वीडियो: अर्थव्यवस्था खोलने के लिए टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत, जरूरतमंदों पर खर्च करने होंगे हजारों करोड़- रघुराम राजन

अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी कई चुनौतियों को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरबीआईके पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से बातचीत की। चर्चा में आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि इस समय गरीबों की मदद करना जरूरी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन लागू है। पिछले एक महीने से देश में सबकुछ बंद पड़ा है, लोग घरों में बंद हैं, फैक्ट्रियों में ताले लटके हैं। इन सब का सीधा असदर देश के अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है और जीडीपी की गति पूरी तरह से थम गई है। वहीं इन सभी हालातों को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने जाने-माने अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ रघुराम राजन के साथ लंबी बातचीत की। इस बातचीत में अर्थव्यवस्था की हालत और कोरोना महामारी के बीच इसमें सुधार के उपायों पर चर्चा हुई।

कोरोना वायरस की वजह से देश में लागू लॉकडाउन को लेकर राहुल गांधी ने पूछा कि लॉकडाउन के बीच अर्थव्यवस्था को कैसे खोला जाए? इस पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि दूसरे लॉकडाउन को लागू करने का मतलब है कि आप खोलने को लेकर कोई सही तैयारी नहीं कर पाए। ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि क्या लॉकडाउन 3 भी आएगा। अगर हम सोचें कि शून्य केस पर ही खोला जाएगा, तो वह असंभव है। क्योंकि जैसे-जैसे हम संक्रमण का कर्व (वक्र) मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और अस्पतालों और मेडिकल सुविधाओं में भीड़ बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं, हमें लोगों की आजीविका फिर से शुरू करने के बारे में सोचना शुरू करना होगा। लंबे समय के लिए लॉकडाउन लगा देना बहुत आसान है, लेकिन जाहिर है कि यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि सबसे पहले ऐसी जगहों की पहचान करनी होगी जहां दूरी बनाई रखी जाए। और यह सिर्फ काम करने वाली जगह पर लागू ना हो, बल्कि काम के लिए आते-जाते वक्त भी लागू हो।

इस दौरान राहुल गांधी ने पूछा कि देश में टेस्टिंग को लेकर कई तरह के सवाल हैं, दूसरे देशों के मुकाबले यहां पर काफी कम टेस्टिंग हो रही है। इस पर रघुराम राजन ने जवाब देते हुए कहा कि अगर हम अर्थव्यवस्था को खोलना चाहते हैं, तो टेस्टिंग की क्षमता को बढ़ाना होगा। हमें मास टेस्टिंग यानी ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की ओर जाना होगा, जिसमें कोई भी 1000 सैंपल लेने होंगे और टेस्ट करना होगा। अमेरिका आज लाखों टेस्ट रोज कर रहा है, लेकिन हम 20 हजार या 30 हजार के बीच ही हैं।


इस दौरान राहुल गांधी ने यही भी पूछा कि वायरस से लड़ाई और इसके प्रभाव के बीच कैसे संतुलन बना सकते हैं? इस पर रघुराम राजन ने कहा कि आपको फिलहाल इन दोनों पर सोचना होगा क्योंकि आप प्रभाव सामने आने का इंतजार नहीं कर सकते। आप एक तरफ वायरस से लड़ रहे हैं और दूसरी तरफ पूरा देश लॉकडाउन है। यानी निश्चित रूप से लोगों को भोजन मुहैया कराना है, घरों को निकल चुके प्रवासियों की स्थिति देखनी है, उन्हें शेल्टर देना है, मेडिकल सुविधाएं देनी हैं। ये सबकुछ एक साथ करने की जरूरत है।

वहीं राहुल गांधी ने कहा कि गरीबों के लिए पैसे और भोजन और दोनों व्यवस्था करना होगा। संवाद के दौरान इस पर रघुराम राजन ने कहा कि अभी डीबीटी, मनरेगा, पेंशन जैसी स्कीमों के जरिए लोगों की मदद करने की जरूरत है क्योंकि अभी लोगों के पास काम नहीं है। हमें दोनों बातें ध्यान रखनी पड़ेंगी- सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों तक खाद्य सामग्री पहुंचे और साथ ही उनके हाथ में पैसा भी हो। गरीबों की मदद करने में तकरीबन 65,000 करोड़ रुपए लगेंगे। हमारी जीडीपी 200 लाख करोड़ रुपए की है और इसमें 65 हजार करोड़ रुपए ज्यादा नहीं है।


