नीतीश के राज में ऐसी है क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति, कोरोना से ज्यादा ‘व्यवस्था’ से मरने का डर!

बिहार के कई जगहों पर क्वारंटाइन केंद्रों के नाम पे स्कूल के कमरे में दर्जनभर लोगों को सुलाया जा रहा है। जहां खाने, पानी यहां तक की सोने की भी व्यवस्था ठीक से नहीं है।

फोटो: सोशल मीडिया
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शिशिर

खाना भगवान भरोसे... पानी अपने भरोसे। कहने को क्वारंटाइन सेंटर है, लेकिन यहां अपने आप ही हर चीज का बंदोबस्त करके रहना पड़ता है। दरअसल, ये क्वारंटाइन सिर्फ नाम का है बस यूं समझ लीजिए की एक स्कूल के कमरे में दर्जनभर लोगों को सुलाया जा रहा है। खुदा ना खास किसी को कुछ हो भी जाए तो बचना 99 प्रतिशत मुश्किल सा लगता है।

दरअसल ये स्थितf कहीं और की नहीं बल्कि 'सुशान बाबू' यानी नीतीश कुमार के राज्य की राजधानी पटना के क्वारंटाइन सेंटरों की है। सीवान जिले के रघुनाथपुर थाना क्षेत्र के राजपुर मध्य विद्यालय में क्वारंटाइन लोगों ने सड़क पर आकर बवाल काटा। पुलिस की ओर से कहा गया कि वे लोग बाजार जाना चाहते थे जबकि हकीकत यह है कि बाजार खुले ही नहीं हैं। सब्जी और दवा की दुकानें ही खुली हैं। सब्जी इन्हें लेनी नहीं है, दवा की इनको फिलहाल जरूरत भी नहीं है। अब पुलिस कैसे भी करके गेंद इनके पाले में डालने की कोशिश में लगी रहती है। वैसे परेशानी क्या है कोई खुलकर बताने को तैयार नहीं है क्योंकि पुलिस का डर भी इन्हें सता रहा है। लेकिन 27 साल के एक युवक ने हिम्मत करते हुए सच बता दिया कि क्वारंटाइन में खाने तक की व्यवस्था नहीं है। युवक ने बताया कि एक तो लंबे इंतजार पर खाना मिलता भी है तो वो भी थोड़ा सा।

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यही हालात राज्य के सभी क्वारंटाइन सेंटरों में हैं। गांवों की हालत ज्यादा खराब है। जिन स्कूलों में लोगों को ठहराया गया है, उनमें कई जगह खिड़कियां तक नहीं हैं। पंखे के बगैर जब शिक्षक और बच्चे रहा करते हैं तो इनके लिए पंखा लगाने की बात ही बेकार है, जबकि भूख के बाद गरमी और मच्छर के कारण ही सबसे ज्यादा लोग गुस्से में हैं। शौचालयों का तो कहना ही क्या! बिहार सरकार ने पंचायत स्तर तक स्कूलों में क्वारंटाइन की व्यवस्था की है और जिलाधिकारियों को उनके जिले की जिम्मेदारी दी गई है। आपदा प्रबंधन की ओर से फंड की स्वीकृति के बावजूद असल संकट इस बात से है कि कोरोना से बचाव का किट नहीं रहने के कारण सरकारी स्वास्थ्यकर्मी संदिग्ध लोगों के साथ ही क्वारंटाइन रखे गए लोगों से भी यथासंभव दूरी बनाकर रह रहे हैं। जिन्हें इनकी देखभाल में लगाया गया है, वह भी देखने-झांकने नहीं जा रहे हैं।

लोग कई बार इसकी शिकायत भी कर चुके हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है, बल्कि शिकायत करने पर कई बार तो लेने के देने पड़ जाते हैं। लोग शिकायत या गुहार की जगह बस दिन कट जाए इसी भरोसे बैठ गए हैं। हैरानी की बात तो ये है कि इस स्थिति के बारे में 'ऊपर' तक सब जानते , लेकिन मदद करने की बजय इन शिकायतकर्ताओं पर ही मुकदमा करने के आदेश दे दिए गए हैं। राज्य के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने सभी थानाध्यक्षों को स्पष्ट निर्देश दे दिया है कि जहां भी कोई हंगामा करे उसपर राष्ट्रीय आपदा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करें। यानी, दो साल की जेल और जुर्माना भी। मुकदमा का अधिकार पुलिस को देते समय डीजीपी ने अपने स्तर से इस बात की समीक्षा तक नहीं की कि आखिर जो लोग क्वारंटाइन किए गए हैं, उनकी दैनिक और मजबूरी की जरूरतें क्या हैं और वो कैसे पूरी होगी।

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