‘गंभीर विषय पर आसान भाषा और सहज शैली में लिखा साहित्य ही लोकप्रिय साहित्य है’

चर्चित युवा उपन्यासकार भगवंत अनमोल का कहना है कि गंभीर विषय पर आसान भाषा और सहज शैली में लिखा गया साहित्य ही मेरे लिए लोकप्रिय साहित्य है। सबसे जरूरी बात ये है कि इससे पाठकों को कोई संदेश भी दिया जा सके और उन्हें मेरी बात समझने में कोई असुविधा भी न हो।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

पिछले कुछ सालों के दौरान किताबों की दुकानों पर नई किताबों और उनके लेखकों के सा आयोजित परिचर्चाओं ने हिंदी साहित्य और आम लोगों के बीच की दूरी को पाटने का महत्वपूर्ण काम किया है। इसी तरह की एक परिचर्चा का आयोजन बीते 13 नवंबर को राजधानी दिल्ली में ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर में आयोजित किया गया। राजपाल एंड संज़ द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'जिंदगी 50-50' पर केंद्रित इस परिचर्चा में इसके लेखक और चर्चित युवा उपन्यासकार भगवंत अनमोल से कथाकार और जानकीपुल के संपादक प्रभात रंजन ने बातचीत की।

उपन्यास 'जिंदगी 50-50' की खासियत ये है कि यह एक किन्नर की कहानी कहता है। हिंदी में ऐसी रचनाएं बिल्कुल ही ना के बराबर हैं, जो इतनी सरलता से एक ऐसे विषय पर बात करें जिनसे समाज आंखें चुराता आया है। उपन्यास पर चर्चा में अनमोल ने कहा, “इस उपन्यास पर पाठकों की लगातार प्रतिक्रियाओं से मेरा उत्साह बढ़ा है। अब लगता है कि लेखन के प्रति मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है।” उपन्यास की रचना प्रक्रिया का जिक्र करते हुए उन्होंने मुंबई के मलाड़ और कांचीगुड़ा में किन्नरों से हुई मुलाकातों के प्रसंग भी सुनाए। उन्होंने बताया कि बच्चों पर अपनी आने वाली किताब पर भी वह काफी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है और मैं लिखने का पूरा आनंद लेना चाहता हूं, ताकि मेरे पाठकों को भी यह आनंद मिल सके।

परिचर्चा के संचालक प्रभात रंजन ने कहा कि जीवन के प्रति सकारात्मकता अनमोल के उपन्यास का न सिर्फ अभिन्न अंग है बल्कि बहुत अहम भी है। इसे उन्होंने कथा में अच्छी तरह विन्यस्त किया है। इससे किन्नरों के जीवन से जुड़ा इस उपन्यास का संदेश अधिक प्रभावशाली होकर निकलता है। चर्चा में भाग ले रहे कवि और संपादक पीयूष दईया ने कहा कि भगवंत ने ना सिर्फ विषय वस्तु बल्कि प्रस्तुतीकरण के लिहाज से भी अपनी हर किताब में नयी जमीन तोड़ी है, जो किसी भी लेखक के लिए बड़ी बात है।

परिचर्चा की शुरुआत में कवि स्मिता सिन्हा ने उपन्यास के एक रोचक अंश का पाठ किया और अंत में खुद लेखक अनमोल ने भी एक अंश प्रस्तुत किया। पिछले कुछ सालों से किताबों की दुकानों में किताबों पर इस तरह की सार्थक परिचर्चाओं के शुरू हुए दौर ने हिंदी जगत में किताबों और आम जन के बीच की दूरी को पाटने का महत्वपूर्ण काम किया है।

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