देश में आज पूंजीवाद सत्ता, जिसने प्रजातंत्र को पूरी तरह निगल लिया है
पूंजीवाद ने सबका साथ सबका विकास के खोखले नारे के बीच सत्ता की मदद से पूरी जनता की पूंजी हड़प ली, सारे प्राकृतिक संसाधन पर कब्जा कर लिया और मीडिया मोदी जी को गरीबों का मसीहा बनाता रहा- अब तो गरीब भी इसे ही सच समझ बैठे हैं।

हमारे देश में प्रधानमंत्री मोदी का विरोध और पूंजीवाद का विरोध एक ही नजरिए से देखा जाता है। सोशल मीडिया से मोदी विरोधी मैसेज भी वैसे ही गायब किए जाते हैं जैसे अडानी विरोधी। मोदी विरोधी वक्तव्यों पर भी पूरी बीजेपी जिस तरह मोर्चा संभालती है उसी तरह अडानी के सच उजागर होने पर भी। हाल में ही बिहार में अडानी को जमीन मुफ़्त में देने का जब विरोध शुरू हुआ तब सरकार ने बताया कि यह सब प्रतिस्पर्धी निविदा के तहत किया गया है।
यदि यह तथ्य मान भी लिया जाए तो सरकार को यह जरूर बताना चाहिए कि देश में क्या कोई ऐसी परियोजना है जहां अडानी ने तथाकथित निविदा प्रस्तुत किया हो और वह परियोजना अडानी को ना स्वीकृत की गई हो। दूसरी तरफ ऐसे बहुत सारे उदाहरण होंगे जहां पूरी प्रारम्भिक प्रक्रिया सरकार ने स्वयं की हो और फिर उसे अडानी को तोहफे में दिया गया हो।
बिहार की परियोजना में भी भूमि अधिग्रहण एनटीपीसी के नाम से किया गया और अधिग्रहण के ठीक बाद एनटीपीसी ने अपना नाम वापस लिया और फिर इसे उपहार स्वरूप अडानी को दिया गया। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से यही घिसापिटा फार्मूला लगातार दुहराया जा रहा है। भारत-पाकिस्तान सीमा के पास कच्छ में स्थापित किए जा रहे दुनिया के सबसे बड़े सोलर पार्क के लिए भी यही फार्मूला अपनाया गया था।
इससे एक तरफ तो एनटीपीसी जैसी सरकारी उपक्रमों को भारी घाटा उठाना पड़ता है तो दूसरी तरफ पूंजीवादी अडानी की संपत्ति कई गुणा बढ़ जाती है। कुछ पूंजीवादी अपनी क्षमताओं से पनपते हैं, तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको आगे बढ़ाने के लिए पूरी सत्ता दिन-रात मिहनत करती है, तिकड़म रचती है।
हमारे देश में पूंजीवाद ही सत्ता है, देश के लगभग सभी मंत्री और संसद सदस्य करोड़पति हैं। यही पूंजीपति गरीबों के लिए योजनाएं बनाते हैं। जाहिर है, करोड़पतियों को देश की वास्तविक हालत और समस्याएं पता ही नहीं हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सरकार से जुड़े लोग समय-समय पर गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी का मजाक उड़ाते हैं।
हाल में ही नितिन गडकरी ने कहा था कि वे ईमानदारी से हरेक महीने 200 करोड़ रुपये कमाने में सक्षम हैं। पहला सवाल तो यही उठता है कि हमारे देश में वह कौन सा ईमानदारी का व्यवसाय है जिसमें सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर चुकाने के बाद भी 200 करोड़ हरेक महीने मिलते होंगे, और दूसरा सवाल यह है कि 200 करोड़ रुपये हरेक महीने कमाने वाला गरीबी और उनकी समस्याओं को कितना जानता होगा?
हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री हरेक लोकसभा चुनावों से ठीक पहले भाषणों में जितने युवाओं को रोजगार दे जाते हैं, उतनी तो देश की जनसंख्या भी नहीं होगी- पर फिर विधानसभा चुनावों में वैसे ही दावे फिर किए जाते हैं। प्रधानमंत्री जी अब बिहार के एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का जुमला गढ़ रहे हैं। दरअसल देश में बेरोजगारी के कोई आंकड़े ही नहीं हैं- जब बेरोजगारी की चर्चा शुरू होने लगती है, सरकार बेरोजगारी दर में रिकार्ड कमी आने की बात करती है। यही स्थिति गरीबी की भी है। प्रधानमंत्री जी लगातार गरीबी कम करने की बातें करते हैं, नए आंकड़े बताते हैं पर मुफ़्त अनाज पाने वालों की संख्या 81 करोड़ ही रहती है। एक तरफ तो यह गरीबों का दर्दनाक मजाक है तो दूसरी तरफ सरकार यह साबित कर देती है कि देश का मध्यम आय वर्ग भी गरीब है।
प्रधानमंत्री जी सौर ऊर्जा की खूब बातें करते हैं और साथ ही ग्रीन इम्प्लॉयमेन्ट की भी। पर, अडानी के लगभग एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में रोजगार तो है, पर पूरी तरह से अनियंत्रित है। रोजगार देते समय के वेतन और शर्तें कभी पूरी नहीं की जाती हैं। अडानी के अधिकार वाले खावडा सोलर पार्क से हरेक दिन बहुत सारे श्रमिक अपने घरों को वापस चले जाते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क भारत-पाकिस्तान की सीमा से नजदीक कच्छ के रेगिस्तान में है।
सोलर पार्क आबादी से दूर बनाए जाते हैं और वहां तक आना-जाना कठिन होता है। इसीलिए ऐसे पार्क के नजदीक श्रमिकों के ठहरने का अस्थाई इंतजाम किया जाता है, जहां साफ पानी और बिजली की नियमित आपूर्ति आवश्यक होती है। पर, वास्तविकता इससे बहुत दूर होती है। सोलर पार्क में श्रमिकों को दिनभर तेज धूप और गर्मी से बचाने के कोई उपाय नहीं किए गए हैं, रुकने और विश्राम की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है, पीने का साफ पानी नहीं मिलता और बिजली भी लगातार नहीं मिलती।
यह पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र है और इसलिए पूरा वेतन और सुविधाएं भी नहीं मिलतीं। सरकार नवीनीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में 10 लाख से अधिक रोजगार सृजन का दावा करती है, पर इस क्षेत्र में रोजगार वाली सुविधाएं नहीं हैं। देश में बेरोजगारी बहुत है इसलिए श्रमिक लगातार मिलते तो हैं पर इस क्षेत्र को श्रमिक छोड़ते भी उतनी ही जल्दी हैं।
हम भले ही देश को प्रजातंत्र मानते हों, पर पूंजीवाद ने इस प्रजातंत्र को पूरी तरह निगल लिया है। पूंजीवाद ही सत्ता को निर्धारित करता है और फिर सत्ता अपने आकाओं की आकांक्षाओं को पूरा करती है। इन सबके बीच गरीबों को भविष्य के सुनहरे सपनों के सहारे जिंदा रखा जाता है। मोदी जी जब विकसित भारत, चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था और 5 खरब वाली ईकोनॉमी की बात करते हैं तब मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसे सपने जनता के सामने रखते हैं। इन सपनों को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और अधिक रंग भरके दिनभर प्रचारित करता है। इसके बाद भूखे को भी देश हरा-भर नजर आने लगता है, बेरोजगार को भी रोजगार की बारिश नजर आती है और गरीबों को भी समृद्धि की बारिश नजर आती है।
हम भले ही अपने आप को दुनिया से अधिक प्रबुद्ध मानते हों, प्रजातंत्र का जनक मानते हों, सामाजिक मूल्यों का पालक मानते हों- पर तथ्य तो यह है कि हम सब व्यक्तिवादी और पूंजीवादी व्ययस्था के पुजारी हैं। यहां देश से बड़ा एक नेता बन जाता है और पूरी अर्थव्यवस्था से बड़ा एक पूंजीपति। पूंजीवाद ने सबका साथ सबका विकास के खोखले नारे के बीच सत्ता की मदद से पूरी जनता की पूंजी हड़प ली, सारे प्राकृतिक संसाधन पर कब्जा कर लिया और मीडिया मोदी जी को गरीबों का मसीहा बनाता रहा- अब तो गरीब भी इसे ही सच समझ बैठे हैं।