सबसे पहले तो सबसे पारंपरिक तरीके का सवाल। अपने दो साल के कामकाज को आप कैसे देखते हैं और इस दौरान आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?
पिछली बीजेपी सरकार ने चुनावी साल में करोड़ों की मुफ्त की रेवडियां बांटी थीं जिस वजह से अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था। सुधारवादी निर्णयों और नीतिगत बदलावों के चलते प्रदेश की अर्थव्यवस्था अब पटरी पर लौट रही है। इसके साथ ही, हमने उस ओपीएस को लागू किया जिसे लाना नामुमकिन बताया जा रहा था। हमने गरीबों, किसानों, बागवानों, निराश्रित बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं के लिए भी फैसले लिए हैं और इनका लाभ जनता को हो रहा है। यह सब तब है जबकि कार्यकाल की शुरुआत में ही भारी प्राकृतिक आपदा के दौरान 12 हजार करोड़ से अधिक की संपति का नुकसान हुआ और केंद्र सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिली। वह भी नहीं जो हमारा अधिकार है। लेकिन हम लगातार मांग करते रहेंगे।
यह भी पारंपरिक सवाल ही। दो वर्ष के दौरान सबसे बड़ी चुनौतियां क्या रहीं?
हमें सबसे पहले आर्थिक, फिर प्राकृतिक और बाद में राजनीतिक संकट की चुनौती का सामना करना पड़ा। हमारी सरकार को अस्थिर करने का भी बीजेपी ने पूरा प्रयास किया, पर हम देवी-देवताओं और भगवान के आशीर्वाद से सरकार बचाने में सफल रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि अब किसी भी तरह का खतरा सरकार पर है। जो थोड़े-बहुत मतभेद थे, वे निपट गए हैं। जो हमें छोड़कर गए, वे पहले से ही बीजेपी की विचारधारा के थे और उसी में चले गए। सरकार और संगठन में सब सही है। मैं केवल सरकार पर फोकस कर रहा हूं और संगठन का काम कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षा अच्छे से संभाल रही हैं। मुझे मंत्रिमंडल के सदस्यों से अच्छा सहयोग मिल रहा है और सभी अपने-अपने क्षेत्र में अच्छे से काम कर रहे हैं।
लेकिन पिछले कुछ समय से हाईकोर्ट की ओर से सरकार के खिलाफ फैसले आ रहे हैं।
हाईकोर्ट ज्यादा ज्यूडिशियल एक्टिविज्म की ओर जा रहा। हाईकोर्ट को भी लॉ देखना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए। एक-दूसरे के दायरे में दखल अच्छा नहीं लगता।
आपके सत्ता में आते ही पहले सीमेंट की ढुलाई को लेकर और फिर सेब के दामों को लेकर अडानी की कंपनी के साथ हंगामा होता रहा है। उधर, राहुल गांधी भी अडानी के मामले में लगातार मुखर हैं।
आप ध्यान दें, तो पिछली बीजेपी सरकार के दौरान अडानी को ब्याज के साथ 280 करोड़ रुपये दे दिए गए थे। हाईकोर्ट ने भी इस पर फैसला दे दिया था। हमने इस मामले को हाईकोर्ट में दोबारा लड़ा और 280 करोड़ रुपये सरकार के खाते में गए। बात बहुत साफ है। हमारे यहां तो जो कानून के दायरे में रहकर काम कर रहा है, उसके साथ हम कानून के हिसाब से ही काम करेंगे। हम हिमाचल की संपदा को न ही तो लुटाने आए हैं और न ही लूटने आए हैं। हमारे ऊपर न तो अडानी और न ही किसी और का कोई दबाव है।
कुछ माह पहले हिमाचल में मस्जिदों के अवैध निर्माण को लेकर भारी धरना-प्रदर्शन हुए। अभी क्या हाल है?
चुनावों से पहले बीजेपी की ओर से ऐसे मामलों को उठाया जाता है। इस बार भी राजनीतिक लाभ उठाने के लिए इसे तूल दिया गया। इस मामले को सरकार ने बड़ी संवेदनशीलता के साथ हैंडल किया है। मस्जिदों की कमेटी और इमाम ने ही अपने स्तर पर फैसला ले लिया कि अवैध निर्माण है तो उसे हटाया जाएगा और उन्होंने ऐसा किया भी। अब इन मामलों में पूरी शांति है।
चुनावों के दौरान कांग्रेस ने 10 गारंटियां दी थीं। बीजेपी का आरोप है कि आप आधी-अधूरी गारंटियों का ढिंढोरा पीट रहे हैं।
बीजेपी मुद्दा विहीन है। हम चरणबद्ध तरीके से गारंटियों को पूरा कर रहे हैं और आने वाले वर्षों में सभी को पूरा करेंगे।
कई पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और विशेषज्ञ हिमाचल में विकास के मॉडल को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस दिशा में आप क्या कर रहे?
हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विकास की परियोजनाओं को तैयार कर रहे हैं। हम हाइड्रो पर्यटन, डेयरी सेक्टर पर ज्यादा इन्वेस्ट करना चाह रहे हैं। पानी हिमाचल की संपदा है। लेकिन उसके लिए सही नीति नहीं अपनाई गई। आप देखें, उसी पानी के प्रयोग से एसजेवीएनल (सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड कंपनी) 67 हजार करोड़ रुपये की कंपनी बन गई और 75 साल में हमारा बजट पहुंचा 58 हजार करोड़ का। ऐसे में साफ है कि कहीं-न-कहीं नीति में गलतियां रही हैं। अगर 12-18-30-40 के हिसाब से एसजेवीएनएल हमारे साथ बात करेगी तो हम उनके जो प्रोजेक्ट चले हैं, उसमें काम करने देंगे, वरना हम उनको टेकओवर कर लेंगे, यह हमने फैसला ले लिया है। (दरअसल, हिमाचल प्रदेश की नई बिजली नीति के अनुसार, विद्युत परियोजना वाली कंपनी को पहले 12 वर्षों में 12 प्रतिशत, इसके बाद 18 वर्षों तक 18 प्रतिशत तथा आगामी 10 वर्षों के लिए 30 प्रतिशत रॉयल्टी देने की अनिवार्यता की गई है। इसके बाद जब प्रोजेक्ट को 40 वर्ष पूरे हो जाएंगे तो पावर प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार को सौंपने की नीति तैयार की गई है।)
लेकिन पर्यटन को लेकर क्या?
यहां हर वर्ष करोड़ों पर्यटक आते हैं। हिमाचल में पर्यटन के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है। यहां एयपोर्ट की एक्सपैंशन करना पड़ेगा, हेलीपोर्ट बनाना पड़ेगा। इसके लिए हमारी सरकार प्रमुखता से काम कर रही है। अभी हाल ही में केन्द्र सरकार की ओर से पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए राज्यों को फंडिंग की गई लेकिन उसमें हिमाचल शामिल नहीं है। इस पर हम खेद ही जता सकते हैं। अब हम अपने लेवल पर पर्यटन विकास के लिए बजट का प्रावधान करेंगे। वैसे भी, हमें केन्द्र से सहयोग नहीं मिल पा रहा है। मंत्रियों ने जो योजनाएं भेजीं, उन्हें अप्रूव करवाने की हम लगातार कोशिश कर रहे हैं। जहां विपक्ष की सरकारें होती हैं, वहां उनको ज्यादा धन देना चाहिए। लेकिन कम-से-कम हमारे मामले में तो ऐसा नहीं हो रहा।
लेकिन हिमाचल में बन रही दवाइयों के सैंपल फेल होने की खबरें लगातार आती रहती हैं। खराब गुणवत्ता को लेकर हिमाचल में काम कर रही फार्मा कंपनियों पर उंगलियां उठी हैं।
फार्मा उद्योग में जो भी गलत काम कर रहा है, वह जेल की सलाखों के पीछे जाएगा। इस मामले में केंद्र सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
आप आत्मनिर्भर हिमाचल की बात करते हैं। पर इसका रोडमैप क्या है?
हम चरणबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं और वर्ष 2027 तक हिमाचल प्रदेश आत्मनिर्भर बने और 2032 तक हिमाचल प्रदेश देश का सबसे अमीर और समृद्धशाली राज्य बने इस दिशा में हम आगे बढ़े हैं। जैसे, यह देखें कि हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाह रहे हैं। हमने मनरेगा की दिहाड़ी में 60 रुपये की वृद्धि की। गाय, भैंस के दूध का समर्थन मूल्य देने वाला हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बना। प्राकृतिक खेती से उत्पादित मक्की और गेहूं को 40 और 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य देने वाला देश का पहला राज्य बना।
लेकिन प्रदेश में बेरोजगारी की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है....
हमने प्रदेश में 31 हजार से अधिक नौकरियां सरकारी क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में दी हैं जो बीजेपी सरकार 5 वर्षों में भी नहीं दे पाई थी। इसके अलावा आने वाले समय में हम विभिन्न विभागों में पदों को भरने की प्रक्रिया को पूरा करने में लगे हैं।
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