अभिनेत्री-निर्देशक नंदिता दास ने कहा, भारत में लोकतंत्र खतरे में, कलाकारों को बनाया जा रहा है निशाना 

अभिनेत्री और फिल्मकार नंदिता दास ने कहा कि एक समाज तभी आगे बढ़ सकता है और विकास कर सकता है, जब इसे वैचारिक विभिन्नता और स्वतंत्र होकर सोचने का मौका दिया जाता है। संकुचित होती सोच लोकतंत्र और मानवीय प्रगति के लिए खतरा बनती जा रही है।

फोटो: आईएनएस
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अभिनेत्री और फिल्मकार नंदिता दास का कहना है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है, कलाकारों, लेखकों और तर्कवादियों को किसी न किसी रूप में निशाना बनाया जा रहा है। उनका मानना है कि रूढ़िवादी और दक्षिणपंथी समूह तेजी से देश की नैतिक पुलिस बनते जा रहे हैं।

चाहे संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ को लेकर मचा हंगामा हो या फिर फिल्म ‘एस दुर्गा’ की स्क्रीनिंग को लेकर बवाल मचना हो या फिर हिंदी फिल्म उद्योग में पकिस्तानी कलाकारों के काम करने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने की बात हो, भारत में रचनात्मक आजादी की सीमा पर बहस आए दिन छिड़ती रहती है। नंदिता दास को लगता है कि रचनात्मक आवाजों को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

नंदिता दास का कहना है, “मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, हमारी जिंदगी खत्म होने की शुरुआत उस दिन हो जाएगी, जिस दिन हम मायने रखने वाली चीजों के बारे में चुप्पी साध लेंगे। इन दिनों चाहे मीडिया हो या कोई व्यक्ति हो, लोगों को स्वयं घोषित निगरानी समूहों द्वारा सेंसर किया जा रहा है या फिर लोग डर के कारण खुद ही अपने आपको सेंसर कर रहे हैं।”

फिल्म ‘फायर’ की अभिनेत्री ने कहा, “रूढ़िवादी और दक्षिणपंथी समूह तेजी से देश की नैतिक पुलिस बन रहे हैं। इसी के साथ, आधिकारिक सेंसर निकाय ज्यादा कट्टर रुख अपना रहे हैं और उनके नियम ज्यादा से ज्यादा मनमाने होते जा रहे हैं।”

अभिनेत्री ने इस बात का उल्लेख किया कि कलाकार, लेखक, तर्कवादी किसी न किसी रूप में निशाना बनाए जा रहे हैं और उन्हें चुप कराया जा रहा है।

उन्होंने कहा, “एक समाज तभी आगे बढ़ सकता है और विकास कर सकता है, जब इसे वैचारिक विभिन्नता और स्वतंत्र होकर सोचने का मौका दिया जाता है। यह संकुचित होती सोच लोकतंत्र और मानवीय प्रगति के लिए खतरा बनती जा रही है।”

नंदिता के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मंटो’ भारत में सितंबर में रिलीज होने की उम्मीद है। फिल्म में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो की भूमिका में नजर आएंगे।

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