महात्मा गांधी का राम राज्य बनाम आरएसएस का राम राज्य

आज गांधी जयंती है। इस मौके पर हम राजनीतिक विश्लेषक और लेखक साध्वी खोसला का वह लेख फिर से पेश कर रहे हैं जो उन्होंने कुछ दिन पहले गांधी के रामराज्य और संघ के रामराज्य के बुनियादी अंतर पर लिखा था

फोटो : सोशल मीडिया
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साध्वी खोसला

आजादी के बाद पहली बार गांधी ने एक आदर्श राष्ट्र के तौर पर राम राज्य की बात की। राम राज्य से उनका आशय एक ऐसे दैवीय राज की स्थापना करना था जो न्याय और समानता के मूल्यों पर आधारित होगा, जहां हर नागरिक के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाएगा, चाहे उसकी जाति, रंग और पंथ कुछ भी हो, और देश के सबसे कमजोर नागरिकों को भी न्याय मिलेगा, क्योंकि भगवान राम का राज्य ऐसा ही था.

भगवान राम का राज्य एक आदर्श था। धर्म और पुण्य के कार्य में समर्पित लोगों से भरा हुआ और गलत काम करने वालों से मुक्त। महात्मा गांधी ने एक ऐसे राज्य का स्वप्न देखा जो भगवान राम के बनाए राज्य से मिलता-जुलता हो और जो पवित्रता और सत्यनिष्ठा पर आधारित हो। दरअसल, महात्मा गांधी एक समर्पित हिंदू थे और भगवान राम की कई शिक्षाओं को अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाते थे।

चाहे असहयोग आंदोलन हो, भारत छोड़ो आंदोलन हो या दांडी मार्च- गांधीजी के नेतृत्व में चले इन सभी आंदोलनों में एक बात समान थी, और वह थी पदयात्रा। उनका मन भगवान राम के जीवन से इतना ज्यादा प्रभावित था कि वे भगवान राम की शिक्षाओं पर तब भी चले जब देश ऐसा करने में असफल रह गया।

जब भगवान राम और लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान विश्वामित्र के साथ जंगल गए, तो उन्होंने रथों को पीछ छोड़ दिया और पूरी यात्रा पैदल की। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम मामूली लोगों का दर्द समझना और उनसे इस तरह से जुड़ना चाहते थे कि राजा और प्रजा का फर्क ही खत्म हो जाए। गांधीजी ने भी अपने जीवन में इसी समझ को अपनाया।. गांधीजी ने जो पदयात्राएं कीं और आम लोगों से जुड़ने, उनका दर्द जानने और उनके कष्ट को खत्म करने में मदद करने की जो इच्छा शक्ति दिखाई, वह भगवान राम की शिक्षा में उनकी आस्था को स्पष्ट करती है।

पोरबंदर की यात्रा

गांधीजी के जन्म स्थान पोरबंदर की मेरी हालिया यात्रा ने मुझे राम धुन को लेकर एक दिव्य एहसास कराया जो हर वक्त वहां बजता रहता था। रामधुन यानी लोकप्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम, जो हमारे राष्ट्रपिता का पसंदीदा भजन था। भगवान राम के लिए उनके मन में ऐसा प्रेम था कि जब उन्होंने आखिरी सांस ली तो उनके मुंह से जो दो शब्द निकले, वे थे ‘हे राम’, यह सीधा उनके मन से आया था और इसने उनकी आत्मा को गहरी सांत्वना दी होगी।

यह शर्म की बात है कि एक ऐसा मनुष्य जिसने भगवान राम और उनके सिद्धांतों में हमेशा यकीन किया, उसी को कट्टरपंथी ‘हिंदू-विरोधी’ करार दे रहे हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी भगवान राम के नाम पर राजनीति करती है और उनकी विरासत पर अपना दावा पेश करती है, जबकि भगवान राम सिर्फ दक्षिणपंथी उग्रवादियों के नहीं, बल्कि हर भारतीय के ईश्वर हैं.

बीजेपी क्या चाहती है - राम राज्य की शांति या कट्टर हिंदू राज्य

1989 में जब स्वर्गीय राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया था, तब उन्होंने वादा किया था कि वे राम राज्य लाएंगे, यह एक ऐसा वादा है जिसे कांग्रेस बहुत पहले भूल चुकी है। किसी न किसी वजह से कांग्रेस पार्टी ने भगवान राम और राम राज्य के बारे में बात करने में हिचकिचाहट दिखाई है और इसने बीजेपी को इस मुद्दे को हड़पने का मौका दिया है।

और, बीजेपी ने असल में इस मौके का इस्तेमाल किया और बिना किसी ईमानदारी के इससे अपनी राजनीति चमकाई, यहां तक कि महात्मा गांधी के राम राज्य के विचार को उसने पूरी तरह से नकार दिया।

महात्मा गांधी देश को एक ऐसी जगह के रूप में देखना चाहते थे जो दुर्भावना से पूरी तरह मुक्त हो और जहां शांति, सौहार्द और सच्चाई हो। लेकिन, बीजेपी ने उनके विचार की मूल भावना को भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज, वह महात्मा गांधी के राम राज्य की कल्पना को हिंदुत्व के राज की तरह पेश कर रही है।

आखिर कौन है इसके लिए दोषी?

