंडेक्स यानी नाजुक सरकार सूचकांक, और इसमें भारत 2014 से लगातार नीचे आ रहा है। पहले इसे नाकाम देशों का इंडेक्स कहा जाता था। इसमें सुरक्षा (सभी प्रकार की) और आर्थिक विकास को पैमाना माना जाता था। इसमें देशों को अलग-अलग 11 श्रेणियों में बांटा जाता था, और यह उन्हीं में से एक श्रेणी है। ऐसे कुछ देश जो अपनी सफलता कायम रख पाएं है उनमें फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क और आईसलैंड के साथ ही कनाडा, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं।

भारत ऐसी किसी भी श्रेणी में नहीं है जिसे स्थिर या स्थिर होने लायक माना जाता हो। यह वैसे भी नीचे से पांचवीं श्रेणी है जिसे चेतावनी के तौर पर देखा जाता है। हमारे साथ जो देश हैं उनमें कोलंबिया, ब्राजील, इजरायल, अल्जीरिया, रूस और सेनेगल आदि हैं। इस श्रेणी में कुल मिलाकर करीब 30 देश हैं जिनमें से सिर्फ 4 देश ऐसे हैं जो पिछले साल के मुकाबले और भी बुरी स्थिति में पहुंचे हैं। और ये देश हैं, ब्राजील, कोलंबिया, बोलिविया और भारत। भारत पर दिए गए विस्तृत लेख से पता चलता है कि आखिर भारत के भविष्य को क्यों इन कमजोर देशों के साथ जोड़ा जाता है, न कि समृद्ध और मजबूत लोकतांत्रिक पश्चिमी देशों के साथ।

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इसमें कहा गया है कि चूंकि यह सरकार, “बिना सोचे समझे सुधारों को सामने ला रही है, भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो गई है और 1978 के बाद से सबसे कम स्तर पर पहुंच गई है। मोदी की प्रतिक्रिया, एक संरक्षणवादी और ऊंचे सरकारी निवेश, बैंकों के ऋण लक्ष्यों और सीधी सहायता के चलते भारत अपनी धीमी विकास गति को रफ्तार देने में नाकाम रहा है।” सुरक्षा के मोर्चे पर भारत ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ कार्यवाही शुरु कर दी है, खासतौर से एनआरसी को लेकर (जिसके लागू होने को लेकर स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं है)। इसके अलावा कश्मीर के हालात और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले भी कारण हैं।

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एक ‘फेल्ड स्टेट’ या नाकाम देश वह होता है जहां सरकार का हालात पर नियंत्रण नहीं होता। तो क्या यह एक सीधी-साधी परिभाषा है। क्या कानून का राज है, क्या अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, स्थिरता और विकास पर नियंत्रण है। एक लोकतंत्र के रूप में भारत का इतिहास और दयालु देश के रूप में विश्व में इसकी छवि में ही हमारी कमजोरी छिपी है। लेकिन भारत ने जब अपने ही नागरिकों के खिलाफ आक्रामक तरीके अपनाने शुरु किए तो पूरी दुनिया चौकन्ना हो उठी। दुनिया में यह विचार भी बन रहा है कि भारत आर्थिक मोर्चे पर इसलिए नाकाम हो रहा है क्योंकि हिंदुत्ववादी एजेंडे के चलते भारत का सामाजिक तानाबाना बिखर रहा है और नागरिकों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। कोई भी सूचकांक हमें यह तो बताता है कि हालात क्या है और हम किस तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन इसे दुरुस्त कैसे किया जाए यह नहीं बताता। लेकिन आम समझ कहती है कि सबसे पहले हमें वह सब रोकना चाहिए जो हम मोदी के नेतृत्व में कर रहे हैं क्योंकि हम एक गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। आर्थिक और सामाजिक तौर पर हम पिछड़े हैं और हमने इसे धूमधड़ाके से किया है। यहां एक बार फिर दोहरा दें कि भारत में लोग पहले से कम खा रहे हैं और कम खर्च कर रहे हैं। ये सरकारी आंकड़े हैं जो बताते हैं कि ऐसा बीते 36 महीनों से हो रहा है। फिलहाल देश की आर्थिक स्थिति क्या है, भगवान ही जानता है।

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लेकिन क्या हम उस दिशा में बढ़ने से खुद को रोक रहे हैं या उस प्रक्रिया को पलट रहे हैं जिनसे हमारा यह हाल हुआ है? जवाब सीधे तौर पर न है। हम तो त्रास्दी की तरफ और तेजी से बढ़े हैं। हमारे पास स्वंय सुधारों का कोई तरीका नहीं है। अभी कहना मुश्किल है कि हम अपने ही द्वारा खोदे गए गड्ढे में गिरने से खुद को रोक भी पाएंगे या नहीं क्योंकि हम इस गड्ढे को और गहरा करने पर तुले हुए हैं।

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हम अपने देश के बारे में क्या सोचते हैं और महसूस करते हैं, अलग बात है। लेकिन बाकी दुनिया हमारे बारे में क्या सोचती है वह महत्वपूर्ण है। दुनिया हमारे भविष्य को लेकर जो कयास लगा रही है उसे अगर भारतीयों को बताया जाए कि हम कहां जा रहे हैं तो लोग भयाक्रांत हो जाएंगे। लेकिन इस तथ्य के बावजूद कि तीन साल की आर्थिक गिरावट के साथ ही भारत में मंदी आ गई है, रिकॉर्ड बेरोजगारी है और सामाजिक तानाबना बिखर चुका है, हमें सरकारी तौर पर कुछ और ही तस्वीर दिखाई जा रही है।

दो-एक दशक पहले तक भारतीय विश्लेषक (मुझ सहित) इस बात पर खुश होते थे कि इस सूचकांक में पाकिस्तान की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है और पाकिस्तान बहुत तेजी से एक नाकाम देश बनता जा रहा है। लेकिन हमें अनुमान तक न था कि एक दिन भारत को भी इसी खांचे में देखेंगे और वह भी इतनी जल्दी।

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