गुजरात चुनाव: कांग्रेस के खामोश प्रचार से उड़ गई है बीजेपी की नींद, ‘विकास दूतों’ के बीच मचा है रोना-धोना!

गुजरात चुनाव में भाजपा फंस गई लगती है। इस बार उसका मुकाबला चुपचाप ग्रामीण वोट बैंक पर ध्यान केन्द्रित कर रखी कांग्रेस और पानी पी-पीकर कोसने वाली आम आदमी पार्टी से है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक खुद को बेचारा बताने में लगे हैं तो माथे पर बल पड़ना लाजिमी है कि आखिर माजरा क्या है!


छोटा मजमा, बड़ा काम : कांग्रेस की छोटी-छोटी बैठकों ने बीजेपी का सारा हिसाब-किताब बिगाड़कर रख दिया है। बीजेपी को भी अंदाजा है कि ग्रामीण इलाकों में उसकी खटिया खड़ी ही है। फोटो सौजन्य : गुजरात कांग्रेस
छोटा मजमा, बड़ा काम : कांग्रेस की छोटी-छोटी बैठकों ने बीजेपी का सारा हिसाब-किताब बिगाड़कर रख दिया है। बीजेपी को भी अंदाजा है कि ग्रामीण इलाकों में उसकी खटिया खड़ी ही है। फोटो सौजन्य : गुजरात कांग्रेस
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आर के मिश्रा

विकास के कथित दूत जब यह कहते हुए रोना-धोना मचाने लगें कि उन्हें इस-इस तरह की उलाहना झेलनी पड़ रही है, तो माथा जरूर ठनकना चाहिए कि आखिर माजरा क्या है। गुजरात चुनाव में चौथाई सदी से राज कर रही बीजेपी के प्रचार अभियान के केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह की बातें कर रहे हैं, उससे लगता है कि वहां पार्टी के पैरों तले जमीन खिसक चुकी है।

राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने इस बार अलग ही रणनीति अपना रखी है। न तो वह बीजेपी के ताम-झाम का मुकाबला करने की कोशिश कर रही है और न ही आम आदमी पार्टी की तीखी जुबान का। वह चुपचाप अपने ‘मिशन’ में लगी है। कांग्रेस को पता है कि बीजेपी का शहरी इलाकों में प्रभाव है और कमोबेश आम आदमी पार्टी भी शहरी मिजाज की ही पार्टी है। इसलिए बेहतर है कि अपने गढ़ पर ध्यान दो। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस गांवों पर ध्यान दे रही है और छोटी-छोटी बैठकें करके अपनी स्थिति और मजबूत कर रही है।

इसी कारण बीजेपी के लिए इस बार ‘रण का रण’ अलग है। अंदर-बाहर से ढेरों ‘परेशानियों’ ने उसे घेर रखा है और प्रधानमंत्री मोदी के भाग-भाग कर गुजरात पहुंचने और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्य में ही डेरा जमा लेने के बाद भी बीजेपी में एक तरह की बेचैनी है, जिसे बड़े आराम से समझा जा सकता है। बीजेपी को राज्य की सत्ता में चौथाई सदी हो गई है और उसे भारी सत्ताविरोधी लहर का सामना भी करना पड़ रहा है।

इन्हीं कारणों से हालिया प्रचार में बीजेपी नेताओं के रंग-ढंग बदले हुए से हैं। वह हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। मोदी अपने आप को बेचारा बताते हैं। सुरेंद्रनगर में एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा, ‘कांग्रेस के नेता मोदी को उसकी औकात दिखाना चाहते हैं। लेकिन मैं तो सिर्फ एक नौकर हूं जिसकी कोई औकात नहीं। इसके पहले भी उन लोगों ने मुझे ‘नीच आदमी’,  ‘मौत का सौदागर’ और ‘नाली का कीड़ा’ कहा। लेकिन मैं सिर्फ विकास की बात करता हूं। वे शाही लोग हैं, मैं तो सिर्फ एक मामूली सा नौकर हूं।’


