भारत समेत दुनिया भर में अब तुगलकी तंत्र ही प्रजातंत्र, सत्ता के शीर्ष पर बैठा नेता खुद को ईश्वर समझने लगा है

भारत में जनता के लिए देश और सत्ता का शीर्ष एकाकार हो गया है। यहां की मीडिया ने ऐसा माहौल तैयार किया है, जिसमें जनता की नजर में सत्ता का शीर्ष ईश्वर से भी अधिक महान है और वह कभी गलत हो ही नहीं सकता। वह निराकार है, ब्रह्म-स्वरूप है, नॉन-बायोलॉजिकल है।

भारत समेत दुनिया भर में अब तुगलकी तंत्र ही प्रजातंत्र, सत्ता के शीर्ष पर बैठा नेता खुद को ईश्वर समझने लगा है
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महेन्द्र पांडे

हिन्द महासागर में स्थित अफ्रीकी देश मेडागास्कर में भ्रष्टाचार और गरीबी से परेशान जनता पिछले कुछ सप्ताह से आंदोलन कर रही थी। इस आंदोलन का आह्वान “जेन जी मेडागास्कर” नामक एक समूह कर रहा था। इस आंदोलन की प्रमुख मांग राष्ट्रपति ऐन्ड्री राजोलीना का इस्तीफा था। शुरू के दो सप्ताह में सेना और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग किया जिसमें 22 आंदोलनकारी मारे गए। हालांकि सरकारी आंकड़ों में 12 मौतें ही बताई गईं। आंदोलन और प्रदर्शन के दो सप्ताह बाद सेना की एक टुकड़ी ने आंदोलनकारियों के समर्थन की घोषणा कर दी। इसके बाद स्थितियां तेजी से बदलने लगीं।

सेना की इस विशेष टुकड़ी ने पूरी सेना का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया और राष्ट्रपति को देश छोड़ कर भागना पड़ा। अब, वहां की संसद ने राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव को पारित किया है। पर, युवा आंदोलनकारियों को प्रजातंत्र नसीब नहीं हुआ। जेन जी के आंदोलन पर सेना ने कब्जा कर लिया और अब सेना ने वहां नई सरकार बनाने का और बाद में चुनाव कराने का फैसला किया है। एक प्रजातांत्रिक देश अब सैनिक शासन के अधीन आ गया। अफ्रीकी संघ ने मेडागास्कर की सदस्यता खत्म कर दी है।

अफ्रीका के ही मोरक्को में भी भ्रष्टाचार और बदहाल स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था के विरोध में युवा सड़कों पर हैं। वहां आंदोलन का आह्वान “जेन जी 212” नामक एक समूह ने किया है। 212 मोरक्को का इंटेरनेशनल टेलीफोन कोड है। आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था के बजट में प्रभावी कटौती कर दी है और इस राशि से फुटबॉल के फीफा वर्ल्ड कप 2030 के लिए महंगे स्टेडियम बनाए जा रहे हैं। इस आंदोलन में अब तक तीन आंदोलनकारियों की मृत्यु हो चुकी है।

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप किस तरीके से प्रजातंत्र का तमाशा बना रहे हैं, यह पूरी दुनिया देख रही है। हमारे देश सहित लगभग पूरी दुनिया में प्रजातंत्र अब पूरी तरीके से प्रजातांत्रिक-राजतंत्र या फिर तुगलकी तंत्र में तब्दील हो गया है। अब प्रजातंत्र का केवल इतना सा अस्तित्व रह गया है कि दिखावे के लिए चुनाव करवाए जाएं और सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता खुलेआम धांधली कर वापस सत्ता में पहुंच जाएं। इस पूरी प्रक्रिया मे सत्ता का बेशर्मी से साथ न्याय व्यवस्था और सभी संवैधानिक संस्थाएं खुले आम देती हैं। जिसे हम मीडिया कहते हैं वहां सत्ता का गुणगान दिन रात चलता है।


कुल मिलाकर वैश्विक स्तर पर एक ऐसी स्थिति है जिसमें प्रजातंत्र के नाम पर राजतंत्र से भी अधिक निरंकुश सत्ता पर काबिज है। पर हमारे देश और दूसरे देशों के प्रजातांत्रिक-राजतंत्र में एक बुनियादी अंतर है। भारत को छोड़कर शेष सभी तथाकथित प्रजातांत्रिक देशों में जनता अपनी समस्याओं को समझ रही है और सत्ता द्वारा हिंसक दमन के बाद भी बार-बार सड़कों पर उतरती है। दूसरी तरफ भारत में जनता के लिए देश और सत्ता का शीर्ष एकाकार हो गया है। यहां की मीडिया ने एक ऐसा माहौल तैयार किया है, जिसमें जनता की नजर में सत्ता का शीर्ष ईश्वर से भी अधिक महान है और वह कभी गलत हो ही नहीं सकता। सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति निराकार है, ब्रह्म-स्वरूप है, नॉन-बायोलॉजिकल है।

