राजनीति

नवीन पटनायक पर चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने का आरोप, क्या रद्द हो सकती है विधानसभा की उनकी सदस्यता?

नवीन पटनायक को शायद पहली बार एक बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन पर यह आरोप है कि उन्होंने चुनाव आयोग में चुनावी खर्च को लेकर फर्जी हलफनामा दायर किया है। इस मामले में अभी फैसला आना बाकी है।

फाइल फोटो: IANS
फाइल फोटो: IANS ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक यह आरोप है कि उन्होंने चुनाव आयोग में चुनावी खर्च को लेकर फर्जी हलफनामा दायर किया है। इसे लेकर उनके खिलाफ जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत की गई शिकायत पर अभी फैसला आना बाकी है। अगर फैसला उनके खिलाफ आता है तो उनकी विधानसभा सदस्यता खारिज हो सकती है और उन्हें मुख्यमंत्री का पद भी गंवाना पड़ सकता है।

1997 में नवीन पटनायक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। उनके पिता और उड़ीसा के कद्दावर नेता बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद खाली हुई अस्का लोकसभा सीट से उन्होंने जनता दल के टिकट पर उपचुनाव जीता और उसके बाद राजनीति में लगातार उनका कद बढ़ता रहा है। एक साल बाद पटनायक ने अपने पिता के नाम पर 'बीजू जनता दल' की स्‍थापना की और धीरे-धीरे उन्होंने खुद को देश के लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया। वे केन्द्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे और उसके बाद लगातार चार बार ओडिशा के मुख्यमंत्री चुने गए। लेकिन अपने चौथे कार्यकाल में शायद पहली बार उन्हें एक बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है।

नवीन पटनायक के राजनीतिक जीवन की यह बड़ी मुश्किल 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में हुए चुनावी खर्च को लेकर उनकी पार्टी और उनके द्वारा चुनाव आयोग में दायर 2 हलफनामों से पैदा हुई। पार्टी ने जो हलफनामा दायर किया, उसमें यह बताया गया कि चुनाव में खर्च करने के लिए पार्टी ने उन्हें 10 लाख रूपए दिए थे, जिसमें से करीब 6 लाख 50 हजार रुपए उन्होंने पार्टी को वापस लौटा दिए। जबकि नवीन पटनायक ने जो हलफनामा दायर किया है उसमें उन्होंने पार्टी से तकरीबन 13 लाख 50 हजार रुपए लेने का दावा किया है और यह पैसे आरटीजीएस द्वारा लिए गए। जबकि पार्टी ने जो पैसे दिए थे वह चेक से दिए गए थे।

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

हालांकि, बीजेडी के उपाध्यक्ष समीर मोहंती ने अंग्रेजी अखबार ‘द टेलीग्राफ’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि दोनों हलफनामों के बेमेल होने का दावा गलत है। उनका कहना था कि नवीन पटनायक ने पार्टी से लिए गए पैसे की जो जानकारी दी है, उसमें पार्टी द्वारा नवीन पटनायक के चुनाव प्रचार और चुनाव सामग्री में खर्च किए गए नकद पैसे भी शामिल हैं। उन्होंने चुनाव खर्च से संबंधित अन्य आंकड़े भी दिए। बीजेडी के राज्यसभा सांसद प्रताप देब ने भी सारे आरोपों को खारिज कर दिया और हलफनामों में दिख रही गड़बड़ी को बैंकिंग प्रणाली की व्यवहारिक समस्या बताया।

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

यह पूरा मामला तब सामने आया जब ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष महापात्रा ने मई 2015 में चुनाव आयोग में एक अर्जी दी। महापात्रा के अनुसार, बार-बार चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाने के बाद भी आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद जून 2016 में इस मामले को लेकर वे ओडिशा हाई कोर्ट गए। जुलाई 2017 में हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को एक नोटिस जारी किया। इसके तुरंत बाद नवीन पटनायक के विधानसभा क्षेत्र हिंजली से हारने वाले बीजेपी के उम्मीदवार देवानंदा महापात्रा ने भी हाई कोर्ट में एक अर्जी दायर कर दी। सुभाष महापात्रा का कहना है कि हाई कोर्ट के जज एस के मिश्रा ने बाद में चुनाव आयोग को लिखा कि उनकी नोटिस पर कोई कार्रवाई न की जाए।

