विचार

कोरोना के कहर से आजादी तो मिल जाएगी, लेकिन क्या अब आदमी मशीन का ग़ुलाम हो जाएगा?

उन दिनों को गुजरे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब हम मोबाइल के ’एम’ और इंटरनेट के ’आई’ को भी नहीं जानते थे। 25 साल पहले यानी बहुत से लोगों का बचपन और हमारे जैसे लोगों की जवानी के समय दुनिया के ’मुट्ठी’ में होने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

उन दिनों को गुजरे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब हम मोबाइल के ’एम’ और इंटरनेट के ’आई’ को भी नहीं जानते थे। 25 साल पहले यानी बहुत से लोगों का बचपन और हमारे जैसे लोगों की जवानी के समय दुनिया के ’मुट्ठी’ में होने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, मतलब ये कि उस समय न तो मोबाइल हर व्यक्ति के पास था और न इंटरनेट की सेवा इतनी आसान थी कि घर बैठे सारे काम कर लेते। अगर महामारी कोरोना उस समय समाज में फैल जाता तो इस वायरस से कितनी जान चली जाती इसका तो अंदाज़ा लगाना ही मुश्किल है, लेकिन घरों में क़ैद रह कर ज़िंदगी के सभी जरूरी काम करना तो अकल्पनीय ही था। आज शहरों में बैंक से लेकर ऑफिस और खाने से लेकर दवाईयों तक की ऑनलाइन सेवाएं प्राप्त हैं। इस मोबाइल और इंटरनेट के कारण आज कुछ को छोड़कर अधिकतर काम ’वर्क फ्राॅम होम’ ही हो रहे हैं। मतबल आज घरों में जबरन क़ैद हो कर भी ज़िंदगी पटरी पर नज़र आ रही है और ज़ाहिर है इस का सेहरा साईंस की तरक़्क़ी को ही है।

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कोरोना वायरस के चंगुल में आज हर देश और समाज का हर व्यक्ति है, चाहे वो देश विकसित हो या ग़रीब, चाहे वो व्यक्ति बादशाह हो या मज़दूर। इस महामारी से बचने के लिए हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से दूरी बनाए हुए है और इसके अलावा कोई और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा। एक दूसरे से सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बना कर रखिए, बार-बार हाथ धोईए, जब छींक आए तो ऐसे हाथ रखकर छींकिए, अगर बुखार है तो चेहरे पर मास्क लगाएं आदि। इन सब में सबसे अधिक ज़ोर जिस चीज पर दिया जा रहा है वो है एक दूसरे से सामाजिक दूरी बनाना। ये बीमारी और अधिक न फैले और लोग एक दूसरे से दूरी बनाए रखें इस के लिए शहरों और देशों में लॉकडाउन कर दिया गया है। मतलब ‘जो जहां है वो वहीं रहे’ के फार्मूला पर चले। ऐसे समय में फोन और इंटरनेट के अलावा एक दूसरे से जुड़े रहने का कोई और साधन भी नहीं है।

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वैज्ञानिक इस बात पर सहमत दिखाई दे रहे हैं कि इस महामारी पर क़ाबू पा लिया जाएगा और चीन ने किसी हद तक इस को साबित भी कर दिया है, लेकिन क्या इस बीमारी से जन्म लेने वाली समस्याएं भी ख़त्म हो जाएंगी, या इन समस्याओं के कारण एक नई दुनिया और एक नया कल्चर जन्म लेगा जो मौजूदा नौजवान नस्ल और आने वाली नस्लों के लिए नए चुनौती ले कर आएगी। ज़ाहिर है हर दौर में विकास के साथ चुनौतियां भी सामने आईं हैं। पहले कोई सड़क दुर्घटना में नहीं मरता था क्योंकि सड़क और ट्रैफ़िक की कोई कल्पना ही नहीं थी। लेकिन जानवरों के हमलों का डर उस समय बहुत अधिक था जो आज नहीं है। बात साफ है कि विज्ञान के विकास से इंसानों को जहां आराम मिलता है और तेजी से आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है वहीं ये विज्ञान का विकास कुछ नए जोखिम लेकर सामने आता है।