वहीं अमित शाह भूत को खींचकर वर्तमान में ले आते हैं। हाल ही में अहमदाबाद में कहा कि ‘कांग्रेस ने सरदार वल्लभभाई पटेल को अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा। नर्मदा परियोजना को कांग्रेस सरकारों ने जान-बूझकर लटकाए रखा क्योंकि इससे सरदार का नाम जुड़ा था।’ यह सब बोलते हुए अमित शाह बड़े ही सुविधाजनक तरीके से इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि जिस कांग्रेस सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, उसके गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे।

चुनावी फायदे के लिए इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने के साथ शाह सांप्रदायिकता से भरे बयान देने से भी नहीं चूकते। खंबाट और अहमदाबाद के साबरमती में वह हुंकार भरते हैं- क्या कांग्रेस सांप्रदायिक दंगे फैलाने वालों को ढेर कर सकती है? इसके अलावा वह बेट द्वारका में बड़े पैमाने पर चले तोड़-फोड़ अभियान का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘ हमने सभी फर्जी मजारों को गिरा दिया, ठीक किया या गलत किया?’

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण गुजरात के वलसाड में आजमाया हुआ नुस्खा अपनाते हुए ‘गुजरात विरोधी' गिरोह के खिलाफ आगाह करते हैं कि ये लोग झूठ फैलाते हैं, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं और राज्य को बदनाम करते हैं। बिना किसी आदमी या पार्टी का जिक्र किए वह अपनी बात को जारी रखते हैं, ‘ये तत्व विकास की घड़ी की सुई को वापस घुमाना चाहते हैं।’

दो दिन बाद, बीजेपी नेता और राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष जेठा भारवाड़ ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बेईज्जत करके वापस दिल्ली भेज दिया जाएगा। यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी के प्रमुख को अफगानिस्तान या पाकिस्तान में रहना चाहिए। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी.आर. पाटिल केजरीवाल को 'महाठग' कहकर पुकारते हैं।


बीजेपी ने अपने केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और तमाम नेताओं को गुजरात के चुनाव में मैदान में उतार रखा है। उनके पास केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत हैं जो गुजरात से उभर रही कथित विकास की राजनीति पर अहमदाबाद में लोगों को ज्ञान देते हैं; कांग्रेस का हाथ छोड़कर आए असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सरमा हैं जो बताते नहीं अघाते कि कैसे मोदी के नेतृत्व में भारत ने अर्थव्यवस्था के मामले में ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया। उधर, हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर लोगों को भरोसा दिलाते फिर रहे हैं कि यह चुनाव बीजेपी के पक्ष में झुका हुआ है। पार्टी प्रमुख जे पी नड्डा कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के पीछे भारत तोड़ो एजेंडे की बात करते हैं तो महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस इसे विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास बताते हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि ‘बीजेपी के 27 साल के शासन ने अहमदाबाद को रहने योग्य और प्यारा बनाया है।’ वह शायद यह उल्लेख करना भूल गए कि बीजेपी नियंत्रित अहमदाबाद नगर निगम ने 4 अगस्त से अब तक दो बार में कुल 700 करोड़ रुपये के ऋण लिए ताकि निगम के रोजाना के खर्चे पूरे हो सकें और कर्मचारियों को वेतन का भुगतान हो सके। ऐसी खस्ता हालत के बावजूद नगर निकाय ने पिछले महीने 2,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी। जाहिर है, मंशा चुनावों में फायदा उठाने की थी।

प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह राज्य की राजनीति की कमान सीधे अपने हाथ में ले रखी है, उसके बाद भी विधानसभा में बीजेपी की सीटों में आई लगातार कमी ने उन्हें परेशान कर रखा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात के चुनावों का भार अकेले अपने कंधों पर उठाने वाले प्रधानमंत्री मुश्किलों में घिरे हैं। पिछले एक साल से मोदी और शाह चुनावी मोड में ही रहे हैं। इन नेताओं में से जब भी कोई गुजरात आया, तमाम परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई या फिर उद्घाटन किया गया। इस दौरान मोटे तौर पर लगभग दो लाख करोड़ रुपये की कुल घोषणाएं कर दी गईं।

