मध्य प्रदेश चुनाव 2018 में भी वोटर लिस्ट में थी भारी गड़बड़ी, चुनाव आयोग को हटाने पड़े थे करीब 27 लाख संदेहास्पद वोटर
गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा, “2018 में मध्य प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस के विश्लेषण के बाद करीब 27 लाख संदेहास्पद वोटर लॉस्ट से हटाए गए थे। अगर लाखों गलत वोट हटाए नहीं गए होते, तो तब भी परिणाम कुछ और हो सकता था।“

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के आरोपों के बाद से चुनाव आयोग सवालों के घेरे में है। इसी बीच कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा है कि ये खेल कई सालों से हो रहा है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की वजह से वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के बारे में अब सब लोगों को पता चल गया है। लेकिन, कांग्रेस ने सबसे पहले इसे 2018 में मध्य प्रदेश के चुनावों से पहले पकड़ा था।
गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा, “2018 में मध्य प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस के विश्लेषण के बाद करीब 27 लाख संदेहास्पद वोटर लॉस्ट से हटाए गए थे। फिर केवल 47,927 वोट के अंतर से कांग्रेस ने वह चुनाव जीता था। अगर लाखों गलत वोट हटाए नहीं गए होते, तो तब भी परिणाम कुछ और हो सकता था।“
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि, “इस सफल विश्लेषण के बाद चुनाव आयोग ने फ़ैसला लिया कि आगे से वोटर लिस्ट जिस फॉर्मेट में मिलेगी, उसे डेटाबेस में बदला नहीं जा सकेगा! तब से अब तक वोटर लिस्ट को एन्क्रिप्ट करने के कई कदम चुनाव आयोग उठा चुका है। 2023 में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट में मोदी सरकार ने सभी वोटर लिस्ट को एन्क्रिप्ट करने का फैसला ले लिया। इसी वजह से अब कांग्रेस को कर्नाटक की सिर्फ एक विधानसभा की लिस्ट जांचने में 6 महीने लगे।“
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी लगातार चुनाव आयोग से महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव की मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट मांग रहे हैं, जो नहीं दी जा रही है। सप्पल ने पूछा कि पारदर्शिता को दबाने के ये फैसला चुनाव आयोग क्यों कर रहा है?
मध्य प्रदेश चुनाव 2018 को लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी कई अहम बातों का खुलासा किया है।
कमलनाथ ने एक्स पर अपने पोस्ट में कहा, "2018 में, मैंने मध्य प्रदेश की मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ी होने के संबंध में कुछ विशेष मुद्दे उठाए थे। इनमें शामिल थे:
1. जनसांख्यिकीय रूप से समान प्रविष्टियां होना, जहां एक ही व्यक्ति का नाम अलग-अलग विधानसभाओं या मतदान केंद्रों में दर्ज पाया गया था।
2. समान फ़ोटो वाली प्रविष्टियां, जहां एक ही व्यक्ति की तस्वीरें अलग-अलग स्थानों पर मौजूद थीं।
3. मतदाता सूचियों में फर्जी नाम, जिनका ज़मीनी स्तर पर पता नहीं चल रहा था।
4. मतदाता सूचियों में मृत या स्थानांतरित मतदाताओं का होना।
5. ऐसे मतदाताओं का होना, जिनकी फोटो पहचान में नहीं आ रही थी।
6. एक ही पते या अमान्य पतों पर असामान्य रूप से अधिक संख्या में मतदाताओं का होना।"
कांग्रेस नेता ने कहा, "चुनाव आयोग के जवाबी-हलफनामे में इन विसंगतियों को स्वीकार किया गया था और सूची से नाम हटाने या सुधारात्मक कार्रवाई करने पर सहमति व्यक्त की गई थी। उन्होंने 9664 इंट्रा-एसी रिपीट प्रविष्टियां, 8278 इंटर-एसी रिपीट प्रविष्टियां और 2,37,234 संदिग्ध तस्वीरें होने की बात भी स्वीकार की थी और 24 लाख संदिग्ध मतदाताओं को हटाने का दावा किया था।"
उन्होंने आगे लिखा, "हालांकि, चुनाव आयोग ने गोपनीयता संबंधी चिंताओं के कारण मतदाता सूचियों की मशीन-रीडेबल पीडीएफ उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया।"
कांग्रेस नेता ने कहा कि राहुल गांधी के निष्कर्षों से मतदाता सूची के रखरखाव में गड़बड़ी का एक व्यवस्थित पैटर्न सामने आया है। 2018 में उठाए गए मुद्दे और गंभीर हो गए हैं और हेरफेर का एक नया स्तर दिख रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि, "सुप्रीम कोर्ट में अपने इस आश्वासन के बावजूद कि चुनाव आयोग इन विसंगतियों को दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा, चुनाव आयोग अपने हलफनामे से पीछे हटता जा रहा है और मतदाता सूची में जानबूझकर हेराफेरी किए जाने से इनकार कर रहा है।"
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