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

ओडिशा हाई कोर्ट द्वारा मामले को टालने का संदेह जताते हुए सुभाष महापात्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दे दी। इसे देखते हुए ओडिशा हाई कोर्ट के जज जस्टिस एस के मिश्रा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया। 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के जजों जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एल नागेश्वर राव ने इस मामले की सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग महापात्रा की अर्जी पर जल्द से जल्द कार्रवाई करे। चुनाव आयोग ने कोर्ट के सामने अपनी यह मंशा व्यक्त की थी।

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

इस बात को महीने से ज्यादा बीत चुके हैं और चुनाव आयोग की तरफ से सुभाष महापात्रा की अर्जी पर कोई फैसला नहीं आया है। सुभाष महापात्रा का सवाल है कि आखिर जल्द से जल्द फैसला देने का क्या मतलब होता है? क्या उसकी कोई समयसीमा नहीं होती?

अब फैसला जब भी आए, यह देखना दिलचस्प होगा कि वह किसके पक्ष में जाता है। बीजेडी के सांसद कलिकेश नारायण सिंह देव को पूरा विश्वास है कि इस मामले में नवीन पटनायक या बीजेडी को कोई समस्या नहीं होगी। उन्होंने नवजीवन को बताया, “जब चुनाव आयोग में यह शिकायत दर्ज की गई थी तो केन्द्रीय चुनाव आयोग से एक पर्यवेक्षक आए थे और उन्होंने भी कहा था कि शिकायत में कोई दम नहीं है।”

उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि इस मामले में नया क्या हुआ है, लेकिन साथ-साथ यह भी कहा कि पूरा मामला राजनीति से प्रेरित और सतही है।

उनका कहना है कि चुनाव आयोग कोई भी निर्णय तथ्यों के आधार पर करेगा और सारे तथ्य हमारे पक्ष में हैं।

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

फाइल फोटो: IANS

हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि हालिया दिनों में चुनाव आयोग पर केन्द्र सरकार के दबाव में काम करने के आरोप लग रहे हैं और अगर उन पर विश्वास किया जाए तो यह संभव है कि केन्द्र की मोदी सरकार नवीन पटनायक के साथ किसी ‘समझौते’ में जा सकती है। यह जगजाहिर है कि लंबे समय से बीजेपी ओडिशा की सत्ता में आने की कोशिश कर रही है और सूत्रों का कहना है कि केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को ओडिशा में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री के संभावित उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है।

चुनाव आयोग से जुड़े इस सवाल के जवाब में बीजेडी सांसद ने नवजीवन से कहा, “यह एक सरोकार का विषय है कि चुनाव आयोग केन्द्र सरकार से प्रभावित होकर काम कर रहा है। गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा के मामले में यह हमने देखा है।”

यह पूछे जाने पर कि अगर चुनाव आयोग का फैसला नवीन पटनायक के खिलाफ आता है तो बीजेडी क्या करेगी, उन्होंने कहा, “अगर चुनाव आयोग नवीन पटनायक के खिलाफ कोई फैसला करती है तो जरूर ही उसके समाधान का कोई अन्य कानूनी तरीका होगा।”

वरिष्ठ पत्रकार और फिलहाल राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अशोक मलिक ने नवीन पटनायक की राजनीतिक उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए 2012 में ‘तहलका’ पत्रिका में एक लेख लिखा था। लेख के आखिर में उनका कहना था कि नवीन पटनायक को डनहिल्स सिगरेट के एक डब्बे और फेमस ग्राउस व्हीस्की के दो प्यालों से ज्यादा किसी और चीज की जरूरत नहीं होती।

2017 में जब चुनावी खर्च में गड़बड़ी से जुड़े हलफनामों का यह मामला चल रहा है, तो यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या अब भी उनकी जरूरतें उतनी ही हैं?

Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST

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Published: 01 Dec 2017, 5:59 PM IST