विचार

समता, समावेश और सद्भावना से ही भारत में प्रगति की मजबूत बुनियाद बनेगी

समता, समावेश व सद्भावना की राह पर चलते हुए ही भारत दीर्घकालीन स्तर पर प्रगति की बुनियाद को मजबूत कर सकेगा।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया Debarchan Chatterjee

भारत के इतिहास में आजादी की लड़ाई बहुत ही प्रेरणादायक समय रहा। इस समय ऐसे अनेक बेहद महान स्वतंत्रता सेनानी सामने आए जिन्होंने लोगों का असीम प्रेम व सहयोग प्राप्त किया। यदि उस समय के ऐसे नेताओं की सूची बनाएं जिन्हें भारतीय लोगों का प्यार सबसे अधिक मिला तो एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात सामने आती है कि सबसे अधिक प्यार भारतीय लोगों ने उन नेताओं को दिया जिनकी दो बुनियादी सिद्धांतों में बहुत गहरी आस्था थी।

भारतीय लोगों का सबसे अधिक प्यार जिन भी नेताओं को स्वाधीनता आंदोलन में मिला, उनमें शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सुभाष चंद्र बोस, बादशाह खान व मौलाना आजाद जैसे नाम पहली पंक्ति में हैं। इन सबके बारे में दृढ़ता से कहा जा सकता है कि इन दो सिद्धान्तों में इनकी गहरी आस्था थी। पहला सिद्धान्त है समता, न्याय व समावेशी विकास। दूसरा सिद्धान्त है सभी धर्मों की आपसी सद्भावना व एकता। अपने अध्ययन व अनुभवों के आधार पर इन सभी नेताओं ने यह बहुत भली-भांति समझ लिया था कि यह दो मूल सिद्धान्त भारत की प्रगति का मुख्य आधार है व इन पर चलने के लिए उन्होंने देश के लोगों को बार-बार प्रेरित भी किया। इसमें उन्हें बहुत बड़ी सफलता भी मिली पर 1940 के दशक में जब ऐसे प्रमुख नेता जेल में थे या देश से बाहर थे तो औपनिवेशिक ताकतों को समय मिल गया और उन्होंने विभिन्न लोगों को बांटने वाले तत्त्वों को आगे बढ़ा दिया।

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खैर, हमारे सबसे प्रेरणादायक स्वाधीनता संग्राम के नेताओं ने हमें जिन दो प्रमुख सिद्धान्तों का संदेश दिया, उसे आजादी के बाद अपनाने से देश की प्रगति में बहुत सहायता मिली। आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में इन सिद्धान्तों को स्थापित करने में जवाहरलाल नेहरु की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका थी हालांकि अनेक अन्य प्रेरणादायक व्यक्तियों ने भी इसमें बहुत योगदान दिया। इसके बाद भी हम देखते रहे हैं कि जब भी इन सिद्धान्तों को आधार बना कर चलते हैं देश की प्रगति की संभावनाएं मजबूत होती हैं और जब देश भूलवश इन सिद्धान्तों से कुछ पीछे हटता है तो हमारी कई तरह की समस्याएं बढ़ने लगती हैं।

इन सिद्धान्तों की व्यवहारिक अभिव्यक्ति यह है कि कोई भी देश अपने सब लोगों से ही मिलकर बनता है और यदि इन सभी लोगों को राष्ट्रीय विकास में रचनात्मक योगदान देने का अवसर मिले, इनमें कोई आपसी भेदभाव व झगड़े न हों तो राष्ट्रीय विकास की सबसे बेहतर संभावनाएं उपलब्ध होंगी।

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आगे यह भी स्पष्ट है कि यदि आय व संपत्ति के वितरण में अधिक विषमता आती है, तो सभी लोगों को समान विकास के अवसर नहीं मिल पाते हैं। सबको उचित शिक्षा भी नहीं मिल पाती है। जहां एक ओर अभाव के कारण लोग न अपनी प्रगति कर पाते हैं या देश के विकास में अपनी क्षमताओं का भरपूर योगदान दे पाते हैं, वहां दूसरी ओर चंद अरबपति अपनी अपार दौलत के बल पर तरह-तरह की मनमानी करते हैं, संसाधनों की लूट करते हैं इस कारण भी राष्ट्रीय हितों की क्षति होती है।

यदि हम विश्व के कुछ सबसे धनी देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका को देखें तो वहां अपार धन-संपत्ति व संसाधन होने के बावजूद व जीएनपी बहुत अधिक होने के बावजूद भी नीचे के एक तिहाई लोग फिर भी बुनियादी जरूरतों को (उनके देश के स्तर के आधार पर) प्राप्त करने में अनेक कठिनाईयों से जूझ रहे हैं। सवाल यह है कि इतना धनी और संसाधन-युक्त देश भी संपत्ति व आय की विषमता के कारण अपने करोड़ों लोगों की जरूरतों को संतोषजनक ढंग से पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो अपेक्षाकृत कई कम संसाधनों व जीएनपी वाले भारत जैसे विकासशील देश अपने सभी लोगों की जरूरतों को उचित ढंग से कैसे पूरी कर पाएंगे। तिस पर यदि भेदभाव और सांप्रदायिक समस्याएं बनी रहें तो कुछ समुदायों के लिए ही नहीं, पूरे देश में प्रगति की राह और कठिन हो जाएगी।

अतः इस बारे में स्थिति बहुत स्पष्ट है कि समता, समावेश व सद्भावना की राह पर चलते हुए ही भारत दीर्घकालीन स्तर पर प्रगति की बुनियाद को मजबूत कर सकेगा।

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