विचार

आकार पटेल का लेख: आर्थिक दौड़ में दुनिया से कदमताल के लिए जुमलों के बजाए करना होगा असली आंकड़ों पर भरोसा

हम या तो बीते 60 साल के आंकड़े और अपना असली प्रदर्शन देखकर वास्तविकता को स्वीकार कर लें या फिर नारों और जुमलों से खुद को समझाते रहें।

सांकेतिक फोटो
सांकेतिक फोटो 

कोई 33 साल पहले, यानी 1990 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 367 डॉलर और चीन की 317 डॉलर थी। यह आखिरी दौर था जब हम चीन से आगे थे। नोट करने की बात यह है कि जिस समय दोनों देशों ने उदारीकरण के दौर की शुरुआत की तो चीन उस वक्त भारत से थोड़ा सा पीछे था। लेकिन उदारीकरण के बाद भी हम वह नहीं कर पाए जो चीन ने कर दिखाया। 1990 के दशक में चीन ने 11.7 फीसदी की विकास दर से प्रगति की (हमारी विकास दर 5.6 फीसदी थी), फिर 2000 के दशक में हमारी 6.5 फीसदी के मुकाबले चीन ने 16.5 फीसदी की दर से विकास किया और उसके बाद 2010 के दशक में चीन ने हमारे 5.1 फीसदी के मुकाबले 8.8 फीसदी की दर से प्रगति की।

चीन को लेकर हमारी दिलचस्पी इसलिए भी रहती है क्योंकि उसकी आबादी भी हमारी ही तरह बहुत अधिक है और वह भी एक एशियाई देश है। वह भी हमारी तरह एक समय हमारे जैसा ही गरीब देश था। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 1960 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 82 डॉलर थी और चीन की 89 डॉलर। 1970 में हमारी आय 112 डॉलर पर थी और चीन की 113 डॉलर पर। 1980 में हमारे यहां प्रति व्यक्ति आय 266 डॉलर थी जबकि चीन काफी पीछे 194 डॉलर पर था।

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2000 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1,357 डॉलर पहुंची थी, लेकिन चीन की प्रति व्यक्ति आय 4,450 डॉलर पहुंच गई थी। 2022 में भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 2,388 डॉलर थी, लेकिन चीन में यह आंकड़ा 12,720 डॉलर पहुंच गया था।

जापान ने 1960 के दशक में 13.7 फीसदी की दर से विकास करते हुए हमारे वर्तमान स्तर (2056 डॉलर) का आंकड़ा छू लिया था। 1980 के दशक में इसने 16 फीसदी की विकास दर हासिल की और प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 9,463 डॉलर पहुंचा। इसके बाद के चार दशकों तक इसकी औसत विकास दर 3.5 फीसदी रही, लेकिन प्रति व्यक्ति 39,000 डॉलर से कुछ अधिक रही। हर साल 15 फीसदी की दर से विकास करना कोई आसान काम नहीं है, जिसे हम कभी हासिल नहीं कर पाए, लेकिन ये तीनों देश निरंतरता के साथ कई वर्षों तक विकास करते रहे और गरीबी से बचते रहे।

सफलता की अन्य कहानी दक्षिण कोरिया की है, जो 1960 और 1970 के दशक में औसतन 5.8 फीसदी की दर से विकास कर रहा था। लेकिन 1970 से 1980 के बीच इसने 20 फीसदी की विकास दर हासिल की और इसके बाद वाले दशक में 14.4 फीसदी की। इसके बाद यानी 1990 से 2000 के बीच इसकी विकास दर औसतन 6.3 फीसदी और 2000 से 2010 वाले दशक में 6.5 फीसदी रही। पिछले दशक में 2020 तक इसकी विकास दर 3 फीसदी रही, और इसने विकसित देश का दर्जा हासिल कर लिया। 1970 के दक्षिण कोरिया की प्रति व्यक्ति जीडीपी डॉलर में देखें तो भारत से दोगुनी थी। आज यह 15 गुना है।

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अतीत में हर उस बिंदु पर जब एशिया के तीन देश औसत प्रति व्यक्ति जीडीपी के पास थे, तो वे हर वर्ष दो अंकों की विकास दर हासिल कर रहे थे। हमने वह आंकड़ा कभी नहीं छुआ और यही कारण है कि हम बाकी तीन देशों की सूची में शामिल नहीं हो पाए।

तो आखिर हम हैं कहां?

