अयोध्या विवाद: पीठ ने पूछा- क्या जन्मस्थान को कानूनी व्यक्ति मान सकते हैं, जानें ‘रामलला’ के वकील ने क्या दी दलील

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रामलला की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील के परासरण ने सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलीलें पेश की। उन्होंने कहा कि पूरा क्षेत्र ही जन्मस्थान है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में गुरूवार को एक बार फिर सुनवाई की। सुनवाई के तीसरे दिन ‘राम लला’ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील के परासरण ने सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलीलें पेश की। पीठ ने जानना चाहा कि क्या जन्मस्थान को कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है। जहां तक देवाताओं का संबंध है तो उन्हें कानूनी व्यक्ति माना गया था। पीठ के इस सवाल पर परासरण ने कहा कि हिंदू धर्म में किसी स्थान को उपासना करने के लिए वहां मूर्ती का होना जरूरी नहीं है। हिंदू में जल और सूर्य की भी पूजा होती है, जन्मस्थान को भी कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है।

उन्होंने कहा कि जन्मस्थान की सटीक जगह नहीं है, लेकिन इसका मतलब आसपास के इलाकों से भी हो सकता है। पूरा क्षेत्र ही जन्मस्थान है। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्ष विवादित क्षेत्र को जन्मस्थान कहते हैं। बता दें कि मध्यस्थता के जरिए मैत्रीपूर्ण तरीके से किसी समाधान पर पहुंचने की कोशिशें विफल होने के बाद सुनवाई की जा रही है।

सुनवाई के दौरान उन्होंने आगे कहा कि राम का जन्मस्थान का मतलब है कि एक ऐसा स्थान जहां सभी की आस्था और विश्वास है। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने वकील परासरण से पूछा कि क्या एक जन्मस्थान एक न्यायिक व्यक्ति हो सकता है? हम एक मूर्ति एक न्यायिक व्यक्ति होने के बारे में समझते हैं, लेकिन एक जन्मस्थान पर कानून क्या है?

इससे पहले वकील परासरण ने बुधवार को कोर्ट में बताया था कि लाखों भक्तों की अटूट आस्था यह साबित करने के लिए काफी है कि अयोध्या में पूरा विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है। लोग रामजन्मभूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। पुराण और ऐतिहासिक दस्तावेज में इस बात के सबूत भी हैं। परासरण ने कोर्ट में कहा था कि ब्रिटिश राज में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह का बंटवारा किया था, तो मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना था। उन्होंने इस दौरान वाल्मिकी की रामायण का उदाहरण भी पेश किया था।

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इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्मोही आखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने कहा था कि मुकदमा मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन अधिकारों को लेकर है। उनका 100 सालों से विवादित जमीन पर कब्जा रहा है।

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बता दें कि मध्यस्थता पैनल द्वारा मामले का समाधान नहीं निकलने के बाद कोर्ट मंगलवार से सुनवाई कर रहा है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर भी शामिल हैं। नियमित सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता।

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Published: 08 Aug 2019, 4:59 PM