दरकता सिंद्रवाणी गांव! अगले महीने बेटे की शादी, सपनों संग टूटी उत्मा की उम्मीदें, सरकार से सवाल- फैसले में देरी क्यों?
रुद्रप्रयाग का सिंद्रवाणी तल्ली गांव पिछले एक हफ्ते से भूधंसाव और भूस्खलन की मार झेल रहा है, जहां करीब 20 परिवार बेघर होने की कगार पर हैं। प्रशासन सिर्फ़ सर्वे और रिपोर्ट की बात कर रहा है, जबकि ग्रामीण तत्काल विस्थापन की मांग कर रहे हैं।

रात को सोते समय हर झटका दिल की धड़कनों को तेज़ कर देता है। पहाड़ से गिरती चट्टानों की गूंज और सरकती ज़मीन की सरसराहट, गांववालों को हर पल मौत के साये का अहसास कराती है। घरों की दीवारों पर पड़ती नई-नई दरारें न सिर्फ़ दीवारों को तोड़ रही हैं, बल्कि गांववालों के विश्वास और उम्मीदों को भी चकनाचूर कर रही है। कुछ इस दर्द से गुजर रहे हैं जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे उत्तराखंड के सिंद्रवाणी गांव के लोग।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनी विकास खण्ड़ का ये वही सिंद्रवाणी तल्ली गांव है जहां पिछले एक हफ्ते से भूस्खलन और भूधंसाव ने करीब 20 परिवारों की नींद और चैन सब छीन लिया है। कभी सुरक्षित आशियाने कहे जाने वाले घर अब मलबे में तब्दील हो रहे हैं। लोग अपनी आंखों के सामने अपने खेत, गौशालाएं और पीढ़ियों की कमाई मिट्टी में धंसते देख मजबूर हैं। बावजूद इसके अब तक इस गांव की कोई खास सुनवाई नहीं हुई है, जबकि पूरा गांव एक अवाज में कह रहा है कि हमें विस्थापित किया जाए।

गांव के लोगों की स्थिति 'आगे कुंआ, तो पीछे खाई' जैसी बनी हुई है, एक ओर जहां घरों के ऊपर से पहाड़ टूट रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर नीचे से जमीन खिसक रही है, बावजूद इसके अबतक इस गांव के लोगों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा सका। यही नराजागी लोगों के बीच भी है। आपदा के मुहाने पर खड़े इस गांव के लोग इस कद्र डरे हैं कि कई रातों से ठीक से सो नहीं पाए हैं। अपने आंखों के सामने अपने सपनों के घरों, खेतों और कई दशकों से संजोय अच्छी-बुरी यादों को यूं बरबाद होते देख लोग रो रहे हैं। ग्रामीणों के इस दर्द को हमने भी करीब से महसूस करने की कोशिश की। जब हमने गांव के लोगों से फोन पर बात की तो उनकी आवाज़ में ही उनकी बेबसी और दर्द साफ झलक रही थी।

सालों की मेहनत मलबे में दबी, उत्मा देवी की आंखों से छलका सिंद्रवाणी का दर्द
सिंद्रवाणी गांव की उत्मा देवी बिष्ट हमारी आवाज़ सुनते ही रो पड़ीं। कांपती हुई जुबान से उन्होंने कहा– भैया, एक महीने बाद मेरे बेटे की शादी है, लेकिन अब सबकुछ बर्बाद हो गया है। घर, सामान, खेत... कुछ भी नहीं बचा। सालों की मेहनत और कमाई से बनाया घर अब छोड़ना पड़ रहा है। आज नहीं तो दो साल बाद ही सही, हमें ये जगह छोड़नी ही पड़ेगी। अपनी हालत बताते हुए उत्मा की आवाज़ और भारी हो गई।

उत्मा ने कहा कि हमने देहाड़ी-मजदूरी करके ये घर बनाया था। परिवार में कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं है। बच्चे होटलों में काम कर रहे हैं। हम दोनों पति-पत्नी यहां रहते हैं, वही हमारा सहारा है। लेकिन अब घर टूट चुका है। उत्मा ने नम आंखों के साथ हमसे विनती की कि हमारी आवाज़ ऊपर तक पहुंचा दो। हमें मदद दिलवा दो। कोई अपना घर छोड़ना नहीं चाहता, लेकिन मजबूरी हमें ऐसा करने पर मजबूर कर रही है। फिलहाल जान बच जाए उससे बढ़कर कुछ नहीं है।

