विचार

खरी-खरीः गोधरा से ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बने मोदी क्या ले पाएंगे पाकिस्तान से पुलवामा का बदला!

गुजरात का मुख्यमंत्री बनाए जाने तक मोदी ने कोई नगर पालिका चुनाव भी नहीं जीता था। लेकिन 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों में वह ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बनकर उभरे। लेकिन अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या अब वही मोदी पाकिस्तान से पुलवामा का बदला ले पाएंगे?

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हे राम पुलवामा! आतंक का वह स्वरूप जिसकी कल्पना केवल पाकिस्तान ही कर सकता है। उसका कारण यह है कि पाकिस्तान ने केवल एक ही इंडस्ट्री में तरक्की की है और वह है आतंक की इंडस्ट्री। तभी तो वह अल कायदा हो या तालिबान अथवा जैश, पूरी दुनिया में हर आतंकी संस्था में पाकिस्तान के हाथ जरूर नजर आते हैं। फिर स्वयं पाकिस्तान में ‘जैश-ए- मोहम्मद’ जैसे दर्जनों आतंकी संगठनों की भरमार है, जिनको पाकिस्तानी फौज और आईएसआई चलाती है।

फिर पाकिस्तानी सरकार इनको ‘नॉन स्टेट एक्टर’ की उपाधि देकर अपना दामन बचाती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि पिछले लगभग चार दशकों से पाकिस्तान का आतंक सारे संसार, विशेषकर भारत के लिए सिर दर्द बन चुका है। लेकिन सारी दुनिया पाकिस्तान का आतंकी तमाशा आंखें मूंदे देखती रहती है।

परंतु पिछले सप्ताह पुलवामा में पाकिस्तान ने आतंक का जो नंगा नाच दिखाया उसने भारत में एक गंभीर राजनीतिक समस्या भी उत्पन्न कर दी। तीन महीनों के अंदर भारत में लोकसभा चुनाव शुरू हो जाएंगे। भारत के लिए यह चुनाव एक ऐतिहासिक महत्व का चुनाव चुनाव बन चुका है। इसका कारण यह है कि भारत में इस समय आधुनिक, उदार और सेकुलर राजनीति और हिंदुत्व राजनीति के बीच एक रण छिड़ा हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले पांच साल में भारतीय संविधान की आत्मा का वध कर भारत को एक ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की जो कोशिश की है, वह काफी हद तक सफल रही है।

यह एक कड़वा सच है कि 2014 से 2019 के बीच भारत ‘हिंदू राष्ट्र’ के दरवाजे तक पहुंच चुका है। यदि नरेंद्र मोदी को सत्ता के अगले पांच साल और मिल जाते हैं, तो संघ के ‘हिंदू राष्ट्र’ के सपने के साकार होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। क्या नरेंद्र मोदी और संघ इस संभावना को आसानी से हाथों से निकलने देंगे?

पिछले हफ्ते पुलवामा में जो आतंकी हमला हुआ उससे पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव जीत पाने की संभावना खटाई में पड़ गई थी। सत्य तो यह है कि मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल की समाप्ति तक मोदी देश की राजनीतिक बिसात लगभग हार चुके थे। नोटबंदी, जीएसटी, किसानों की दुर्दशा और नौजवानों में बढ़ती बेरोजगारी ने मोदी की देश भर में साख मिटा दी थी। वह मोदी जिनके खिलाफ 2014 में सोशल मीडिया पर कोई मुंह नहीं खोल सकता था, वही मोदी अब सोशल मीडिया पर हास्य के मुख्य पात्र हैं।

पिछले एक साल में यह तय हो चुका था कि मोदी के लिए अपने दम पर बीजेपी को चुनावों में जीताना संभव नहीं रह गया। राजस्थान, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे प्रदेशों में चुनावी हार के बाद यह स्पष्ट था कि बीजेपी स्वयं अपने हिंदी भाषी गढ़ तक में चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। फिर जिस प्रकार विपक्ष एकजुट हो रहा था उससे मोदी के लिए अगला चुनाव जीत पाना लगभग असंभव हो चुका था। लेकिन इस राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में पुलवामा ने देश का राजनीतिक दृश्य ही बदल दिया। वह मोदी जिनकी रैलियों में खाली कुर्सियां दिखने लगी थीं, एक बार फिर देश भर में गरज रहे हैं।

सवाल यह भी है कि क्या मोदी एक बार ‘हिंदू अंगरक्षक’ का रूप धारण कर 2019 का चुनाव जीत सकते हैं। वास्तविकता यही है कि भारतीय राजनीति में मोदी का उदय ही ‘हिंदू अंगरक्षक’ के रूप में हुआ था। मोदीजी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बनकर गए उस समय तक उन्होंने कोई नगर पालिका चुनाव भी नहीं जीता था। लेकिन 2002 में गोधरा कांड के पश्चात मोदी ने भारतीय राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। परंतु यह काया पलट हुआ कैसे? मोदी के इस राजनीतिक परिवर्तन में 2002 के गुजरात दंगों ने ही मोदी को मोदी बना दिया। और गुजरात में हुआ वह नरसंहार गोधरा कांड के बिना संभव नहीं था।

