नई दिल्ली में 20,000 करोड़ की सेंट्रल विस्टा परियोजना से जुड़ी दो घटनाओं पर गौर करना चाहिए: पहली, 1,300 आपत्तियों को दरकिनार करते हुए इसे पर्यावरण संबंधी क्लीयरेंस दे दी जाती है और दूसरी, सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना के खिलाफ दाखिल तमाम याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जरूरत नहीं समझी।
इस परियोजना को सुप्रीम कोर्ट कैसे लेगा, यह अंदाजा लगाने का विषय है। देखना है कि वह इसे एक विरासत को नष्ट करने वाले कदम के तौर पर देखता है या फिर औपनिवेशेिक भूत से अलग होने के तर्कसंगत कदम के रूप में। आपत्तियां इस आधार पर की गई थीं कि वैश्विक महामारी और आर्थिक मंदी के मौजूदा संकट काल में इस तरह की परियोजना सरासर निरर्थक और आपत्तिजनक है, लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया गया।
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2014 की जनवरी में मनमोहन सिंह सरकार ने इसी औपनिवेशेिक राजधानी दिल्ली को विश्व विरासत स्थल के तौर पर मान्यता दिलाने के लिए यूनेस्को में आवेदन किया था। एक साल बाद जब यूनेस्को बॉन में होने वाले 39वें सम्मेलन में विचार किए जाने वाले विषयों का ब्योरा तैयार कर रहा था तो मोदी सरकार ने बिना कोई कारण बताए वह आवेदन वापस ले लिया।
जब इस विषय पर अगस्त, 2015 में राज्यसभा में प्रश्न किया गया तो तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने यह कहते हुए सदन को गुमराह किया कि सरकार ने यूनेस्को को केवल नामांकन को स्थगित करने के लिए कहा है। जबकि यूनेस्को के ‘विश्व धरोहर स्थल के लिए नामांकन’ के रिकॉर्ड में यह दर्ज है कि नामांकन ‘संबंधित सरकार पक्ष (भारत) के अनुरोध पर वापस लिया गया।’
अगर यूनेस्को ने उस आवेदन को स्वीकार कर लिया होता तो विरासत स्थलों- यानी राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और लुटियन बंगलो जोन में कोई भी बड़ा बदलाव भारत की प्रतिबद्धता के खिलाफ जाता और ऐसा करना यूनेस्को के दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन होता।
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अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की भव्य प्रतिमाओं को तालिबान द्वारा तोड़ दिए जाने के बाद यूनेस्को ने फैसला किया था कि सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने पर अब दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। घोषणापत्र के क्लॉज-6 में लिखा हैः “मानवता के लिए किसी भी बहुमूल्य सांस्कृतिक विरासत- भले वह यूनेस्को या किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन की सूची में शामिल हो या नहीं- को अगर कोई देश जान-बूझकर नष्ट करता है या इन्हें नष्ट किए जाने से बचाने, रोकने का उचित प्रयास नहीं करता है तो उस देश को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत ऐसे विनाश के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।”
दूसरे शब्दों में, इस आधार पर, अगर यूनेस्को समझता है कि दिल्ली की सेंट्रल विस्टा परियोजना आंशिक रूप से भी विरासत को नुकसान पहुंचाने वाली है तो वह भारत को कानूनी नोटिस भेज सकता है और यहां तक कि उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत में मामला चला सकता है। जब यूनेस्को के प्रवक्ता से पूछा गया कि उस स्थिति में उनका संगठन क्या कार्रवाई कर सकता है तो उन्होंने कहा- काल्पनिक सवालों का जवाब नहीं दे सकता। बहरहाल, यह सवाल आज काल्पनिक हो सकता है लेकिन अगर इस परियोजना पर अमल शुरू हो गया तो यह काल्पनिक नहीं रह जाएगा।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि यूनेस्को का काम क्या है- किसी गलत काम को नहीं होने देना या फिर हो जाने के बाद लकीर पीटना? दिल्ली के 2021 के मास्टर प्लान में “लुटियन बंगलो जोन (एलबीजेड) के भीतर विशिष्ट विरासत परिसर को “विरासत क्षेत्र” घोषित किया गया है। इसमें अन्य बातों के अतिरिक्त इसका भी जिक्र है कि दिल्ली की विरासत के संरक्षण को लेकर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण काफी चिंतित है।
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मोदी सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, बावजूद इसके आपत्तियों की बाढ़ आ गई। भारत में गैर-संरक्षित पुरातात्विक विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैच) का वर्ष 2004 में मसौदा तैयार करने वाली टीम से जुड़े आर्किटेक्ट, प्लानर और संरक्षणवादी ए.जी.कृषणा मेनन कहते हैं, “मुझे जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक मुगल गार्डन (राष्ट्रपति भवन) और रिज के बीच के खुले क्षेत्र के बड़े भाग में जैव-उद्यान बनाया जाएगा।”
उन्होंने बताया, लेकिन ऐसा करना इंटैच की समग्र संरक्षण प्रबंधन योजना के खिलाफ होगा, जबकि मेनन के मुताबिक उस योजना को “कानूनी मंजूरी” भी मिल चुकी है। नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक को अभिलेखागार और संग्रहालय में तब्दील करने की योजना पर टिप्पणी करते हुए मेनन कहते हैं कि भूकंप के लिहाज से इस इलाके को संवेदनशील माना गया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा,“समझ में नहीं आ रहा कि आखिर संग्रहालय बनाने के लिहाज से इन भवनों को कैसे सुरक्षित मान लिया गया जहां रोजाना सैकड़ों लोग आएंगे। इन ऐतिहासिक भवनों में सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय रहे, इस बात को तो जैसे बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया गया।”
जहां तक संसद भवन की बात है, इसे भी एक संग्रहालय में बदला जाना है। इसके बारे में दावा किया जा रहा है कि निर्वाचन सुधार के कारण सांसदों की संख्या बढ़ जाएगी और तब संसद भवन में इन अतिरिक्त सांसदों के बैठने की जगह नहीं होगी। मेनन दावा करते हैं कि “तमाम आर्किटेक्ट्स द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि यह बात सही नहीं।”
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लंदन में पैलेस ऑफ वेस्टमिनिस्टर में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य बैठते हैं और दोनों सदनों के सदस्यों के एक साथ बैठने के नजरिये से जगह काफी कम है। फिर भी इसे छोड़कर नए सिरे से कहीं और निर्माण नहीं हो रहा, बल्कि इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए अरबों पाउंड खर्च करके इसे ही इस्तेमाल के योग्य बनाया जा रहा है।
नई दिल्ली में सेंट्रल विस्टा की भव्यता एड्विन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर की बेमिसाल वास्तुकला का उदाहरण है। एड्विन लुटियन्स के लंदन में रहने वाले प्रपौत्र और लुटियंस ट्रस्ट के सह-अध्यक्ष मार्न लुटियंस ने हाल ही में लिखे एक लेख में कहा है कि “भारत के तमाम संरक्षण निकायों, आर्किटेक्ट्स और अर्बन डिजाइनर्स की तरह ही ट्रस्ट का भी मानना है कि इन बदलावों के लिए निर्धारित समय सीमा बहुत कम तो है ही, इसके अलावा इस पूरी प्रक्रिया में उचित सार्वजनिक विचार विमर्श नहीं हुआ और न ही पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का कोई अध्ययन ही कराया गया।”
दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के जरिये हो रहे बदलाव ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लेकिन जाहिर है, यह गलत कारणों से है। फिर भी, यह स्पष्ट है कि इस विवादास्पद परियोजना पर अंतिम फैसला आना अभी बाकी है।
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