विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: मैंने कहा था या नहीं कहा था कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा?

क्या खाने के समय यह घोषणा करना चाहिए कि मैं खा रहा हूं? क्या सनातन परंपरा के यह अनुरूप है? हम भारतीय चुपचाप खाते हैं या मुनादी करके खाते हैं ? पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो- सोशल मीडिया

मैंने कहा था या नहीं कहा था कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा?

कभी नहीं कहा था। आप ऐसी गलत बात कह ही नहीं सकते।

और जब मैंने खाना शुरू किया तो किसी से कहा कि खा रहा हूं?

नहीं कहा था।

क्या खाने के समय यह घोषणा करना चाहिए कि मैं खा रहा हूं? क्या सनातन परंपरा के यह अनुरूप है? हम भारतीय चुपचाप खाते हैं या मुनादी करके खाते हैं ?

 चुपचाप खाते हैं।

खाना गलत है या नहीं खाना गलत है ?

 नहीं, खाना, खाना तो गलत नहीं है।

 तो मैंने खाकर  गलत किया या सही किया?

 भूखे थे तो गलत नहीं किया पर भूखे थे क्या?

 चुप रहो। अच्छा आप ये बताओ कि जब आप  खाते हो तो क्या अकेले सबकुछ खुद खा लेते हो या अपनों के साथ मिलकर खाते हो?यानी खाते भी हो और खिलाते भी हो।

खाते भी हैं और खिलाते भी हैं।

 मैंने 81 करोड़ जनता को पांच किलो अनाज खिलाया या नहीं खिलाया?

 आप कौन खिलानेवाले?

ओ भाई चुप रह।निकालो इसे यहां से।अब ये बताओ कि क्या मैं अडानी- अंबानी को भी पांच किलो अनाज खिलाता तो वे खाते या मेरे मुंह पर मार देते?

 आपके मुंह पर मार देते।

 और आपको यह अच्छा लगता?

 मौन।

 बोलो कुछ।

 मौन।

 हमारे यहां सब काम सामने वाले की हैसियत देखकर किए जाते हैं या नहीं किए जाते हैं?

 किए तो इसी तरह जाते हैं।

तो मैंने उनकी हैसियत देखकर, कुछ सरकारी संपत्ति उनके सुपुर्द कर, कुछ पचास साल की लीज पर देकर, उनके हजारों करोड़ के कर्ज माफ कर, अपनी कुर्सी पक्की करके, उनकी चाकरी ईमानदारी से करके,  गलत किया क्या? तुम भी खाओ और हमें भी खिलाओ का सिद्धांत गलत है या सही है?

 गलत है।

 कहो कि सही है।

 नहीं, गलत है‌।

 कहो कि सही है।

पहले हम हर बात में  हां कहते थे,  अब नहीं कहेंगे। हम गलत को ग़लत कहना सीख गए हैं।

 यह गद्दारी है, यह देशद्रोह है। तुम जानते हो न मुझे?

 हां आपको अब बहुत ही अच्छी तरह जानने लगे हैं और अपने आप को भी उतनी ही अच्छी तरह जानने लगे हैं।

 मैं तुम्हारी नागरिकता छीन लूंगा।

 छीनने की कोशिश करके  देखो तो। इतना आसान है सब क्या?

 तुम मुझे चुनौती दे रहे हो? मुझे? जनता होकर तुम्हारी इतनी हैसियत कब से हो गई? सोच लो एक बार फिर अच्छी तरह से।

 सोच लिया।

 मैं तुम्हारा पांच किलो अनाज छीन लूंगा।

 हम तुम्हारी अकड़ हमेशा -हमेशा के लिए छीन लेंगे।

आप समझो मेरी बात को। आप पहले की तरह फिर से अच्छे बच्चे क्यों नहीं बन जाते? मेरी हर बात में हां क्यों नहीं मिलाते?

 अब हम बच्चे नहीं रहे।

 बच्चे नहीं रहे तो आज तक मैंने तुम्हें जितना पांच 

किलो अनाज दिया है, सबका सब ब्याज सहित वापस करो।

 तुमने अपनी जेब से दिया था? है तुम्हारी हस्ती और है तुम्हारे सेठों की इतनी हैसियत? हमारा पैसा हमारि अनाज और हमीं से अकड़?

 मैं जा रहा हूं। ये आए तो एक्स-रे करके तुम्हारे घर का सोना,धन सब छीन ले जाएंगे।

 ऐसा होगा, तब देखा जाएगा। आप चिंता मत करो। वैसे हमारे पास छीनने के लिए है क्या?

 तो मैं जाऊं?

 जाओ।खुशी -खुशी जाओ। टिकट का पैसा पास में है या दें?

 मैं फिर नहीं आऊंगा।

 हमने तो इस बार भी तुम्हें नहीं बुलाया था। खुद ही सड़क के रास्ते हेलीकॉप्टर से आए थे।

 मैं सचमुच जा रहा हूं।

 सचमुच ही जाओ न बाबा, जाओ। हमेशा के लिए  जाओ। झूठ-मूठ मत जाना। झोला ले जाना।फट गया हो तो वो भी हमसे ले जाओ। नया दें?

 स्वार्थी कहीं के? मतलबी? नरक में जाओगे।

हा हा हा।

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