विश्व बैंक ऐसे देशों को मध्यम आय वाले देश के रूप में परिभाषित करता है जहां प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,036 से लेकर 4,045 डॉलर तक होती है। 2200 डॉलर पर हम हम निम्न मध्यम आमदनी वाले देश हैं और 2008 से इसी पर बने हुए हैं, इसी समय के आसपास हमने 1000 डॉलर का आंकड़ा छुआ था।) उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएं वे गेश हैं जहां प्रति व्यक्ति आय 4000 से 12,300 डॉलर होती है। चीन 2021 में इस आंकड़े को पार कर गया जब उसकी प्रति व्यक्ति आए 12,556 पर पहुंची थी। इसके ऊपर की आमदनी को उच्च आय माना जाता है।

बीते छह दशक में हमारी प्रगति का ऐतिहासिक औसत 5.02 फीसदी रहा है। 2014 के बाद से हमारी विकास दर औसतन 5.05 फीसदी रही है। मतलब यह कि नेहरू के समाजवाद, इंदिरा गांधी के लाइसेंस राज या फिर उदारीकरण के दौर में बीते तीन दशक से चलने वाली अर्थव्यस्था के बीच कोई खास अंतर नहीं है। हमारी विकास की रफ्तार एक ही तरह की रही है।

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बांग्लादेश हालांकि आज हम से प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में मामूली तौर पर आगे है, लेकिन आर्थिक तौर पर वे अपने बुरे दौर से बाहर आ चुका है। 1971 से 1980 तक के दशक में बांग्लादेश की जीडीपी की रफ्तार औसतन 1.04 फीसदी प्रति वर्ष रही। इस दशक के तीन साल तो उसकी विकास दर निगेटिव दर्ज हुई। 1972 में इसमें 14 फीसदी की गिरावट थी। इसके चलते विश्व ने बांग्लादेश को एक राष्ट्र के तौर पर लगभग खारिज कर दिया था। अमेरिकी राजनयिक एलेक्स जॉनसन ने इसे इंटरनेशनल बास्केट केस (किसी देश की बेहद खराब आर्थिक स्थिति के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) घोषित कर दिया था जिससे उस समय के अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर (जिनका हाल में देहांत हुआ है) सहमत थे।

लेकिन आज बांग्लादेश को देखिए, आज वह सुपरपॉवर भारत के साथ खड़ा है, और वास्तव में देखे तो थोड़ा सा आगे ही है। पिछले दशक में बांग्लादेश में औसत विकास दर 6.4 फीसदी रही है। हम से अलग हुए पाकिस्तान ने 1960 के दशक हमें पीछे छोड़ा था। 1961 से 197द के दशक में पाकिस्तान की तरक्की की रफ्तार प्रति वर्ष 7.25 फीसदी रही थी। 1965 और 197द के दो साल इसकी विका दर 10 फीसदी थी। अमेरिकी राजनीतिक शास्त्री सैमुएल हंटिंगटन (जिन्होंने संभ्यताओं के संघर्ष का जुमला उछाला था) ने उस दौर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान की ग्रीक सांसद सोलोन और लाइकुरगस से तुलना की थी।

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लेकिन आज देखिए पाकिस्तान कहां है, बांग्लादेश से प्रति व्यक्ति जीडीपी में कहीं पीछे है और उप-सहारा अफ्रीका से भी कोई खास आगे नहीं है, जिसे दुनिया का सबसे गरीब क्षेत्र माना जाता है। पाकिस्तान में 2011 से 2020 के बीच औसतन 3.7 फीसदी की विकास दर रही जो वैश्विक औसत 2.38 से कुछ आगे थी।

विश्व की प्रति व्यक्ति जीडीपी हर साल औसतन 12,262 डॉलर है। चीन इससे कुछ आगे है और बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत इसके पांचवे हिस्से के बराबर। हम 1960 में वैश्विक औसत से पांचवे हिस्से कम थे, उस समय विश्व की प्रति व्यक्ति आए 459 डॉलर थी, और भारत की 82 डॉलर। ध्यान रहे कि यह प्रति व्यक्ति आय है और दुनिया की 7.7 अरब की आबादी में दक्षिण एशिया की हिस्सेदारी पूरे 23 फीसदी है। अर्थात, हम विश्व अर्थव्यवस्था और उत्पादकता को नीचे खींचने का काम कर रहे हैं, और बीते रीब 60 साल से मोटे तौर पर हम लगभग एक ही दर से ऐसा कर रहे हैं।

हम या तो बीते 60 साल के आंकड़े और अपना असली प्रदर्शन देखकर वास्तविकता को स्वीकार कर लें या फिर नारों और जुमलों से खुद को समझाते रहें। लेकिन सवाल है कि ऐसे में हम कहां पहुंचेगे? यही विषय है जिस पर मैं इन दिनों किताब लिख रहा हूं, और वह अगले सप्ताह सामने होगी।

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