गांववालों का गुस्सा और दर्द इसी तरह प्रशासन और नेताओं की उदासीनता पर भी है, उत्मा बताती हैं कि विधायक को भी इसकी जानकारी दे दी गई, वो अब तक तो नहीं आए लेकिन उनका लड़का प्रतिनिध के तौर पर गांव जरूर आया और सतर्क रहने की बात कहकर चला गया।

राजभर ने सुनाई सिंद्रवाणी गांव की तबाही की दास्तां
उत्मा के अलावा हमने गांव के ही राजभर से भी बात की। राजभर बताते हैं कि पिछले एक हफ्ते से भू धंसाव की परेशानी का सामना पूरा गांव कर रहा है, पहले ये परेशानी थोड़ी सी ही थी, लेकिन अब गांव के पूरे घरों में दरारें हैं। खेत के खेत बारिश से आए भूस्खलन से गायब हो गए हैं। गौशाला तबाह हो चुके हैं, रास्ते पूरी तरह घंस गए हैं। जहां पहले कभी हरियाली हुआ करती थी अब वो जगह तबाह हो चुकी है।
राजभर बताते हैं कि इस बात को एक हफ्ते से ज्यादा का समय हो गया है, इसे लेकर उन्होंने कई बार शिकायत भी की। हालांकि राजभर इस बात को लगातार कह रहे हैं कि शासन-प्रशासन लगातार काम कर रहा है लेकिन ठोस आश्वासन अबतक नहीं मिला। राजभर ने बताया कि कल एसडीएम गांव में आई तो सही लेकिन ये कहकर चली गई कि कहीं आपकी जमीन हो तो हम आपको वहां शिफ्ट कर देंगे और अगर नहीं तो फिर भूवैज्ञानिकों का इंतजार कीजिए वो बताएंगे कि खतरा कितना है, यानी अब खतरे के आधार पर इस गांव का भविष्य तय किया जाएगा।
बर्बाद हो चुके इस गांव का पहले तो सर्वे होगा फिर जाकर ये फैसला लिया जाएगा कि विस्थापित करना है भी या नहीं।

'ना स्कूल, ना रास्ते, सिंद्रवाणी गांव जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है'
फिलहाल गांव में लाइट तो है लेकिन अब तक कई रातें ये गांव वाले अंधेरे में गुजार चुके हैं। इस बात की जानकारी खुद ग्राम प्रधान के पति विनोद ने दी। प्रधान पति विनोद राणा से भी हमने बात की, एक लंबी सांस लेने के बाद विनोद का पहला जवाब यही था कि भाईजी फिलहाल तो हम उसी गांव में है अब तक हमें कहीं विस्थापित नहीं किया। विनोद से हमने गांव में आए इस आपदा को समझने की कोशिश की, विनोद ने बताया कि सब कुछ खत्म हो चुका है, ना स्कूल है, ना रास्ते कई घर तो ऐसे हैं जो पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। उन घरों के लोगों को भी अभी गांव में ही दूसरे घरों पर शिफ्ट किया है। कुल मिलाकर पूरा गांव जिंदगी और मौत के बीच में झूल रहा है।
विनोद बताते हैं कि आपदा की खबर मिलने के कुछ दिन बाद अगर कोई लगातार आ रहा है तो वो पटवारी है, हालांकि पटवारी भी वही बात कह रहा है जो बीते दिनों एसडीएम ने कही कि - खतरा कितना बड़ा है पहले ये देखा जाएगा उसके बाद विस्थापित का फैसला लिया जाएगा। बिजली, पानी के अलावा राशन और स्वास्थ्य सुविधा के बारे में विनोद ने बताया कि बिजली, पानी तो जैसे तैसे चल रहा है लेकिन स्वास्थ्य सुविधा कुछ नहीं है। परेशान विनोद बताते हैं कि करीब 150 साल पुराने बसे इस गांव को छोड़ने की नौबत आज तक नहीं आई थी, इससे पहले साल 2009 में लगातार हो रही बारिश के चलते थोड़ी दिक्कतें आई थी, इतना ही नहीं साल 2013 में आई आपदा में भी इस गांव को थोड़ा बहुत ही नुकसान हुआ था। सिंद्रवाणी गांव की आज जो स्थिति है उसका कारण पानी का निकासी ना होना और नीचे गदेरे को माना जा रहा है।

