विचार

धर्मों की सद्भावना और एकता के लिए आज भी सक्रिय हैं 'खुदाई खिदमतगार', निरंतर गोष्ठियों और विमर्शों का हो रहा आयोजन

ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां का सारा जीवन और खुदाई खिदमतगारों की सेवा सम्पूर्ण मानवता के बेहतर भविष्य के लिए एक ऐसी प्रेरणादायक मिसाल है जो आज के हिंसा-आतंकवाद के माहौल में और भी प्रासंगिक हो गई है।

धर्मों की सद्भावना और एकता के लिए आज भी सक्रिय हैं 'खुदाई खिदमतगार'
धर्मों की सद्भावना और एकता के लिए आज भी सक्रिय हैं 'खुदाई खिदमतगार' 

अमन-शांति के लिए समर्पित अनेक व्यक्तियों के लिए यह बहुत सुखद आश्चर्य की बात हो सकती है कि वर्ष 1929 में साहस और अहिंसा के प्रतीक बादशाह खान (खान अब्दुल गफ्फार खान या फ्रंटियर गांधी) ने जिस खुदाई खिदमतगार संगठन को आरंभ किया था, उससे प्रेरणा प्राप्त करते हुए उसी नाम से एक संगठन आज भी भारत में सक्रिय है और विभिन्न धर्मों की सद्भावना और एकता जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर निरंतर गोष्ठियों और विमर्शों का आयोजन कर रहा है।

हाल के प्रयासों की चर्चा करें तो जयपुर में बादशाह खान के जन्म दिवस पर गोष्ठी हुई, महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर भोपाल में सद्भावना संवाद हुआ, तमिलनाडु और आसपास के कुछ क्षेत्रों में भी सभाओं का आयोजन हुआ।

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हमारी स्वाधीनता संग्राम का एक बहुत प्रेरणादायक अध्याय बादशाह खान के नेतृत्व में पेशावर और आसपास के क्षेत्र में हुए संघर्ष और रचनात्मक कार्यों से जुड़ा है।

सितम्बर 1929 में ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां और उनके साथियों ने ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संस्था की स्थापना की। इसके उद्देश्य थे आज़ादी, पख्तूनों में देश और समाज सेवा की भावना भरना, पख्तूनों की सोच में बुनियादी बदलाव (ताकि वे हिंसा और बदले की प्रवृत्ति को छोड़ अहिंसा की राह अपनाएं) और मानवता की सेवा। खुदा के नाम पर लोगों की सेवा करना खुदाई खिदतमगारों का काम था। अहिंसा खुदाई खिदतमगारों की शपथ का आधार था - अंग्रेजों से संघर्ष में अहिंसा और पठानों की जिंदगी में अहिंसा। खुदाई खिदमतगारों का कई स्तरों पर स्थानीय समितियों के रूप में एक जाल-सा फैल गया। इनके प्रमुख कार्य थे - आवश्यकता के समय हर प्रकार की सहायता, सार्वजनिक सभाओं में व्यवस्था बनाए रखना, पख्तूनों को मेहनत और आत्म विश्वास की शिक्षा देना, स्कूल खोलकर शिक्षा का प्रसार करना, खादी को प्रोत्साहन देना, शराब का विरोध, स्थानीय झगड़ों को रोकना आदि।

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 गांधीजी से ख़ान अब्दुल गफ्फ़ार ख़ां काफी प्रभावित हुए थे। 1930-31 के अपने जेल जीवन के दौरान उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा का अध्ययन किया। गांधीजी की ही तरह बादशाह ख़ान भी जीवन में सादगी-सरलता पर बहुत बल देते थे। वे बहुत कम भोजन लेते और घर में कते सूत के कपड़े पहनते थे। ख़ान अब्दुल गफ्फ़ार ख़ां ने कहा था, “...जब मैं अंततः गांधीजी से मिला, मैंने उनके अहिंसा और रचनात्मक कार्यक्रम के बारे में सब कुछ सीखा। इससे मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई।”

1938 में दो बार गांधीजी ने सीमांत क्षेत्र की यात्रा की और खुदाई खिदमतगारों में अपने अहिंसा के सिद्धांत को फलीभूत होते देखा। गांधीजी की इन यात्राओं के दौरान ख़ान अब्दुल गफ्फ़ार ख़ां को उनके नजदीक आने का मौका मिला।

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अक्टूबर 1938 में गांधीजी पुनः लौटे और ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां के साथ सीमांत के कई गांवों की यात्राएं कीं। उत्तमंजई गांव में प्रमुख खुदाई खिदमतगारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे बीच एक सच्चा, ईमानदार, ईश्वर में विश्वास रखने वाला बादशाह ख़ान जैसा व्यक्ति मौजूद है। हजारों पठान लोगों से उनके लड़ने का हथियार बदलने का करिश्मा कर दिख़ाने का श्रेय उनको जाता है।”

खुदाई खिदमतगारों के प्रमुख कार्यों में स्कूल खोलने, पख्तूनों को मेहनत और आत्मविश्वास की शिक्षा देने, स्थानीय झगड़ों के समय शांति कायम करने, शराब का विरोध करने से लेकर सार्वजनिक सभाओं में व्यवस्था बनाए रखने आदि तमाम किस्म की सहायता और सुधार के कार्य शामिल थे। एक खुदाई खिदमतगार प्रायः यह शपथ लेता था- “मैं एक खुदाई खिदमतगार हूँ और ईश्वर को मेरी किसी सेवा की जरूरत नहीं है अतः मैं उसके प्राणियों की निःस्वार्थ भाव से सेवा किया करूंगा/करूंगी। मैं कभी किसी से प्रतिकार या प्रतिहिंसा वश बदला नहीं लूंगा और उसको भी क्षमा कर दूंगा जिसने मेरा शोषण किया है। मैं सारी कुप्रथाओं और कुरीतियों का त्याग कर दूंगा। मैं एक सरल जीवन अपनाऊँगा। मैं दूसरों का उपकार करूँगा और अपने-आपको दुष्कर्मों से बचाऊँगा। मैं अपनी सेवाओं के लिए कोई पुरस्कार नहीं चाहूँगा। मैं निर्भीक रहूंगा और किसी भी त्याग के लिए सदैव तत्पर रहूंगा।”

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20 जनवरी 1988 में ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां की मृत्यु हो गई। ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ां का सारा जीवन और खुदाई खिदमतगारों की सेवा सम्पूर्ण मानवता के बेहतर भविष्य के लिए एक ऐसी प्रेरणादायक मिसाल है जो आज के हिंसा-आतंकवाद के माहौल में और भी प्रासंगिक हो गई है।

खुदाई खिदमतगारों की अनेक सभाओं में विभिन्न धर्मों के लोगों ने जिस उत्साह और सद्भावना में भागेदारी की है, उससे तो यही लगता है कि जनसाधारण में धार्मिक सद्भावना के लिए और विभिन्न तरह के भेदभाव को दूर कर एकता बनाने के लिए गहरी इच्छा है। विभिन्न कार्यक्रमों में स्थानीय अमन संगठनों व विशेषकर गांधीवादी संस्थाओं और कार्यकर्ताओं का अच्छा सहयोग प्राप्त होता रहा है। उम्मीद है कि ऐसे अनेक छोटे-बड़े कार्यक्रमों का एकता और सद्भावना की बुनियाद मजबूत करने के लिए व्यापक असर भी हो सकता है।

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