यहां जनता देखती है तो केवल एक व्यक्ति को; सुनती है को केवल एक व्यक्ति को; सजदे में सिर झुकाती है तो केवल एक व्यक्ति के लिए; जयकारा करती है तो केवल एक व्यक्ति का- जाहिर है सत्ता का शीर्ष हरेक गली, चौराहे, खंभे और पुल पर लटका नजर आता है, दीवारों से चिपका नजर आता है। सत्ता का शीर्ष पूरा देश अरबपतियों के हवाले करने पर तुला है, पर जनता भीख में मिले अनाज और चंद रुपयों को ही सत्ता से मिला प्रसाद मानकर आह्लादित है।

सत्ता में वापस पहुंचते ही राजशाही की वापसी हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में अब राजा तुगलकी फरमान जारी करता है और राजा की आंखें हरेक दीवार, खंभों, पुलों पर लटके पोस्टरों से बाहर देखते हुए सबकी निगरानी करती हैं। राजा ही अपराधी सुनिश्चित करता है, राजा ही सजा सुनाता है। राजा बड़े जतन से हरेक चुनाव से पहले मतदाताओं के बैंक-अकाउंट में खुले आम रिश्वत जमा करवाता है और उसके संतरी-मंत्री और मैन्स्ट्रीम मीडिया इस रिश्वत को राजा का प्रसाद बताते हैं। राजा चहेते पूंजीपतियों को राज्य की हर जमीन देने पर आमदा है और पूंजीपति राजा के मंहगे चुनाव दौरों का खर्च उठाते हैं। पुलिस-प्रशासन बुलडोजर-बुल्डोजर खेल में व्यस्त हैं। जनता पिस रही है, पर मीडिया द्वारा गढ़े गए ईश्वर से खुश है।

चेक रिपब्लिक, पोलैंड और ऑस्ट्रीया जैसे देशों में प्रजातंत्र बचाने के नाम पर सत्ता लोक-लुभावनवादी नेताओं के हवाले कर दिया गया। दूसरी तरफ केन्या, बांग्लादेश, नेपाल, इंडोनेशिया, तुर्की, नाइजीरिया और फ़िलिपींस जैसे देशों में जनता प्रजातंत्र बचाने के लिए आंदोलन कर रही है। फ़्रांस और जर्मनी जैसे देशों में कट्टर-दक्षिणपंथी पूरे जतन से प्रजातंत्र का शोषण कर रहे हैं। फ़्रांस के राष्ट्रपति ने हाल में ही कहा था कि “ऐसा हाल है कि हम अपने ही प्रजातंत्र पर सवाल उठाने लगे हैं”। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में बहुत सारे देशों में चुनाव कराए गए थे, जिनमें से 40 प्रतिशत से अधिक चुनाव हिंसा, चुनाव प्रक्रिया में धांधली और सत्ता द्वारा विपक्षियों के दमन के शिकार थे।


कैमरुन में हाल के चुनावों में विपक्षी नेता ईसा तेहीरोमा बाकरी ने चुनावों में जीत का दावा किया है। हालांकि, आधिकारिक चुनाव नतीजे अभी प्रकाशित नहीं किए गए हैं पर वहां हरेक चुनाव के बाद ऐसा ही माहौल रहता है। सत्ता में बैठे 92 वर्षीय राष्ट्रपति पॉल बिया जनता और विपक्ष के तमाम विरोधों के बाद भी पिछले 43 वर्षों से राष्ट्रपति पद पर हैं। हरेक चुनावों में हार के बाद भी नतीजों में धांधली कर सत्ता में बने रहते हैं और फिर सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाल देते हैं। हाल में ही वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया मचड़ों को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद भी वेनेजुएला में प्रजातंत्र के खस्ताहाल की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं। वहां भी वर्ष 2013 से लगातार राष्ट्रपति रहे निकोलस माडूरो चुनाव हारने के बाद भी पद नहीं छोड़ते।

स्वीडन के इंटेरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टन्स द्वारा प्रकाशित 2025 ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी के अनुसार दुनिया के 173 देशों में प्रजातंत्र की स्थिति का विस्तृत आकलन करने के बाद स्पष्ट है कि 95 देशों में इसका विनाश तेजी से हो रहा है जबकि महज 55 देशों में यह सशक्त हो रही है। इन देशों में भारत का स्थान मानवाधिकार में 112वां, चुनावी भागीदारी में 99वां, न्याय व्यवस्था में 76वां और चुनावी रीप्रेजेन्टेशन में 73वां है। यह अपने आप को प्रजातंत्र की जननी कहने वाले देश की स्थिति है। इसके अनुसार वैश्विक स्तर पर अधिकारों के संदर्भ में प्रेस की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी और न्याय व्यवस्था तक पहुंच का सत्ता द्वारा हनन प्रजातंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

अब प्रजातंत्र पूरी तरीके से राजतंत्र में तब्दील हो चुका है और सत्ता के शीर्ष पर बैठा नेता अपने आप को ईश्वर समझने लगता है और उसकी सबसे बड़ी ताकत जनता की आकाक्षाओं का पूर्वानुमान नहीं है बल्कि विरोधियों को कुचलने की प्रबलता है।

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