शख्सियत

जब नन्हे जाकिर हुसैन को पहली दुआ में तबले की ताल सुनने को मिली थी

तबले को घर-घर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने वाले जाकिर हुसैन ने बताया था कि उनके पिता ने उन्हें पहली बार अपनी गोद में लिया और कानों में तबले की ताल सुनाई थी।अल्ला रक्खा एक कुशल तबला वादक थे और प्रतिष्ठित सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ अक्सर संगत करते थे।

फोटो: PTI
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तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने आठ साल पहले बताया था कि कैसे उनके पिता अल्ला रक्खा ने दुआ पढ़ने के लिए कहे जाने पर उनके कानों में तबले की ताल सुनाकर उनका इस दुनिया में स्वागत किया था।

मुंबई में जन्मे जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में फेफड़ों की समस्या ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ की जटिलताओं के कारण निधन हो गया। उनके परिवार ने सोमवार को यह जानकारी दी।

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तबले को घर-घर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने वाले जाकिर हुसैन ने बताया था कि उनके पिता ने उन्हें पहली बार अपनी गोद में लिया और कानों में तबले की ताल सुनाई थी।अल्ला रक्खा एक कुशल तबला वादक थे और प्रतिष्ठित सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ अक्सर संगत करते थे।

हुसैन ने बताया, ‘‘मुझे घर लाया गया। मैं अपने पिता की गोद में था। परंपरा यह थी कि पिता बच्चे के कान में दुआ पढ़कर इस दुनिया में बच्चे का स्वागत करता और कुछ अच्छे शब्द कहता। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठाया, अपने होंठ मेरे कान के पास लाए और मेरे कानों में तबले की ताल सुनाई। मेरी मां गुस्से में थीं। उन्होंने कहा कि आप क्या कर रहे हैं? आपको दुआ पढ़नी चाहिए, ताल नहीं सुनानी चाहिए।’’

जाकिर हुसैन ने बताया, ‘‘इस पर मेरे पिता ने कहा, लेकिन ये मेरी दुआएं हैं। मैं इसी तरह दुआ करता हूं। उन्होंने कहा कि मैं देवी सरस्वती और भगवान गणेश का उपासक हूं। यह एक मुसलमान बोल रहा था। उन्होंने कहा कि यह ज्ञान उन्हें अपने शिक्षकों से मिला है और वे इसे अपने बेटे को देना चाहते हैं।’’

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नौ मार्च, 1951 को मुंबई में जन्मे उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में ‘पद्मश्री’, 2002 में ‘पद्म भूषण’ और 2023 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया।

जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा माहिम के सेंट माइकल स्कूल से हुई और उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दोनों ही संस्थान मुंबई में हैं।

अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने खासा संघर्ष किया। वह ट्रेन से यात्रा करते थे और अगर उन्हें सीट नहीं मिलती थी, तो वे फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। ऐसी यात्राओं के दौरान वे संगीत वाद्ययंत्रों को अपनी गोद में रखकर सोते थे ताकि किसी का पैर उनके तबले पर न पड़े।

एक अन्य साक्षात्कार में जाकिर हुसैन ने एक घटना को याद कर बताया कि कैसे जब वह 12 साल के थे तो अपने पिता के साथ एक संगीत समारोह में गए थे। उस संगीत समारोह में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे दिग्गज भी मौजूद थे।

जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ मंच पर गए और अपनी कला के प्रदर्शन के लिए उन्हें पांच रुपये मिले।

तबला वादक ने कहा था, ‘‘मैंने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया है, लेकिन वे पांच रुपये सर्वाधिक कीमती थे।’’

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