आलम शाह खान ने ‘मीरांः लोकतात्त्विक अध्ययन’ से मीरां को समझने की एक नई दिशा दी

राजस्थान के उदयपुर में प्रो. आलम शाह खान की चर्चित पुस्तक ‘मीरांः लोकतात्त्विक अध्ययन’ का लोकार्पण करते हुए आलोचक प्रो. नवल किशोर ने कहा कि प्रो. आलम शाह ने डूबकर मीरां को समझा और मीरां को देखने समझने की नई दिशा दी।

फोटोः डी एस पालीवाल
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नवजीवन डेस्क

‘मिथकों के पीछे संस्कृति का संजाल होता है। परिवेश में प्रवेश किए बिना साहित्य को नहीं समझा जा सकता।’ ये विचार विख्यात आलोचक प्रो. नवलकिशोर ने उदयपुर में आलमशाह यादगार समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में प्रो. आलम शाह खान द्वारा लिखित पुस्तक मीरांः लोकतात्त्विक अध्ययन का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि प्रो. आलम शाहने डूबकर मीरां को समझा और मीरां को देखने समझने की नई दिशा दी। प्रो नवलकिशोर ने खान साहब के साथ व्यतीत समय को याद किया और कहा कि 1989 में जब यह किताब आई थी तब अचर्चित रह गई थी, अब इसका पुनर्नवा संस्करण भूल-सुधार का अवसर देने वाला है।

आलम शाह खान ने ‘मीरांः लोकतात्त्विक अध्ययन’ से मीरां को समझने की एक नई दिशा दी

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि प्रो. आलम शाह खान द्वारा पहली बार मीरां के व्यक्तित्व को स्थानिक रूप से समझते हुए मीरां के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं एतिहासिक दृष्टिकोण को समाज के समक्ष रखने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि मीरां पर किया गया प्रो आलम शाह का अध्ययन आगे बड़े अध्ययनों में सहयोगी और पथ प्रदर्शक सिद्ध होगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय से आए  युवा आलोचक और इस पुस्तक के पुनर्नवा संस्करण के संपादक डॉ. पल्लव ने 'मीरांः एक लोकतात्त्विक अध्ययन' पर संपादकीय टिप्पणी प्रस्तुत की। उन्होंने पुस्तक के पुनः प्रकाशन की आवश्यकता का जिक्र करते हुए बताया कि इस पुस्तक में मीरां को पहली बार लोक के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया गया है। उन्होंने कहा कि अपने पुरखों का स्मरण और उनके महत्त्वपूर्ण प्रदेय का उल्लेख इस आत्मकेंद्रित समय में अधिक आवश्यक है ताकि हम अपनी परंपरा को सही तरीके से समझ सकें।

कवयित्री रजनी कुलश्रेष्ठ ने बताया कि मीरां के पदों में कृष्ण भक्ति के साथ सामाजिक सरोकारों से संबंधित समस्त प्रकार के मानवीय रिश्तों का बखूबी वर्णन उपलब्ध है। उन्होंने प्रो. आलम शाह के व्यक्तित्व से जुड़े कुछ प्रसंग भी सुनाए। मीरा कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य मंजू चतुर्वेदी ने बताया कि मीरां की भक्ति एवं कविता में इतनी शक्ति है कि 500 वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो जाने के पश्चात भी वह प्रासंगिक है और इसी तरह खान साहब की पुस्तक भी 30 साल बाद भी प्रासंगिक है।

कार्यक्रम की शुरूआत में  युवा कथाकार और प्रो. आलम शाह खान की पुत्री डा. तराना परवीन ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और प्रो. खान की बड़ी पुत्री डाॅ. तब्बस्सुम ने मुख्य अतिथियों का फूलों से अभिनंदन किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोधार्थी नेहा द्वारा कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रो. आलम शाह खान के जीवन और उनके द्वारा किये गये लेखन का परिचय प्रस्तुत किया गया।

प्रो. आलम शाह खान यादगार समिति के वरिष्ठ सदस्य आबिद अदीब ने उदयपुर के जनतांत्रिक आंदोलनों में धर्मिक सहिष्णुता बनाए रखने में प्रो खान के योगदान के संस्मरण सुनाते हुए उनके लेखन को याद किया। अंत में गीतकार किशन दाधीच ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव ने किया। कार्यक्रम में  प्रो अरुण चतुर्वेदी, शंकरलाल चौधरी, ज्योतिपुंज पंड्या, डॉ बी आर बारूपाल, संजय व्यास, लक्ष्मण व्यास सहित नगर के अनेक साहित्यकार और प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित थे।

(उदयपुर से डी एस पालीवाल के इनपुट के साथ)

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