'शेयर बाजार में भारी गिरावट की ED से कराई जाए जांच', पूर्व IAS अधिकारी ने मोदी-शाह की भूमिका पर भी उठाए सवाल

आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ को लिखे पत्र में पूर्व आईएएस अधिकारी ने पूछा है कि क्या तीन और चार जून को शेयर बाजार में तेज उतार-चढ़ाव के कारणों का पता लगाने के लिए कोई जांच शुरू की गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह।
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पीटीआई (भाषा)

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी ईएएस शर्मा ने चुनाव परिणाम के दिन चार जून को शेयर बाजार में आई भारी गिरावट की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जांच कराने की मांग की है। शेयर बाजार में इस गिरावट से निवेशकों को 31 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी थी। आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ को लिखे पत्र में शर्मा ने पूछा है कि क्या भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने लुढ़कते बाजार को संभालने के लिए कोई कदम उठाया। क्या तीन और चार जून को शेयर बाजार में तेज उतार-चढ़ाव के कारणों का पता लगाने के लिए कोई जांच शुरू की गई।

वर्ष 1999-2000 के दौरान वित्त मंत्रालय में सचिव रहे शर्मा ने कहा, ‘‘यह परेशान करने वाली बात है कि कई कारकों ने मिलकर तीन जून, 2024 को शेयर बाजार में उछाल ला दिया और उसके अगले दिन भारी गिरावट आ गई। इससे छोटे निवेशकों की बाजार में निवेश की गई कड़ी मेहनत की बचत खत्म हो गई। शेयर बाजार के बड़े दिग्गजों को उनके मुताबिक कीमत पर मुनाफा कमाने का मौका मिल गया। इससे शेयर बाजार पूरी तरह से उबर नहीं पाया है।

अंतिम दौर का मतदान संपन्न होने के बाद आए एग्जिट पोल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की शानदार जीत के अनुमान के बीच बीएसई सूचकांक सेंसेक्स सोमवार को 2,507 अंक यानी 3.4 प्रतिशत की बढ़त के साथ 76,469 अंक के शिखर पर बंद हुआ। हालांकि उसके अगले ही दिन चुनावी नतीजों की घोषणा के साथ ही शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई। भाजपा को अपने दम पर स्पष्ट बहुमत न मिलने से सेंसेक्स 4,390 अंक यानी छह प्रतिशत गिरकर 72,079 पर बंद हुआ। यह पिछले चार साल में उसका सबसे खराब सत्र रहा था।

शर्मा ने इस भारी उठापटक पर कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि इन घटनाओं के पीछे खुद प्रधानमंत्री की ही भूमिका थी। प्रधानमंत्री मोदी ने चार तारीख (मतगणना के दिन) को शेयर बाजार में उछाल की ‘भविष्यवाणी’ की थी जिससे यह संकेत मिला कि निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए क्योंकि उनकी सरकार के सत्ता में लौटने से तथाकथित ‘सुधारों’ पर जोर दिया जाएगा।’’ उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि प्रधानमंत्री को ऐसा गलत बयान देने के लिए किस बात ने प्रेरित किया। उनके बयान के बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने भी आग में घी डालने का काम किया और कहा कि निवेशकों को चार जून से पहले खरीदारी कर लेनी चाहिए।’’

प्रधानमंत्री के बयान को ‘अविवेकपूर्ण’ बताते हुए पूर्व नौकरशाह ने कहा कि इससे छोटे निवेशक अपनी थोड़ी बहुत जमा-पूंजी भी आंख मूंदकर निवेश करने के लिए प्रेरित हुए क्योंकि उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री को कुछ ‘अंदरूनी’ जानकारी है। उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद हुए भारी नुकसान ने निश्चित रूप से शेयर बाजार की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया है।’’ शर्मा ने पूछा कि क्या वित्त मंत्रालय के किसी ‘विशेषज्ञ’ ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस संबंध में जानकारी दी थी और यदि हां, तो किस आधार पर ऐसा किया था।

शर्मा ने पत्र में कहा, ‘‘निवेशक या निवेशकों ने लाभ अर्जित करते हुए अपना गलत तरीके से कमाया हुआ पैसा कहां रखा है? क्या इसका मनी लांड्रिंग से कोई संबंध है? प्रवर्तन निदेशालय यदि वह स्वतंत्र रूप से काम कर सकता है, जैसा कि उसे करना चाहिए तो उसे इस आशंका की जांच करने के लिए कहा जा सकता है।’’ उन्होंने पूछा, ‘‘ इन सब में सेबी की क्या भूमिका है। क्या सेबी झूठे बयानों का जवाब देकर बाजार को संभाल सकता था? क्या सेबी ने इसकी जांच शुरू की है?’’ शर्मा ने कहा कि आर्थिक मामलों का विभाग निष्क्रिय रहकर इसके दोषियों को खुलेआम घूमने की अनुमति नहीं दे सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘ उसे ईडी, सीबीआई (केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो) और सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) से समयबद्ध तरीके से अच्छी तरह से समन्वित जांच करने के लिए कहना चाहिए ताकि आने वाली नई सरकार, नव-निर्वाचित संसद और निश्चित रूप से आम जनता को इसका पता लग सके।’’

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