भागवत के बयान को लेकर विपक्ष ने तीखा हमला बोल दिया है। कांग्रेस ने इसे दलित-पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने का एजेंडा करार दिया है तो बीएसपी प्रमुख मायावती ने इसे अन्याय ठहराया है। मायावती ने तो यहां तक कहा कि आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित और अन्याय है और संघ को अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता त्याग देनी चाहिए।
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दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आरक्षण का पक्ष लेने वालों को उन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जो इसके खिलाफ हैं और इसी तरह से इसका विरोध करने वालों को इसका समर्थन करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए। भागवत ने कहा कि आरक्षण पर चर्चा हर बार तीखी हो जाती है, जबकि इस मामले में विभिन्न वर्गों के बीच तालमेल जरूरी है। भागवत ने यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्र्वविद्यालय (इग्नू) के ज्ञानोत्सव कार्यक्रम में कही।
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इस मुद्दे पर कांग्रेस ने संघ पर निशाना साधा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि गरीबों के अधिकारों पर हमला, संविधान सम्मत अधिकारों को कुचलना, दलितों-पिछड़ों के अधिकार को ले लेना, यही बीजेपी का एजेंडा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बयान से आरएसएस और बीजेपी का दलित-पिछड़ा विरोधी चेहरा उजागर हुआ है। सुरजेवाला ने कहा कि इससे गरीबों के आरक्षण को ख़त्म करने का षड्यंत्र और संविधान बदलने की उनकी अगली नीति बेनकाब हुई है।
वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी और उसके वैचारिक गुरु राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की एक आदत बन गई है कि जनता को, लोगों को विवादों में व्यस्त रखें। ऐसे-ऐसे विवादों में उनको व्यस्त कर दें कि वो कठिन प्रश्न पूछना बंद कर दें, उनका ध्यान, वोटर का ध्यान रोजमर्रा से जुड़ी हुई जिंदगी की समस्याओं से दूर हो जाए।
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भागवत के इस विचार पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि, “आरएसएस का एससी,एसटी, ओबीसी आरक्षण के सम्बंध में यह कहना कि इस पर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है, जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित व अन्याय है। संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है।“
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गौरतलब है कि 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी संघ प्रमुख ने आरक्षण नीति की समीक्षा करने की वकालत की थी, जिस पर कई दलों और जाति समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी। भागवत ने कहा था कि आरएसएस, बीजेपी और पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार तीन अलग-अलग इकाइयां हैं और किसी को दूसरे के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
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