जैसा कि सब जानते हैं कि 2002 में गोधरा स्टेशन पर दंगाइयों ने साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को आग लगा दिया था। इस डिब्बे में वे 52 कारसेवक मारे गए थे, जो अयोध्या से ‘रामलला’ के दर्शन कर लौट रहे थे। उन कारसेवकों की मृत्यु के शोक में विश्व हिंदू परिषद ने दूसरे दिन गुजरात बंद का आह्वान कर दिया। गोधरा से दूसरे दिन 52 कारसेवकों के शव अहमदाबाद लाए गए, जिनका जुलूस निकला और देखते-देखते गुजरात में दंगे भड़क उठे। गुजरात तीन दिन तक जलता रहा और मोदी प्रशासन चुपचाप यह सांप्रदायिक तांडव देखता रहा। इन दंगों में लगभग 2000 लोग मारे गए, जिसमें अधिकतर मुस्लिम समाज के लोग थे। बस इन दंगों के बाद नरेंद्र मोदी पहले ‘हिंदू अंगरक्षक’ और फिर हिंदू हृदय सम्राट बन गए।

वह दिन और आज का दिन मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन 2002 के गुजरात दंगों में ऐसी क्या बात थी कि जिसने मोदी को ‘हिंदू अंगरक्षक’ बना दिया। बात यह थी कि गोधरा स्टेशन पर एक ट्रेन के डिब्बे में 52 राम सेवक हिंदू भक्तों की निर्मम हत्या से पूरा गुजराती हिंदू समाज अपने को निर्बल और असहाय महसूस करने लगा। इस वातावरण ने हिंदू समाज को भयभीत ही नहीं अपितु उसके लिए मुस्लिम समाज को उसका शत्रु स्थापित कर दिया। दूसरे दिन भड़के दंगों में मुस्लिम समाज की जी भरकर ठुकाई हुई और मोदी सरकार चुपचाप इस आतंक को देखती रही। दंगों के तीन दिन बाद मोदी ने गरजना-बरसना आरंभ किया, जिससे ये संदेश गया कि अगर मोदी के राज में कोई हिंदुओं के खिलाफ अंगुली भी उठाएगा तो उसके हाथ काट दिए जाएंगे। बस इस ‘राजनीतिक मैसेजिंग’ ने मोदी को रातों-रात ‘हिंदू अंगरक्षक’ और फिर जल्द ही हिंदू हृदय सम्राटब ना दिया। बाकी जो कुछ भी हुआ वह एक इतिहास है। अगर गोधरा न होता तो मोदी ‘हिंदू अंगरक्षक’ न बनते।

अब प्रश्न यह है कि क्या 2019 में पुलवामा का आतंकी हमला मोदी का 2002 का गोधरा तो नहीं सिद्ध होगा। दरअसल ‘हिंदू अंगरक्षक’ का रूप धारण करने के लिए एक शत्रु आवश्यक होता है। गोधरा में वह शत्रु गुजराती मुसलमान था, जिससे बदला लेना जरूरी था। पुलवामा आतंकी हमले के पश्चात वह शत्रु पाकिस्तान है, जिससे बदला लेने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं। पिछले एक सप्ताह में देश का राजनीतिक माहौल जिस तेजी से बदला है उससे आप भलीभांति परिचित हैं। टीवी स्टूडियो से लेकर गली-कूचे तक में आवाज उठ रही है। और वह आवाज है- पाकिस्तान से बदला।

गोधरा के समान पुलवामा ने भी जनता को एक शत्रु भेंट कर दिया है। यदि मोदी उस शत्रु का वध कर लेते हैं तो वह हिंदू हृदय सम्राट बन सकते हैं। देश राफेल से लेकर नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी जैसे मोदी के सारे पाप भी भूल सकता है। फिर इस प्रकार 2019 का रास्ता बीजेपी के लिए सफल हो सकता है।

लेकिन पुलवामा और गोधरा में अंतर भी है। गोधरा में शत्रु गुजराती मुसलमान था, जिससे दंगे की आड़ में बदला लेना बड़ा कठिन नहीं था। लेकिन पुलवामा में शत्रु पाकिस्तान है। क्या परमाणु बम से लैस पाकिस्तान के साथ एक संपूर्ण युद्ध कर पाकिस्तान को भलीभांति सबक सिखाना उतना ही आसान है, जितना गुजराती मुसलमान को था? यह एक कठिन प्रश्न है जिसका उत्तर अभी दे पाना कठिन है। लेकिन यह तय है कि इस बार सर्जिकल स्ट्राइक जैसी प्रतिक्रिया देशवासियों को संतुष्ट नहीं कर सकती। यह भी संभव है कि मोदी पुलवामा के बावजूद हीरो से जीरो बन जाएं।

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