'गांव बर्बाद, लेकिन रेलवे टनल का काम जारी', मिंटू ने उठाया बड़ा सवाल
परेशान इस गांव की मदद के लिए अब दूसरे गांव के लोग भी आ रहे हैं। आसपास के कई गांवों के लोग सिंद्रवाणी के लोगों के साथ खड़े हैं और जितनी मदद हो सकती है वो कर रहे हैं। सिंद्रवाणी पल्ली से सिंद्रवाणी तल्ली गांव अपनों के पास पहुंचे मिंटू बिस्ट से भी हमने बात की और उनकी बात समझनी चाही। मिंटू का कहना है कि आपदा की मार झेल रहे सिंद्रवाणी तल्ली गांव के लोग भी अब भगवान भरोसे है, हर सेकेंड मौत का सामना कर रहे यहां के लोगों में प्रशासन के खिलाफ गुस्सा तो बहुत है, लेकिन फिलहाल जान बच जाए ये जरूरी है। मिंटू कहते हैं कि कभी हरे-भरे खेत और सुरक्षित मकान कहलाने वाली यह जगह अब खौफ और अनिश्चितता का प्रतीक बन चुकी है।

मिंटू से बातचीत के दौरान हमें एक और बात हैरान करने वाली लगी वो ये कि इस गांव से करीब 3-4 किलोमीटर दूर(हवाई दूरी) विकास के नाम पर किया जा रहा पीएम मोदी के सपनों का प्रोजेक्ट ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का काम भी जारी है। हमने जब गहराई से समझने की कोशिश की तो सवाल मन में आया कि सिंद्रवाणी तल्ली गांव की आज की स्थिति का जिम्मेदार कहीं ना कहीं ये प्रोजेक्ट भी तो नहीं। इस बात पर मिंटू का कहना है कि पहले कई बार ये बात तो सुनी गई है कि टनल बनाने के दौरान जो ब्लास्ट होता था उस दौरान कई गांवों में इसका असर लोग महसूस करते थे, हालांकि सिंद्रवाणी गांव में ये बात सुनने में कभी नहीं आई। मिंटू बताते हैं कि भारी बारिश और भूस्खलन के बीच अभी भी टनल के अंदर का काम चल रहा है। भारी भरकंप डंफर और मशीनों की आवाज वहां से गुजरते समय सुनाई पड़ती है।
बड़ी अनहोनी से पहले जागने का वक्त!
खैर, उत्तराखंड में आज सिंद्रवाणी तल्ली गांव की जो स्थिति है वो पहली नहीं है, ऐसे कई गांव पहले भी आपदा के जद में आ चुके हैं, जोशीमठ, टिहरी जिले स्थित नरेंद्रनगर का अटाली गांव, उत्तरकाशी में यमुनोत्री नेशनल हाइवे के ऊपर वाडिया गांव, रुद्रप्रयाग जनपद का ही मरोड़ा गांव, पौड़ी का सौड गांव और नैनीताल में भी कई गांव, ना जानें ऐसे कितने गांव हैं जहां अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हकीकत यह है कि यहां के लोग हर सेकंड मौत के डर के साथ जी रहे हैं। घरों, खेतों और यादों के साथ उनका पूरा वजूद दरक रहा है। प्रशासनिक तंत्र भूवैज्ञानिक सर्वे और उसके बाद रिपोर्ट के इंतज़ार की बात कह रहा है, जबकि गांववालों तत्काल विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं।
सवाल ये भी उठता है कि क्या पहले लोगों की जान बचाना जरूरी नहीं है? क्या सरकार आपदा आने का इंतजार कर रही है, फिर कार्रवाई करेगी? जब घर टूट रहे हैं, खेत खिसक रहे हैं और लोग रातों को जागकर काट रहे हैं, तब सिर्फ जांच और रिपोर्ट का इंतजार कितना जायज़ है? क्या प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ खतरे का आंकलन करना है या खतरे में जी रहे लोगों को तुरंत सुरक्षित जगह पर पहुंचाना भी है?
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