क्या कांग्रेस पार्टी इसके लिए दोषी है कि उसने अपने महान नेता के विचार का महत्व नहीं समझा और उसके प्रति न्याय नहीं किया? या बीजेपी, जिसने चुनावी सफलता के लिए इस विचार को बदनाम किया? या हम खुद, जिसने राम राज्य के इस संघर्ष को छोड़ दिया, नतीजतन देश उन बुनियादी मूल्यों से भटक गया जिस पर यह आधारित था।

एक राष्ट्र के तौर पर हम इस सच्चाई को स्वीकार करने में नाकाम रहे कि राम राज्य यानी हिंदू राज्य का निर्माण करने की बीजेपी की जिद हमारे लिए कोई गर्व की बात नहीं है। हिंदुत्व की लड़ाई या वोट बैंक के लिए हिंदुओं की गोलबंदी से भगवान राम के आदर्श राज्य का कोई लेना-देना नहीं है।

लोगों के दिमाग पर कब्जा जमाए अहंकार के जरिये भगवान राम के विश्वासों का अपमान हो रहा है, आज हमारा देश इस अहंकार को खुले तौर पर बढ़ावा दे रहा है। बीजेपी जैसी पार्टियां अपने फायदे के लिए ऐसा कर रही हैं, वे उन मूल्यों को भूल चुकी हैं जो भगवान राम ने दुनिया को दिए थे।

उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाने और उनके दिखाए रास्तों पर चलने के बजाय राजनीतिक आकांक्षाओं ने उनकी जगह ले ली है और वे इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि भगवान राम के नाम का इस्तेमाल करने में भी उन्हें शर्म नहीं आती।

आज, जब राष्ट्र बहुत गहरी असमानता से जूझ रहा है, हिंदू राज्य का निर्माण कर उसे राम राज्य का नाम देने से वह राम राज्य नहीं बन जाएगा। लेकिन, भगवान राम के सिद्धांतों और निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन के उनके तरीकों को मानने से जरूर पूरा देश राम राज्य बन सकता है.

उनके लिए जो राम राज्य के बारे में नहीं जानते

वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के अभिषेक के बाद युद्ध कांड में राम राज्य का वर्णन है:

न पर्यदेवन्विधवा न च व्यालकृतं भयम् |
न व्याधिजं भयन् वापि रामे राज्यं प्रशासति ||

निर्दस्युरभवल्लोको नानर्थः कन् चिदस्पृशत् |
न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते ||

सर्वं मुदितमेवासीत्सर्वो धर्मपरोअभवत् |
राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिन्सन्परस्परम् ||

आसन्वर्षसहस्राणि तथा पुत्रसहस्रिणः |
निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति ||

रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथाः |
रामभूतं जगाभूद्रामे राज्यं प्रशासति ||

नित्यपुष्पा नित्यफलास्तरवः स्कन्धविस्तृताः |
कालवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः ||

ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः |
स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्ठाः स्वैरेव कर्मभिः ||
आसन् प्रजा धर्मपरा रामे शासति नानृताः |

सर्वे लक्षणसम्पन्नाः सर्वे धर्मपरायणाः ||
दशवर्षसहस्राणि रामो राज्यमकारयत् |
अनुवाद

जब राम शासन कर रहे थे, तो दुख में डूबी कोई विधवा नहीं थी, न ही जंगली जानवरों से कोई खतरा था, न किसी का बीमारी का डर। संसार चोरी और लूट से बचा हुआ था। किसी को निरर्थकता का एहसास नहीं था और वृद्ध लोगों को युवाओं का अंतिम संस्कार नहीं करना पड़ा। हर प्राणी सुखी था। सभी सदाचार में विश्वास करते थे। सिर्फ राम को देखकर ही प्राणी हिंसक प्रवृतियां छोड़ देते थे। जब राम शासन कर रहे थे, लोग अपने हजारों वंशजों के साथ हजार सालों तक जीवित रहे, किसी को कोई बीमारी और दुख नहीं था। जब राम ने शासन किया, तो लोगों की बातचीत राम पर ही केन्द्रित थी, राम और सिर्फ राम। संसार राम का संसार हो गया था। बिना कीड़े-मकौड़ों के पेड़ों पर फूल और फल लगातार लगे रहते थे। समय पर बरसात होती थी और हवाएं मन को प्रसन्न कर देती थी। ब्राह्म्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे थे। वे अपने काम से खुश थे और उनके मन में कोई लालच नहीं था। जब राम शासन कर रहे थे, लोग सदाचार में विश्वास करते थे और बिना झूठ बोले जी रहे थे। सारे लोगों का चरित्र बहुत अच्छा था। सभी लोग परोपकार के काम में लगे हुए थे। राम दस हजारों सालों तक राज-काज के काम में लगे रहे।

(साध्वी खोसला एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हैं। लेख में दिए गए विचार लेखिका के हैं और नवजीवन का इन विचारों से कोई संबंध नहीं है)

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Published: 08 Aug 2017, 8:40 PM
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