राहुल गांधी ने कहा कि इन दिनों एक नया मॉडल आ गया है, वह है सत्तावादी या अधिकारवादी मॉडल, जोकि उदार मॉडल पर सवाल उठाता है। इस पर रघुराम राजन ने कहा कि मुझे नहीं पता। सत्तावादी मॉडल, एक मजबूत व्यक्तित्व, एक ऐसी दुनिया जिसमें आप शक्तिहीन हैं, यह सब बहुत परेशान करने वाली स्थिति है। खासतौर से अगर आप उस व्यक्तित्व के साथ कोई संबंध रखते हैं। अगर आपको लगता है कि उन्हें मुझपर विश्वास है, उन्हें लोगों की परवाह है।

इसके साथ समस्या यह है कि अधिकारवादी व्यक्तित्व अपने आप में एक ऐसी धारणा बना लेता है कि , ‘मैं ही जनशक्ति हूं’ इसलिए मैं जो कुछ भी कहूंगा, वह सही होगा। मेरे ही नियम लागू होंगे और इनमें कोई जांच-पड़ताल नहीं होगी, कोई संस्था नहीं होगी, कोई विकेंद्रीकृत व्यवस्था नहीं होगी। सब कुछ मेरे ही पास से गुजरना चाहिए। इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि जब-जब इस हद तक केंद्रीकरण हुआ है, व्यवस्थाएं धराशायी हो गई हैं।

वहीं इस संवाद के दौरा भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे पैंडेमिक कोरोना वायरस डिजीज संक्रमण के असर पर राजन का मानना है कि भारत के पास इस आपातकालीन स्थिति का फायदा उठाने का मौका है। भारत के पास उद्योगों और आपूर्ति श्रंखला में सुधार कर वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थान बनाने के पर्याप्त अवसर हैं।


इस संवाद के दौरान रघुराम राजन से राहुल गांधी ने कहा कि भारत को एक नए विजन की जरूरत है। आपकी नजर में वह क्या विचार होना चाहिए। ये सब बीते 30 साल से अलग या भिन्न कैसे होगा। वह कौन सा स्तंभ होगा जो अलग होगा? इस पर मुझे लगता है कि आपको पहले क्षमताएं विकसित करनी होंगी। इसके लिए बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है। याद रखिए, जब हम इन क्षमताओं की बात करें तो इन पर अमल भी होना चाहिए। सुनिए उन्होंने आगे कहा।

इस दौरान राहुल गांधी ने पूछा कि माहौल और भरोसा अर्थव्यवस्था के लिए कितना अहम है? इस महामारी के दौरान जो चीज मैं देख रहा हूं वह यह कि विश्वास का मुद्दा असली समस्या है। लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर आगे क्या होने वाला है। इस पर रघुराम राजन ने कहा कि आंकड़े चिंतित करने वाले हैं। सीएमआईई (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार कोरोना संकट के कारण करीब 10 करोड़ और लोग बेरोजगार हो जाएंगे। 5 करोड़ की तो नौकरी जाएगी, 6 करोड़ लोग श्रम बाजार से बाहर हो जाएंगे। आप किसी सर्वे पर सवाल उठा सकते हो, लेकिन हमारे सामने तो यही आंकड़े हैं।

रघुराम राजन ने इस संवाद के दौरान राहुल गांधी ने पूछा कि आपके पिता राजीव गांधी पंचायती राज व्यवस्था वापस लेकर आए थे, उसका क्या असर हुआ। इस पर राहुल गांधी ने कहा कि इसके नतीजे अच्छे रहे थे, लेकिन अब हम पीछे जा रहे हैं। पंचायती राज के बजाय हम नौकरशाही आधारित ढांचे की तरफ बढ़ रहे हैं। दक्षिण के राज्य इस मामले में बेहतर हैं क्योंकि वहां विकेंद्रीकरण ज्यादा है, लेकिन उत्तर के राज्य में अधिकार वापस लिए जा रहे हैं। पंचायत और निचले स्तर के दूसरे संगठनों के अधिकार यहां कम किए जा रहे हैं। इस पर रघुराम राजन ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां हर जगह एक जैसी सरकार और एक जैसे नियमों का ढांचा चाहती हैं। यह एकरूपता भी स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों की शक्ति को कम कर देती है। इसके अलावा ब्यूरोक्रेट भी केंद्रीकरण को बढ़ावा देते हैं।

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Published: 30 Apr 2020, 6:59 PM