हर दौर में इंसान का ये प्रयास रहता है कि कैसे उसकी निर्भरता विशेषतः प्रकृति पर कम हो जाए और वो इसके लिए संघर्ष करता रहता है। इस विकास की प्रक्रिया में जहां उसने एक देश से दूसरे देश की यात्रा को चंद घंटों में समेट दिया है वहीं वो दूसरे ग्रहों पर जीवन तलाश करने के प्रयास में है। लेकिन सारी तरक्की और समस्याओं का हल तलाश करते समय उसके गांव की सुकून वाली जिंदगी शहर के हंगामों की भेंट चढ़ गई, उसकी समाजी ज़िंदगी फ्लैटों में बंद हो गई, उसका वैवाहिक जीवन कब ’लिव-इन-रिलेशनशिप’ मैं बदल गया पता ही नहीं चला। बड़ी लंबी लिस्ट है, लेकिन इस तरक्की में इंसान की एक ही इच्छा थी कि उसकी दूसरों पर निर्भरता खत्म हो जाए और किसी हद तक वो इस में सफल भी हो गया है। कोरोना वायरस के इस कहर के दौरान वो कैद ज़रूर है लेकिन मोहताज नज़र नहीं आता, क्योंकि वो हर काम घर से कर रहा है चाहे वो बैंक से पैसे भेजने या मंगाने का हो या खाना या दूसरे जरूरी सामान मंगवाने का हो।

इंसान ने ये पैग़ाम दे दिया है कि वो क़ैद में रह कर भी ज़िंदगी बसर कर सकता है। दूसरे शब्दों में अगर इस बात को कहा जाए तो वो बिना किसी निर्भरता के अकेले ज़िंदगी गुज़ार सकता है। ये सब साईंस यानी विज्ञान की तरक्की से ही संभव हुआ। लेकिन अब भी इंसान को इस में कुछ कमी महसूस हो रही है। यानी सामान मंगवाते समय वाइरस के साथ आने का ख़तरा, भूख उसको अब भी परेशान करती है, शौच के लिए वो आज भी मजबूर है आदि आदि। कोरोना वायरस के इस क़हर के बाद इंसानी तरक़्क़ी का नया अध्याय शुरू होगा और वो ये होगा कि कुछ ऐसा प्रयास हो जिस से कि भूख न लगे, और अगर लगे भी तो उसे सब्जी और रोटी की आवश्यकता नहीं हो बल्कि उसकी कल्पना ही काफी हो, उसको शौच जाने की आवश्यकता न हो। यानी वो अकेला कम्प्यूटर जैसी मशीनों और इन्सान नुमा रोबोट के साथ ज़िंदगी जी सके।

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कोरोना वायरस की इस महामारी के बाद इंसान जो अपनी मोहताजी को ख़त्म करने के लिए प्रयास शुरू करेगा इस से वो और अधिक अकेला हो जाएगा और इसकी निर्भरता इंसानों पर से हट कर मशीनों पर हो जाएगी। बहुत संभव है कि इंसान जिसकी आज मशीनें ग़ुलाम हैं, वो कल मशीनों का ग़ुलाम हो जाएगा। इसके अकेले रहने और मशीनों के ग़ुलाम होने की वजह से समाज में जो आज की समस्याएं हैं, जैसे धर्म और नस्ल की लड़ाई, वो तो ख़त्म हो जाएंगे लेकिन नई साईंसी लड़ाई की समस्याएं जन्म ज़रूर लेंगी जो परिणाम स्वरूप एक नई सभ्यता को जन्म देंगी। वैसे भी इंसान ने अपने विकास का एक लंबा सफर तय किया है।

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भविष्य तय करेगा कि मानव विकास का सफ़र उसे कहाँ ले जाता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण जो समस्याएं सामने आने वाली हैं वो बड़े स्तर पर बेरोज़गारी और आर्थिक तंगी है जिसके परिणाम स्वरूप अपराध और समाजी टकराव बढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा है। आर्थिक तंगी एक ऐसी समस्या है जो समाज को तार-तार करने के लिए अकेला ही काफ़ी है। सरकारों और सत्ताधारियों की असल परीक्षा इस महामारी के ख़त्म होने के बाद होगी।

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