इलेक्टोरल बॉन्ड पर पहले भी सिर्फ 48 घंटे में जानकारी मुहैया करा चुका है एसबीआई, तो अब चार महीने क्यों चाहिए!

रिकॉर्ड बताते हैं कि जरूरत पड़ने पर सिर्फ एसबीआई महज दो दिन में ही इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारियां दे सकता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर जानकारी देने के लिए एसबीआई द्वारा 4 महीने का वक्त मांगने पर सवाल उठ रहे हैं
इलेक्टोरल बॉन्ड पर जानकारी देने के लिए एसबीआई द्वारा 4 महीने का वक्त मांगने पर सवाल उठ रहे हैं
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ए जे प्रबल

 भारतीय स्टेट बैंक की देश भर में करीब 28 हजार शाखाएं हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 29 (हर राज्य में एक) को इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने का अधिकार है। ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा इस इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर शुरु से ही सवाल उठाते रहे हैं और वक्त वक्त पर एसबीआई से सूचनाएं भी निकालते रहे। उन्होंने गुरुवार (7 मार्च 2024) को जानकारी साझा की कि एसबीआई की इन 29 में से सिर्फ 19 शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री हुई, और इन बॉन्ड को बैंक की 14 शाखाओं में कैश कराया गया।

इस जानकारी से देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक को शर्मिंदगी होगी, जिसने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसे इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग के साथ साझा करने के लिए वक्त चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को निर्देश दिया था कि वह 6 मार्च तक चुनाव आयोग के साथ इस बाबत जानकारी साझा करे। एसबीआई ने तर्क दिया है कि उसे बॉन्ड के खरीदारों और राजनीतिक दलों के मिलान के लिए वक्त लगेगा, जबकि ये सारी जानकारी दो अलग जगहों पर जमा की जाती है।

लेकिन सवाल है कि आखिर किसने बैंक से कहा कि वह आंकड़ों का मिलान करे। इस सवाल को पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने एक चर्चा के दौरान उठाया। गर्ग उस समय केंद्रीय वित्त मंत्रालय में सचिव जब अरुण जेटली वित्त मंत्री थे और इलेक्टोरल बॉन्ड योजना शुरु की गई थी। उन्हें इस योजना से जुड़ी हर कार्यप्रणाली की अच्छी जानकारी और समझ है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में स्पष्ट था कि वह सिर्फ इतना चाहता है कि एसबीआई बॉन्ड के खरीदारों और इनके लाभार्थियों की जानकारी चुनाव आयोग को दे दे कि कितने मूल्य का बॉन्ड किसने खरीदा और उसे किस तारीख को किस लाभार्थी ने कैश कराया। गर्ग ने कहा कि, “एसबीआई को इस काम में 10 मिनट से ज्यादा नहीं लगने चाहिए, क्योंकि इसका हिसाब-किताब तो पहले से ही अलग तरीके से रखा जाता है।”

इतना ही नहीं, एसबीआई बॉन्ड बिक्री और राजनीतिक दलों द्वारा कैश कराने का पूरा ऑडिट भी रखता है। इसके लिए बॉन्ड के सीरियल नंबर का मिलान किया जाता है। आरबीआई और एसबीआई दोनों ने इस योजना के 2018 में शुरु होने के वक्त बॉन्ड पर सीरियल नंबर की वकालत की थी।

वक्त मांगने के लिए एसबीआई द्वारा दाखिल शपथपत्र के सामने आने के बाद से योजना के आलोचक सवाल उठा रहे हैं कि आखिर एसबीआई किसे बचाने की कोशिश कर रहा है।