जब तक चुनाव आचार संहिता लागू नहीं हुई थी, गुजरात में मोदी-शाह की रैलियों में आदमी जुटाने के लिए परिवहन विभाग की बसों का इस्तेमाल किया जा रहा था और उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि इससे आम लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है क्योंकि ये बसें विभिन्न रूटों से हटाकर इस तरह के काम में झोंकी जाती हैं। इसलिए जब तक चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी, इनकी रैलियों में भीड़ जुटती रही। लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद यह सब सुविधाएं जाती रहीं और उसी तरह इनकी रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ भी कम हो गई। और तो और खाली कुर्सियों का मामला पार्टी में चर्चा का विषय भी बना।


इस चुनाव में ‘आदिवासी’ भी जैसे मुद्दा बन गया है। भारत जोड़ो यात्रा से दो दिन का ब्रेक लेते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात में दो चुनावी सभाओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा, कांग्रेस का मानना है कि आदिवासी जमीन के पहले मालिक हैं जबकि बीजेपी उन्हें वनवासी कहती है। गुजरात के सुरेंद्रनगर में मोदी ने उसी दिन मतदाताओं से कांग्रेस को दंडित करने के लिए कहा क्योंकि नर्मदा विरोध नेता मेधा पाटकर उनकी यात्रा में शामिल हुई थीं। नड्डा ने कहा कि कांग्रेस नेता गुजरात विरोधी तत्वों के साथ चल रहे हैं। यहां इसे भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि भाजपा ने 2002 में साबरमती आश्रम में आयोजित एक शांति बैठक में नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) कार्यकर्ताओं पर हमले के आरोपी पार्टी के दो नेताओं को चुनाव में टिकट दिया है।

अमित पोपटलाल शाह को एलिसब्रिज निर्वाचन क्षेत्र से जबकि अमित ठाकर को वेजलपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है। ये दोनों सीटें अहमदाबाद में हैं। अभी इन दोनों नेताओं पर मुकदमा चल रहा है। ठाकुर जो गुजरात के भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के सचिव थे, बाद में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। पाटकर मारपीट मामले का एक अन्य आरोपी जो मुकदमे का सामना कर रहा है, वह हैं वी के सक्सेना जिन्हें बाद में दिल्ली का उपराज्यपाल बनाया गया।

इस बार बीजेपी का चैन इसलिए भी खो गया है कि कांग्रेस ने उसकी नाक में दम कर रखा है। कांग्रेस जिस रणनीति पर चुनाव लड़ रही है, उसने बीजेपी को चौंका दिया है। इस चुनाव में कांग्रेस ने न तो बीजेपी की तड़क-भड़क का मुकाबला करने की कोशिश की और न ही आम आदमी पार्टी की तीखी जुबान का। कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. मनीष दोशी कहते भी हैं कि हमने इन दोनों की रणनीति से बेपरवाह जमीन पर काम करने का फैसला किया जिसके तहत हम लोगों से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क कर रहे हैं।

कहा जा सकता है कि यह राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो' यात्रा के पीछे की भावना ही है जो गुजरात में कांग्रेस के प्रचार अभियान में भी दिख रही है। कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ बीजेपी के तमाम उकसाने वाले बयानों का जवाब देने का कोई प्रयास नहीं किया। न वह आम आदमी पार्टी की उग्र प्रचार शैली का कोई प्रत्युत्तर देती है। मुकाबले में किस्मत आजमा रहीं दूसरी पार्टियों की रणनीति से बेपरवाह कांग्रेस घर-घर लोगों से मिलने और ‘खटिया' बैठकों पर अपना पूरा ध्यान दे रही है।

कांग्रेस की इस रणनीति से बीजेपी परेशान भी है। और तो और, खुद प्रधानमंत्री को भी यह कहना पड़ा कि कांग्रेस का प्रचार अभियान घर-घर चल रहा है और इसलिए बीजेपी समर्थकों को किसी खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि यह चुनाव अलग है, इसे लड़ने के हथियार अलग हैं और कांग्रेस का रूप अलग है। इसी कारण बीजेपी के पसीने छूट रहे हैं।  

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