उपभोग को बढ़ावा, आर्थिक नीतियों की स्थिरता ही मंदी से बाहर निकलने का रास्ता, कांग्रेस की मोदी सरकार को सलाह

रमेश ने कहा कि आईएमएफ की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि सरकार की बयानबाजी और आर्थिक वास्तविकता के बीच की खाई ही भारत में निजी निवेश को पुनर्जीवित करने में सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

उपभोग को बढ़ावा, आर्थिक नीतियों की स्थिरता ही मंदी से बाहर निकलने का रास्ता, कांग्रेस की मोदी सरकार को सलाह
उपभोग को बढ़ावा, आर्थिक नीतियों की स्थिरता ही मंदी से बाहर निकलने का रास्ता, कांग्रेस की मोदी सरकार को सलाह
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्दा कोष (आईएमएफ) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गुरुवार को केंद्र सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना की और कहा कि आर्थिक मंदी से निकलने का रास्ता जन उपभोग को बढ़ावा देना, आर्थिक नीतियों की स्थिरता सुनिश्चित करना और व्यापार नीति का पुनर्गठन है। रमेश ने दावा किया कि आईएमएफ की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि सरकार की बयानबाजी और आर्थिक वास्तविकता के बीच की खाई ही भारत में निजी निवेश को पुनर्जीवित करने में सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, "अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट में "भारत में निजी निवेश को पुनर्जीवित करना" विषय पर एक पूरा खंड समर्पित किया है। यह रिपोर्ट कुछ हद तक मोदी सरकार की नीतियों और कार्यों की अप्रत्यक्ष रूप से आलोचना करती है।" उन्होंने दावा किया कि यह रिपोर्ट भारत में निजी निवेश की सुस्त वृद्धि को रेखांकित करती है और उल्लेख करती है कि "निजी कॉरपोरेट निवेश विशेष रूप से ऐतिहासिक औसत की तुलना में सुस्त रहा है।"


कांग्रेस नेता ने कहा, "आईएमएफ ने चिंताजनक रूप से उल्लेख किया है कि जुलाई-सितंबर 2024 में विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग केवल 75.8 प्रतिशत तक पहुंचा और अधिकतर कंपनियों को उम्मीद थी कि अगले छह महीनों के भीतर मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता पर्याप्त होगी। विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन अपेक्षाओं में यह गिरावट उपभोग वृद्धि में आई मंदी को दर्शाती है, जिस पर पहले भी व्यापक चर्चा हो चुकी है।"

उनके मुताबिक, आईएमएफ ने यह भी कहा है कि हाल के वर्षों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अपेक्षाओं से कम रहा है। रमेश ने कहा, "आईएमएफ का कहना है कि यह आंशिक रूप से मोदी सरकार की असंगत व्यापार नीति के कारण है। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत दोनों ही मोर्चों पर नुकसान उठा रहा है। न तो निवेशक भारत को निर्यात केंद्र के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें संरक्षणवादी नीतियों का डर है, और न ही वे घरेलू उपभोग के लिए निवेश करने को तैयार हैं क्योंकि चीनी माल की डंपिंग का खतरा बना हुआ है।"


उन्होंने यह भी कहा कि आईएमएफ ने श्रम बल भागीदारी दर में बहुप्रचारित वृद्धि का बड़ा कारण स्वरोजगार और बिना वेतन वाले पारिवारिक कार्यों में वृद्धि को बताया है। उन्होंने कहा कि यह वही बात है जिसे कांग्रेस लगातार कहती आ रही है। उन्होंने कहा कि आईएमएफ की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि सरकार की बयानबाजी और आर्थिक वास्तविकता के बीच की खाई ही भारत में निजी निवेश को पुनर्जीवित करने में सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

रमेश ने दावा किया कि बुनियादी सिद्धांतों से निपटने में विफलता और मुट्ठी भर राजनीतिक रूप से जुड़े एकाधिकारवादियों पर लगातार जोर देने के कारण यह घोर विफलता हुई है। उन्होंने कहा, "कांग्रेस लगातार यह तर्क देती रही है कि भारत की वर्तमान आर्थिक मंदी से निकलने का रास्ता तीन प्रमुख पहलुओं पर आधारित है। ये तीन पहलू जन उपभोग को बढ़ावा देना, आर्थिक नीतियों की स्थिरता सुनिश्चित करना और व्यापार नीति का पुनर्गठन हैं।"

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