गौरतलब है कि 2018 से अब तक सिर्फ 22,217 बॉन्ड की बिक्री हुई है, इनमें से अधिकांश एक करोड़ रूपए मूल्य के थे। हर बॉन्ड पर एक नंबर होता है और बॉन्ड बेचने से पहले एसबीआई खरीदार का केवाईसी (नो योर कस्टमर) वेरिफिकेशन जरूर करती है। इसके बाद जब भी कोई राजनीतिक दल इस बॉन्ड को कैश कराना चाहता है (सिर्फ 25 राजनीतिक दल ही बॉन्ड के जरिए चंदा लेने को अधिकृत हैं और उन्हें इसके लिए अलग से विशेष अकाउंट खुलवाना पड़ा है), तो एसबीआई बेचे गए बॉन्ड के नंबर और इसे कैश कराने की मीयाद (खरीदने से 15 दिन के अंदर) की जांच करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सबकुछ पहले से ही रिकॉर्ड में है तो इस सारे डेटा को जमा कर चुनाव आयोग को सौंपने में 4 महीने (जून के अंत तक) का वक्त क्यों लगेगा?

कमोडोर बत्रा आरटीआई के जरिए बहुत सारी जानकारियां जमा करते रहे हैं कि हर विंडो (वह अवधि जब इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जाते हैं) में कितने बॉन्ड बेचे गए, इनका मूल्य 1000 रूपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक था, और बैंक की किन शाखाओं से इनकी बिक्री हुई। कमोडोर बत्रा ने बॉन्ड बिक्री के लिए खुली 30 विंडो की जानकारी हासिल की। लेकिन इन जानकारियों में यह नहीं सामने आया कि किन लोगों ने बॉन्ड खरीदे थे।

रिपोर्टर्स कलेक्टिव के लिए नितिन सेठी और तपस्या ने 7 मार्च, 2024 (गुरुवार) को एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें सामने आया है कि जब-जब केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एसबआई से बॉन्ड बिक्री की जानकारी मांगी है तो एसबीआई ने महज 48 घंटे में ही यह जानकारी मुहैया कराई है। इस रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय और एसबीआई के बीच हुए पत्राचार की भी जानकारी है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि एसबीआई ने बॉन्ड के खरीदारों की जानकारी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से वित्त मंत्रालय के साथ साझा की या नहीं।

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने 2018 के एक मामले को उजागर किया है, जब एक राजनीतिक दल ने एक करोड़ रुपए मूल्य के 10 बॉन्ड कैश कराने के लिए तय अवधि 15 दिन के बाद जमा कराए थे। एसबीआई के रिकॉर्ड से सामने आया है कि बैंक ने वित्र मंत्रालय से सलाह मांगी थी कि इन मीयाद निकल चुके बॉन्ड को कैश किया जाए या नहीं, और मंत्रालय ने तुरंत ही बॉन्ड कैश कराने की अनुमति दे दी थी। और अगले 48 घंटे के भीतर ही यह एक्सपायर बॉन्ड कैश हो गए थे।


इस रिपोर्ट में एक और अहम बिंदु सामने आया है कि वित्र मंत्रालय ने खुद स्वीकार किया है कि बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी किसी भी समय निकाल कर जरूरत पड़ने पर किसी भी जांच एजेंसी को दी जा सकती है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने कमोडोर बत्रा द्वारा जुटाई गई जानकारियों के हवाले से कहा है कि एक नोटिंग में वित्त मंत्रालय ने लिखा है कि, “खरीदार का रिकॉर्ड हमेशा बैंकिंग चैनल के पास होता है और जब भी किसी प्रवर्तन एजेंसी को जरूरत पड़े तो इसे मुहैया कराया जा सकता है।”

एक अन्य ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसबीआई के शपथ पत्र पर कहा है कि बैंक ने तो खुद स्वीकार किय है कि बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारियां सील्ड कवर में प्रतिदिन आधार पर एसबीआई हेड ऑफिस को भेजी जाती हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि अगर एसबीआई के मुंबई स्थित हेड ऑफिस के पास ये जानकारी है तो फिर बैंक को इसे जमा करने में चार महीने का वक्त क्यों लगेगा।

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