सार्वजनिक धन पर गरीबों का हक मानते थे गांधी जी, उस विचार के खिलाफ है मोदी सरकार का कॉरपोरेट टैक्स कटौती

कॉरपोरेट को 1.45 लाख करोड़ रुपये की खैरात से निवेश-रोजगार बढ़ेगा या नहीं, कीमतें घटेंगी या नहीं, खेती-गांव की हालत सुधरेगी या नहीं, आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी या नहीं, सब अनिश्चित है। पर यह तय है कि इस सार्वजनिक धन के अपव्यय से सरकार का घाटा बढ़ना तय है।

फोटोः सोशल मीडिया
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राजेश रपरिया

गांधीजी की 150वीं जयंती को भुनाने के लिए बीजेपी ने व्यापक कार्यक्रम तैयार किया है। इसके तहत बीजेपी नेताओं की देश के लगभग हर गांव में पद यात्रा की योजना है। ‘टेलीग्राफ’ अखबार की एक खबर के मुताबिक बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पत्र लिख कर इस अवसर का फायदा उठाने को कहा है। इसे गांधी संकल्प यात्रा का नाम दिया गया है। पत्र में नड्डा ने लिखा है कि इससे साबित करने का मौका मिलेगा कि हम सच्चे मायनों में गांधी के सिद्धांतों के उत्तराधिकारी हैं।

लेकिन हकीकत ये है कि बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के धनाढ्यों को कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती कर 1.45 लाख करोड़ रुपये खैरात में दे दिए हैं, जो गांधी जी के विचारों के सर्वथा विपरीत है। गांधीजी का कहना था, “सार्वजनिक धन भारत की उस गरीब जनता का है जिससे ज्यादा गरीब इस दुनिया में और कोई नहीं। इस धन के उपयोग में बहुत ज्यादा सावधान और सजग रहना चाहिए। अगर मिले हुए पैसे की पाई-पाई का हिसाब नहीं रखते और कोष का विचारपूर्वक उचित उपयोग नहीं करते, तो सार्वजनिक जीवन से हमें निकाल दिया जाना चाहिए।” (यंग इंडिया, 16-4-1931)

गिरती विकास दर, गहराती आर्थिक मंदी, कम होते रोजगार से उबरने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में तकरीबन 10 फीसदी कटौती की घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इससे मेक इन इंडिया में भारी मात्रा में निवेश आकर्षित होगा। निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और रोजगार के अवसर सृजित होंगे। जानकार लोग कहते हैं कि इससे कंपनियों का मुनाफा निश्चित रूप से बढ़ेगा। लेकिन निकट भविष्य में इससे निवेश, रोजगार, कमजोर वर्ग की आय बढ़ने और खेती का संकट सुलझाने में कोई कारगर मदद नहीं मिलेगी।

वित्त मंत्री ने खुद बताया है कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती और अन्य राहत घोषणाओं से देश के खजाने में सालाना 1.45 लाख करोड़ रुपये की कमी आएगी। इससे पहले भी मोदी सरकार कई किस्तों में मंदी से उबरने के लिए घोषणाएं कर चुकी है। इन राहत घोषणाओं का सिलसिला पिछली 23 अगस्त को शुरू हुआ था। लेकिन उनका कोई वांछित प्रभाव न मांग पर पड़ा, न ही कारोबारियों ने निवेश को लेकर कोई उत्साह दिखाया। इससे हताश होकर ही अप्रत्याशित रूप से मोदी सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती की घोषणा की, जिसकी उम्मीद दूर-दूर तक कॉरपोरेट जगत को नहीं थी।


नरेंद्र मोदी ने इस टैक्स कटौती को ऐतिहासिक कदम बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे दुनिया भर से निवेश देश में आएगा। मेक इन इंडिया में उछाल आएगा। निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे। इसके परिणामस्वरूप 130 करोड़ भारतीयों के लिए बेहतर परिणाम आएंगे। इस घोषणा से कॉरपोरेट जगत का झूमना स्वाभाविक है कि उन्हें बैठे-ठाले 1.45 लाख करोड़ रुपये की खैरात मिल गई। लेकिन इस कर कटौती के कारण कितना निवेश बढ़ेगा, कब बढ़ेगा, विदेश से कितना निवेश आएगा और क्या इससे उपभोक्ता सामानों की कीमतें कम होंगी, इसका कोई ब्योरा सरकार की तरफ से नहीं आया है।

कॉरपोरेट जगत को इतनी बड़ी खैरात बांटकर सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा ले, पर इससे तत्काल आर्थिक विकास दर को पंख लग जाएंगे या मंदी दूर हो जाएगी या अधिक रोजगार आदि के मोदी सरकार के दावों से अर्थव्यवस्था पर गहरी नजर रखने वाले जानकार सहमत नहीं हैं। खुद उद्योगपति मानते हैं कि इससे निवेश में जल्द ही कोई उछाल नहीं आएगा जिनकी झोली को सरकार ने भर दिया है।

विश्व की जानी-मानी मूडी इनवेस्टर्स सर्विस ने कहा है कि कॉरपोरेट टैक्स कटौती से सरकार का राजकोषीय जोखिम यानी सरकारी घाटे का जोखिम बढ़ गया है, जबकि ग्रामीण संकट, कमजोर कॉरपोरेट धारणा और कर्ज की धीमी गति निकट भविष्य में विकास दर के लिए व्यवधान बने हुए हैं। कॉरपोरेट टैक्स कटौती से विकास दर में इतनी बढ़ोतरी नहीं हो पाएगी कि वह राजस्व संग्रह को बढ़ाकर राजस्व में हुए नुकसान (1.45 लाख करोड़ रुपये) की भरपाई कर दे। यह कटौती कंपनियों के मूल्यांकन के लिए तो सकारात्मक है, क्योंकि टैक्स चुकाने के बाद उनकी आय बढ़ेगी। लेकिन यह देश के संप्रभु मूल्यांकन यानी सॉवरिन रेटिंग के लिए नकारात्मक है, क्योंकि इस टैक्स कटौती से सरकारी घाटे के लक्ष्य को पूरा करने का जोखिम बढ़ जाएगा।

एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स एजेंसी ने लगभग ऐसा ही मत व्यक्त किया है कि इससे सरकारी घाटा बढ़ने के आसार हैं। इन दोनों एजेंसियों के मूल्यांकन से कंपनियों की ही नहीं, सरकारों की धड़कनें भी घट-बढ़ जाती हैं। यदि निकट भविष्य में देश की संप्रभु रेटिंग घट जाती है, तो इससे विदेशी निवेशकों का चौकन्ना होना स्वाभाविक है। मोदी सरकार को यकीन है कि इस ऐतिहासिक कॉरपोरेट टैक्स कटौती से कंपनियां नए निवेश के लिए प्रोत्साहित होंगी। पर जानकारों का कहना है कि कंपनियां आगामी 12-18 महीनों में निवेश बढ़ाएंगी, इसके आसार न के बराबर हैं, क्योंकि सबसे पहले वे अपने मुनाफे और बैलेंस शीट पर ध्यान देंगी जो पिछले छह महीनों से गहरे दबाव में हैं। कंपनियां इस टैक्स कटौती लाभ को अपने कर्जों को उतारने में ज्यादा इस्तेमाल करेंगी।


बाजार के ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश कंपनियां स्थापित क्षमता का लगभग 70 फीसदी ही इस्तेमाल कर पा रही हैं, मंदी को देखते हुए उत्पादन क्षमता में निवेश की उम्मीद करना बेकार है। देश के प्रमुख उद्योगपति और गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज ने स्पष्ट कहा कि इस कटौती से कीमतों में भारी कटौती की कोई उम्मीद नहीं है। कंपनियों के पास वैसे ही उत्पादन क्षमता का आधिक्य है। ऐसे में नए निवेश के आसार कम ही हैं। निवेश पर ही रोजगार निर्भर करता है। मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम मानते हैं कि 2008 में निवेश जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 40 फीसदी था, जो 2018 में गिर कर 29 फीसदी रह गया है, जो चिंताजनक है।

कॉरपोरेट को दी गई 1.45 लाख करोड़ रुपये की खैरात से निवेश बढ़ेगा या नहीं, रोजगार बढ़ेगा या नहीं, कीमतें घटेंगी या नहीं, खेती-गांव की हालत सुधरेगी या नहीं, आम आदमी की क्रय शक्ति में इजाफा होगा या नहीं, सब अनिश्चित है। पर एक बात तय है कि इस सार्वजनिक धन के अपव्यय से सरकार का घाटा बढ़ना सुनिश्चित है। मोदी सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सरकारी घाटे का लक्ष्य 7.04 लाख करोड़ रुपये रखा है, जो जीडीपी का 3.3 फीसदी बैठता है। जानकारों के मुताबिक अब यह घाटा बढ़कर जीडीपी के 4 फीसदी तक जा सकता है।

वैसे भी मोदी सरकार टैक्स संग्रह में लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। सरकार ने इस वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष करों (इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, आदि) से 13.35 लाख करोड़ रुपये के संग्रह का लक्ष्य रखा है, जो पिछले साल के संशोधित अनुमान संग्रह से तकरीबन 11.25 फीसदी ज्यादा है। ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल-सितंबर, 2019 के छह महीनों में प्रत्यक्ष कर संग्रह 5.5 लाख करोड़ रुपये रहा है। यानी अब सरकार को बाकी छह महीनों में 7.85 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर संग्रह करना है। इसके लिए प्रत्यक्ष कर संग्रह में 20 फीसदी वृद्धि आवश्यक है, जो मौजूदा कठिन आर्थिक परिस्थितियों में बड़ी चुनौती साबित होगी। यदि अर्थव्यवस्था की नॉमिनल विकास दर (महंगाई समेत विकास दर) 12 फीसदी से कम रही, तो राजस्व और सरकारी घाटे का पूरा गणित गड़बड़ा सकता है।

सरकारी घाटे के बढ़ने का संदेश साफ है कि सरकार को ज्यादा उधार लेना पड़ेगा जिससे ब्याज दरों के बढ़ने का अंदेशा बढ़ जाएगा, जबकि सरकार अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए कम ब्याज दरों के लिए रिजर्व बैंक पर निरंतर दबाव डालती रही है। जब सरकारी घाटा लक्ष्य से अधिक होता है, तो महंगाई बढ़ने की आशंका गहरा जाती है। कुल मिलाकर मोदी सरकार के टैक्स कटौती के निर्णय से आम जनों के हिस्से में महंगाई ही आएगी। इस निर्णय से देश में आर्थिक विषमता और बढ़ जाएगी।

एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश की एक फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपदा का 51.53 हिस्सा है, जबकि निचले पायदान पर खड़ी 60 फीसदी जनता के पास महज 4.8 फीसदी। गांधीजी आर्थिक विषमता को देश के लिए दुर्भाग्य मानते थे। उनका कहना था, “भारत की जरूरत यह नहीं है कि चंद लोगों के हाथों में सारी पूंजी इकट्ठी हो जाए। पूंजी का ऐसा वितरण होना चाहिए कि वह इस 1900 मील लंबे और 1500 मील चौड़े विशाल देश को बनाने वाले साढ़े सात लाख गांवों को आसानी से उपलब्ध हो सके।” (‘यंग इंडिया’, 23-3-1921)

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Published: 04 Oct 2019, 7:59 PM