विचार

अर्थव्यवस्था की बदहाली दुरुस्त करने के बजाय मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ पर हड़बड़ी में क्यों है?

मोदी सरकार अपने 100 दिन के एजेंडे पर काम कर रही है, लेकिन राष्ट्रपति के भाषण में एक भी ऐसी धमाकेदार घोषणा नहीं की गई, जिससे देश की जनता को लगता कि दोबारा और भी बहुमत से सत्ता में आयी सरकार चौतरफा समस्याओं से घिरे लोगों को कुछ राहत और भरोसा दिलाने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रही है।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी गुरुवार को संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित कर ‘एक देश एक चुनाव’ की व्यवस्था को लागू करने का आह्वान किया। वे देश का विकास तेजी से करने और लोगों को इससे लाभान्वित करने के लिए ऐसा जरूरी मानते हैं। उन्हीं की सरकार ने आम चुनावों की जीत के बाद अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने में जरा भी देर नहीं की। यह जानते हुए भी कि देश में एक साथ चुनाव कराने के मामले पर ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां पूरी तरह असहमत हैं, राष्ट्रपति के भाषण में इस पर जोर दिया गया है कि क्यों एक देश एक चुनाव जरूरी है।

Published: undefined

मोदी सरकार अपने 100 दिन के एजेंडे पर काम कर रही है, लेकिन राष्ट्रपति के भाषण में एक भी ऐसी धमाकेदार घोषणा नहीं की गई, जिससे देश की जनता को लगता कि दोबारा और भी बहुमत से सत्ता में आयी सरकार चौतरफा समस्याओं से घिरे आम आदमी को कुछ राहत और भरोसा दिलाने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रही है।

Published: undefined

गुजरात राज्यसभा की दो सीटों पर एक साथ चुनाव की खुली कलई

गुजरात में खाली हो रही दो राज्यसभा सीटों में दोनों पर अलग-अलग चुनाव कराने की चुनाव आयोग की मंशा पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही संज्ञान ले चुका है। वहां राज्यसभा की दो सीटों के लिए 5 जुलाई को चुनाव होना है। दोनों सीटें गृहमंत्री अमित शाह और स्मृति ईरानी के लोकसभा में चुने जाने के कारण खाली हुई हैं। चुनाव आयोग भले ही एक दिन इन दोनों सीटों पर चुनाव कराने का ऐलान कर चुका है लेकिन उसकी नीयत के पीछे का खेल यह है कि अलग-अलग वोटिंग होने पर दोनों सीटें बीजेपी को मिल जाएं। गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच संख्याबल के मामले में ज्यादा अंतर नहीं है। अगर एक साथ चुनाव हों तो 182 सीटों वाले गुजरात से बीजेपी और कांग्रेस की झोली में एक-एक सीट आ सकती है।

Published: undefined

चुनाव आयोग बीजेपी को मदद पहुंचाने के लिए मतदान प्रक्रिया अलग-अलग करवाने के कदम को इस आधार पर चुनौती दे रहा है कि यह कदम न्यायसंगत नहीं है। याचिका में तर्क दिया गया है कि दोनों सीटों पर अलग चुनाव कराने से एक ही नतीजे निकलेंगे। यह कदम उच्च सदन राज्यसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की संविधान के जनप्रतिनिधित्व कानून की भावना के विपरीत होगा।

Published: undefined

धन बल रोकने पर चर्चा नहीं कर रही सरकार

मोदी सरकार अब एक ही बात पर अड़ी है कि किसी तरह देश में एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था हो जाए। हालांकि देश में बाकी चुनाव सुधारों को लेकर मोदी सरकार की चिंता कहीं नहीं झलक रही। हाल के चुनावों में जिस तरह धन बल का इस्तेमाल हुआ। काले धन को सफेद करने के चुनावी ब्रांडों की खैरात बंटी, उसने तो स्वतंत्र चुनाव के सभी दावों की पोल खोल दी। चुनाव में सुधार के लिए दिनेश गोस्वामी, इंद्रजीत गुप्त, और एनएन वोहरा समेत कई कमेटियों की रिपोर्ट आयीं। वहीं ढाक के तीन पात। बीते चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किस-किस तरह के हथकंडों का चुनावी भाषणों में इस्तेमाल हुआ।

चुनाव आयोग ने ऐसी उन तमाम शिकायतों पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटाई जिसमें प्रधानमंत्री और बीजेपी के मुखिया तक पर सीधे आरोप थे।

Published: undefined

काश, बीमार पड़ी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का चिंतन होता

मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती इस वक्त देश की बीमार पड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। आर्थिक सुधारों की समयबद्ध कार्य योजना को लागू करना और 2022 में देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने तक भारत को विकसित देशों की पांत में खड़े करने जैसे कई संकल्पों पर संसद के बाहर भीतर आम राय कायम कराने और विपक्षी पार्टियों, देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञों को सरकार की दूसरी पारी शुरू करने के साथ कोई बात होती।

Published: undefined

एक देश एक चुनाव को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों है

देश में हर कोई यह सवाल पूछ रहा है कि पीएम मोदी को अभी से किस बात की जल्दबाजी है कि सारे जरूरी काम छोड़कर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर विचार हो। वैसे भी मोदी को देश की जनता ने पांच बरस के लिए जनादेश दिया है। अभी जिन कुछ प्रदेशों में इस साल चुनाव होने हैं उन्हें रोकना मुमकिन नहीं है। इन बातों पर इतनी जल्दबाजी में चर्चा की जिद क्यों हो रही है। सबको मालूम है कि अभी विपक्षी पार्टियां और कई प्रमुख क्षेत्रीय दल हाल के आम चुनावों में हुई पराजय से अभी तक उबरे तक नहीं हैं। कई पार्टियों ने तो अभी तक विधिवत समीक्षा बैठकें तक पूरी नहीं की। चुनावों में पैदा हुई कड़वाहट दूर किए बगैर इतने गंभीर विषय पर चलती चाल का विमर्श कैसे फिर अपने मकसद में कामयाब हो पाएगा। इस सवाल पर लोग सवाल उठा रहे हैं।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined