सरकारी नीतियों से असहमति को राजद्रोह नहीं माना जा सकता: दिशा रवि को जमानत देते हुए कोर्ट ने कीं गंभीर टिप्पणियां

युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत देते हुए दिल्ली के सेशन कोर्ट ने कहा है कि “महज इस आधार पर कि कोई सरकारी नीतियों से असहमत हो, उसे जेल में नहीं डाला जा सकता।” कोर्ट ने अपना आदेश सुनाते हुए कई टिप्पणियां की हैं।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images
user

नवजीवन डेस्क

दिल्ली की सेशन कोर्ट ने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत मंजूर करते हुए सरकारी कार्यप्रणाली और पुलिस की जांच पर काफी गंभीर टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा है कि “देश के नागरिक किसी भी लोकतंत्र में सरकार की अवचेतना के रखवाले होते हैं। उन्हें सिर्फ इस आधार पर सलाखों के पीछे नहीं डाला जा सकता कि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं। राष्ट्रद्रोह का मामला सिर्फ सरकारों के आहत अहंकार को तुष्ट करने के लिए नहीं लगाया जा सकता।”

दिशा रवि को कोर्ट ने मंगलवार को एक लाख रुपए के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो गारंटी पर जमानत देने का आदेश जारी किया। अदालत ने अपने आदेश में जो टिप्पणियां की हैं, वे इस प्रकार हैं:

  • आरोपी (दिशा रवि) का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। पुलिस ने अपनी जांच में जो कुछ भी किया है उसे सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे में 22 वर्षीय ऐसी युवती को जेल नहीं भेजा जा सकता जो समाज में गहरी जड़े रखती है।

  • मेरे विचार से देश के नागरिक किसी भी लोकतंत्र में सरकारों की अवचेतना के रखवाले हैं। उन्हें सिर्फ सरकार से असहमति जताने के लिए सलाखों के पीछे नहीं भेजा जा सकता।

  • जांच एजेंसी को सिर्फ अनुमानों के आधार पर किसी नागरिक की स्वतंत्रता के उल्लंघन की इजाजत नहीं दी जा सकती

  • कोर्ट ऋगवेद का हवाला देते हुए कहा, “5000 साल पुरानी हमारी सभ्यता में कभी भी विभिन्न विचारों पर पाबंदी नहीं लगाई गई।”

  • हमारे पुरखों ने भी विभिन्न विचारों का आदर किया और अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी को बुनियादी अधिकार माना है। असहमति का अधिकार भी संविधान के अनुच्छेद 19 में स्पष्ट रूप से वर्णित है

  • मेरे विचारा से कोई भी विचार या राय, बोलने या अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में अपने विचारों को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का भी अधिकार है। संवाद को भौगोलिक सीमाएं नहीं बांध सकती है। हर नागरिक को संवाद के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करने का बुनियादी अधिकार है।

  • चूंकि कथित टूलकिट या पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के प्रचार में में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया है ऐसे में सिर्फ व्हाट्सऐप चैट हिस्ट्री को डिलीट करना सबूतों को नष्ट करने का जुर्म नहीं है और आरोपी को टूलकिट या पीजेएफ से जोड़ना भी अर्थहीन हो जाता है

  • मैं जानता हूं कि इस समय जांच शुरुआती दौर में है और पुलिस और सबूत जमा कर रही है। फिर भी जांच एजेंसियों ने आरोपी को पर्याप्त सबूत मिले बिना ही गिरफ्तार किया। और अब वे उसकी आजादी के अधिकार को सिर्फ अनुमानों के आधार पर नहीं रोक सकते

  • पुलिस ने कुछ भी ऐसा रिकॉर्ड में नहीं दिया है जिससे साबित होता हो कि आरोपी या किसी संस्था ने या उससे जुड़े लोगों ने 26 जनवरी 2021 को हिंसा भड़काने, या हिंसा के लिए लोगों को उकसाने का काम किया हो

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


/* */